शेरशाह सूरी की राजधानी शेरगढ़ से मुश्किल से एक-सवा किलोमीटर की दूरी पर सेंट्रल विस्टा का नया चेहरा सामने आ रहा है। शेरगढ़ के अवशेष पुराना किला में बिखरे हुए हैं। शेरशाह सूरी ने अपनी राजधानी के निर्माण में अलाउद्दीन ख़िलजी की राजधानी मौजूदा हौजखास के पास सिरी में पड़े पत्थरों का बड़े स्तर पर इस्तेमाल करवाया था।
नया सेंट्रल विस्टा बनेगा तो कई पुरानी इमारतें जमींदोज होंगी। उनकी जगह खड़ी होंगी नई इमारतें। क्या पुरानी इमारतों की ईंटों और पत्थरों का फिर से इस्तेमाल नहीं हो सकता हो सकता सेंट्रल विस्टा के लिए? दिल्ली में कई बादशाहों ने अपनी राजधानियों जैसे लाल कोट (तोमर), जहांपनाह (मुहम्मद तुग़लक़),शाहजहांबाद (शाहजहां) और नई दिल्ली के निर्माण में पुरानी इमारतों की सामग्री का फिर से बेहिचक इस्तेमाल किया।
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इतिहासकार डा.स्वपना लिड्डल कहती हैं कि नई दिल्ली के निर्माण के वक्त एडवर्ड लुटियन ने सभी खास इमारतों की नींव रखते हुए पुरानी ईंटों और पत्थरों का भरपूर इस्तेमाल किया था। नई दिल्ली की सड़कों को बनाते हुए भी यही प्रक्रिया अपनाई गई थी। इस तरह से धन की बचत भी हो गई थी। अब नेशनल आकार्इव (1926) , नेशनल म्युजियम (1949), विज्ञान भवन (1955) वगैरह को तोड़ा जाना तय माना जा रहा है। इनके बलुआ और दूसरे पत्थरों की री-साइक्लिंग करके नई इमारतों में आवश्यकता के अनुसार उपयोग में लाना संभव है। क्या इस तरफ कोई विचार कर रहा है?
फिलहाल तस्वीर धुंधली है। हां, अगर हाल के दौर की बात करें तो अक्षरधाम मंदिर के निर्माण के वक्त पुरानी इमारतों की सामग्री का प्रसिद्ध आर्किटेक्ट विक्रम लाल ने भरपूर इस्तेमाल किया था। पर विक्रम लाल अपने समय से आगे के आर्किटेक्ट थे। वे निर्माण में अपव्यय के कभी पक्षधर नहीं रहे थे। इसलिए उन्होंने अक्षरधाम मंदिर के निर्माण में पुरानी सामग्री को लिया। लेकिन आजकल प्रगति मैदान में जो बड़े ही व्यापक स्तर पर निर्माण कार्य चल रहा है उसमें सब कुछ नया-नया है। लगता है, इसे नई शक्ल देने के कार्य से जुड़े ज्ञानी लोगों के पास भरपूर धन हो। दरअसल जिन निर्माण परियोजनाओं को कम समय में पूरा करना होता है वहां पर पुरानी ईंटों,पत्थरों, खिड़कियों, दरवाजों के लिए पुरानी सामग्री का इस्तेमाल ना के बराबर किया जाता है।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को सन 2024 तक पूरा करने की योजना है। इसलिए लगता है कि इसमें पहले उपयोग में लाई गई सामग्री का शायद ही उपयोग हो सके। सबको पता ही है कि अब नई दिल्ली के दिल की बहुत सी इमारतें तस्वीरों और यादों में रह जाएंगी। उन्हें ठेकेदार तोड़ देंगे। वे अपनी जरूरत के सामान को,जिसमें एसी, पंखे,स्टील, बिजली की तारें वगैरह शामिल है, को कबाड़ में बेच देंगे। शेष सामग्री को जहां-तहां फेंक दिया जाएगा। आखिर कौन पूछने वाला है। समरथ को नहीं दोष गुसाईं। यही होता आया है।
एक समस्या यह भी है कि हमारे यहां निर्माण क्षेत्र से जुड़ी री-साइकिलिंग इंडस्ट्री लगभग शैशव अवस्था में है। यह भी संभव है कि कुछ तत्व इतिहास से सीखना ही नहीं चाहते। अगर हमारे यहां सैक़ड़ों साल पहले इस्तेमाल हुई ईंटों और पत्थरों का नए निर्माण परियोजनाओं में उपयोग हो रहा था तो अब हमें क्या दिक्कत है।
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नए प्रधानमंत्री आवास को छोड़कर लगभग सभी भवनों में कार पार्किंग के लिए दो-तीन बेसमेंट बनेंगी। शास्त्री भवन, उद्योग भवन, रेल भवन आदि को तोड़ने के पीछे एक बड़ा तर्क यह दिया जा रहा है कि इनमें पर्याप्त कार पार्किंग नहीं है। जाहिर है, इसलिए सब भवनों की नींव गहरी होगी। नींवों को तैयार करते वक्त तो पुराने भवनों की सामग्री को लिया जा सकता है। सेंट्रल विस्टा की नई इमारतों में तड़क-भड़क नहीं होनी चाहिए। वे सुंदर, कलात्मक और यूजर फ्रेंडलीं हों। इसे ही श्रेष्ठ वास्तुकला कहा जाता है।