आनंद महिन्द्रा जब किसी मसले पर बोलते है तो उसे सुनना पड़ता है। उनका करियर बेदाग रहा है। उन्होंने अपने महिन्द्र एंड महिन्द्रा ग्रुप का मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ एक्जीक्यूटिव आफिसर (सीईओ) अनीष शाह को बनाया है। अब सारे महिन्द्रा ग्रुप को अनीष देखेंगे। रंगमंच प्रेमी आनंद महिन्द्रा अब उसी रोल में रहेंगे जिसमें टाटा ग्रुप में रतन टाटा है। महिन्द्रा ग्रुप ऑटोमोबाइल, फार्म उपकरण, वित्तीय सेवाएं, सूचना टेक्नोलॉजी,ट्रेड,रीटेल तथा लौजिस्टिक्स में है।
याद रखेंकि टाटा और महिन्द्र एंड महिंद्रा समूह भारत के कॉरपोरेट जगत के प्रमुख स्तम्भ हैं। इन दोनों को सालाना हजारों करोड़ का तो मुनाफा ही होता है। इनमें लाखों लोग काम भी करते हैं। अकेले टीसीएस में ही लगभग पांच लाख पेशेवर हैं। टाटा तथा महिन्द्रा में एन. चंद्रशेखरन और अनीष शाह से पहले प्रमोटर ही मैनेजिंग डायरेक्टर होते थे। मतलब टाटा समूह का चेयरमेन और सीईओ टाटा और महिन्द्रा का चेयरमेन महिन्द्रा परिवार का ही कोई सदस्य बनता था। अब यह नहीं होगा।
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आपको मालूम होगा महिन्द्रा ग्रुप का इतिहास। इसका नाम 1947 तक महिन्द्रा एंड मोहम्मद (एमएंडएम) था। सन 1945 में कैलाशचंद्र महिन्द्रा ने गुलाम मोहम्मद के साथ एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी एमएंडएम बनाई। पर देश के विभाजन के समय गुलाम मोहम्मद मोहम्मद अली जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान चले गए।
वे पहले जिन्ना के और फिर पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली के सलाहकार बने। उस दौरमें महिन्द्रा एंड मोहम्मद नाम की कंपनी जीपों का आयात करके उन्हें भारतीय बाजार में बेचती थी। पर गुलाम मोहम्मद के पाकिस्तान जाने के बाद महिन्द्रा एंड मोहम्मद हो गई महिन्द्रा एंद महिन्द्रा। उसने जीपों का निर्माण भी चालू कर दिया।
आनंद महिन्द्रा ने 2006 में हिन्दुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में आपके इस नाचीज दोस्त को बताया था कि गुलाम मोहम्मद के पाक जाने के बाद उनकी कंपनी को कुछ साल तो लगे थे संभलने में। पर, उसके बाद कंपनी ने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। बेशक, महिन्द्रा एंड महिन्द्रा ग्रुप ने भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की है। लगातार नये स्तर बनाते हुए आज यह देश के एक प्रमुख समूह के रूप में स्थापित हो चुका है।
बेहतर तो यह होगा प्रमोटर अपना विजन अपने सीईओ के सामने रखे और सीईओ उस पर काम करे। जेआरडी टाटा के सीईओ जैसे दरबारी सेठ, रूसी मोदी, अजित केरकर उनके विजन पर ही चलते थे।
प्रख्यात कंपनियों को सिर्फ देसी या पारिवारिक सीईओ रखने का मोह भी छोड़ना होगा, अगर वे विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाना चाहती हैं। अब जरा जापान की प्रतिष्ठित कंपनी सोनी को लीजिए। उसने अमेरिका के स्टिंगर वेल्समेन को अपना सीईओ नियुक्त करने में संकोच नहीं किया था। और जब क्लॉज क्लेनफेल्ड को साल 2008 में अमेरिकी कंपनी ऑल्को का सीईओ नियुक्त किया गया तो ज्यादातर मीडिया ने उत्सुकता के साथ इस सच्चाई की घोषणा भी कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी एल्यूमीनियम बनाने वाली कंपनी की अगुआई अब एक जर्मन नागरिक कैसे करेगा।
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माइक्रोसॉफ्ट ने हैदराबाद में जन्में सत्या नडेला को अपना सीईओ नियुक्त करके भारत के बिजनेस जगत को एक बड़ा संदेश दे दिया था। संदेश साफ है कि मेरिट से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। माइक्रोसाफ्ट के आइकानिक संस्थापक बिल गेट्स ने सीईओ के ओहदे पर अपने किसी परिवार के सदस्य को नहीं नियुक्त किया। उन्हें सत्या में मेरिट दिखी, तो उन्हें सौंप दी गई इतनी अहम जिम्मेदारी। सत्या की सरपरस्ती में माइक्रोसाफ्ट सफलता की नई बुलंदियों को छू रही है।
एक बात और- आनंद महिन्द्रा की पुत्री का विवाह एक आर्किटेक्ट से हुआ है। कुछ साल पहले विवाह पूरी तरह से सादगी से हुआ था।