आप शादीपुर से मेन पटेल नगर रोड से पूसा रोड रोड की तरफ जा रहे हैं। अगर आप पचास पार की उम्र के दिल्ली वाले हैं, तो आपको इस भीड़भाड़ वाली सड़क के लगभग अंत में एक विशाल कोठी के बाहर लगी एक शख्स की ब़ड़ी सी फोटो को पहचानने में देर नहीं लगेगी। सिऱ पर पंजाबी स्टाइल की पगड़ी पहने इस इंसान की बड़ी–बड़ी मूंछें हैं।
ये तस्वीर है हकीम हरकिशन लाल की। इनका दावा था कि जो इनकी शक्तिदायक दवाएं लेगा वह अपने को कभी शारीरिक रूप से कमजोर नहीं महसूस करेगा। हकीम साहब लाल कुआं के दवाखाना में बैठा करते थे। उनके दवाखाना से कुछ ही कदमों की दूरी पर कांग्रेस के नेता हकीम अजमल खान साहब का दवाखाना भी हुआ करता था। दोनों यूनानी तरीके से रोगियों का इलाज करते थे। बस इतनी ही थी दोनों में समानता।
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हकीम अजमल खान तो हकीम हरकिशन लाल के पाकिस्तान के शहर ऐब्टाबाद से 1947 में दिल्ली आने से काफी पहले दिवंगत हो गए थे। ऐब्टाबाद वही शहर है जहां से कुछ साल पहले ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने पकड़ा था। फिल्म अभिनेता मनोज कुमार का जन्मस्थान भी ऐब्टाबाद ही है।
हकीम हरकिशन लाल के पिता जोधा राम भी हकीम थे। वे रावलपिंडी से ऐब्टाबाद के बीच चलने वाली बसों में अपनी ताकत की दवाओं को बेचा करते थे। अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए हकीम हरकिशन लाल ने दिल्ली में ताकत की दवाएं बेचनी चालू कर दीं। वे देखते ही देखते छा गए। उन्हें पराया शहर रास आ गया। नौजवान, अधेड़, बुजुर्ग उनके पास पहुंचने लगे। उनकी प्रेक्टिस शानदार तरीके से चलने लगी। वे दिन में लाल कुआं बैठते और सुबह बुद्ध जयंती पार्क में सैर करने के लिए आने वाले लोगों से भी मिलते।
उन्हें अपनी दवाओं की खूबियां बताते और बेचते। करोल बाग, न्यू राजेन्द्र नगर, पूसा रोड के पुराने लोगों को याद होगा कि बुद्ध जयंती पार्क में ही साठ के दशक में महाशय दी हट्टी वाले धर्मपाल गुलाटी अपने मसाले बेचने आया करते थे और हकीम हरिकिशन लाल अपनी दवाएं।
हकीम साहब का रंग साफ,कद छोटा और मूंछें बड़ी थी। वे अपनी दवाएं बेचने से पहले पैसे की महिमा पर एक पंजाबी में गीत भी सुनाया करते थे। इसका उद्देश्य यह होता था ताकि मजमा जम जाए। वे बुद्ध जयंती पार्क में इसलिए जाने लगे थे कि वहां पर मालदार लोग सुबह आते थे। उन्हें उनमें तमाम संभावनाएं नजर आती थीं। उनका धंधा चलने लगा तो उन्होंने पटेल नगर में एक कोठी ही खरीद ली। अब इस कोठी की कीमत 80 करोड़ रुपए से कम तो नहीं होगी। वे हर साल गर्मियो के महीनों में मसूरी चले जाते। वहां पर पहले से पैसे वाले दिल्ली वाले पहुंचे होते थे।
हकीम साहब उधर उन लोगों को अपनी दवाएं बेचते। उन्हें विज्ञापन की ताकत का अंदाजा लग चुका था। इसलिए वे छोटे-बड़े अखबारों और पत्रिकाओं में अपने यौन रोग विशेषज्ञ होने संबंधी विज्ञापन देते। देश के शिखर और सम्मानित नेताओं से भी मिलते और उनके साथ अपनी फोटो खिंचवाना नहीं भूलते।
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आप गूगल पर देखेंगे कि वे पंडित जवाहरलाल नेहरु,सर्वपल्ली राधाकृष्णन और ज्ञानी जैल सिंह के साथ खड़े हैं। वे सेल्फी के दौर से पहले उस युग में पहुंच गए थे। हकीम हरकिशन लाल के समय में और बाद में बहुत से ताकत की दवाएं देने वाले राजधानी में आए। लेकिन कोई भी हकीम हरकिशन लाल जितना मशहूर और मकबूल नहीं हो सका।