ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि भारत सरकार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सरकार के दूसरे आलोचकों को चुप कराने के लिए कर चोरी और वित्तीय अनियमितताओं के राजनीतिक रूप से प्रेरित आरोपों का इस्तेमाल कर रही है। सितंबर 2021 में, सरकार के वित्त विभाग के अधिकारियों ने श्रीनगर, दिल्ली और मुंबई में पत्रकारों के घरों, समाचार संस्थानों के कार्यालयों, एक अभिनेता के परिसर और एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के घर एवं कार्यालय पर छापे मारे हैं।
ये छापे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संगठन बनाने और शांतिपूर्ण सभा करने पर 2014 में सत्ता में आने के बाद से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सरकार की बढ़ती दमनात्मक कार्रवाई का हिस्सा हैं। सरकारी तंत्र ने कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, शिक्षाविदों, छात्रों और अन्य लोगों के खिलाफ व्यापक रूप से परिभाषित आतंकवाद और राजद्रोह कानूनों का इस्तेमाल करने समेत राजनीतिक रूप से प्रेरित आपराधिक मामले दर्ज किए हैं। उन्होंने मुखर समूहों को निशाना बनाने के लिए विदेशी अनुदान विनियमनों का और वित्तीय गड़बड़ियों के आरोपों का इस्तेमाल भी किया है।
ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “ऐसा मालूम होता है कि भारत सरकार ने आलोचकों को हैरान-परेशान करने और डराने-धमकाने के लिए ये छापेमारियां की हैं, जो तमाम तरह की आलोचनाओं को चुप करने की उनकी कोशिश के वृहत्तर तौर-तरीकों को दर्शाती हैं। ये उत्पीड़नकारी कार्रवाइयां भारत के बुनियादी लोकतांत्रिक संस्थानों को कमजोर करती हैं और मौलिक स्वतंत्रताओं का हनन करती हैं।”
एडिटर्स गिल्ड और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया जैसे पत्रकार संगठनों ने स्वतंत्र मीडिया को हैरान-परेशान करने वाली कार्रवाइयों पर रोक लगाने की बार-बार मांग की है और यह कहा है कि ये कार्रवाइयां प्रेस की स्वतंत्रता पर खुला हमला हैं।
सबसे हालिया घटना में, 16 सितंबर को वित्तीय अपराधों की जांच करने वाले प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए दिल्ली में कार्यकर्ता हर्ष मंदर के घर और कार्यालय पर छापा मारा। छापेमारी के समय हर्ष मंदर एक फेलोशिप के सिलसिले में जर्मनी में थे। कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और पूर्व लोक सेवकों ने एक संयुक्त बयान जारी कर छापेमारी की निंदा की और इसे अधिकारों में कटौती करने के लिए “राज्य संस्थानों के दुरुपयोग की एक सतत श्रृंखला” का हिस्सा बताया।
सरकारी तंत्र ने मंदर को बार-बार निशाना बनाया है। मंदर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भाजपा सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों के मुखर आलोचक रहे हैं और सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों के साथ काम करते हैं। दिल्ली पुलिस ने फरवरी 2020 में दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने वाले भाजपा नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय, मंदर के खिलाफ नफरत फ़ैलाने और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का मनगढ़ंत मामला दर्ज किया।
8 सितंबर को जम्मू और कश्मीर में पुलिस ने चार कश्मीरी पत्रकारों – हिलाल मीर, शाह अब्बास, शौकत मोट्टा और अजहर कादरी के घरों पर छापे मारे और उनके फोन एवं लैपटॉप जब्त कर लिए। मीर ने बताया कि पुलिस ने उनका और उनकी पत्नी का पासपोर्ट भी ले लिया। अधिकारियों ने चारों को पूछताछ के लिए श्रीनगर पुलिस स्टेशन बुलाया और उन्हें अगले दिन लौटने को कहा। अगस्त 2019 में भाजपा सरकार द्वारा राज्य की स्वायत्त संवैधानिक स्थिति रद्द करने के बाद, कश्मीर में पत्रकार आतंकवाद के आरोपों के तहत गिरफ्तारी समेत सरकार के अधिकाधिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
जून में, संयुक्त राष्ट्र के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर विशेष दूत और मनमाने हिरासत के मामलों के कार्य समूह ने भारत सरकार को पत्र लिखा जिसमें उन्होंने “जम्मू और कश्मीर की स्थिति का कवरेज करने वाले पत्रकारों को कथित तौर पर मनमाने तरीके से हिरासत में लेने और धमकी देने” पर चिंता व्यक्त की। पत्र में फहद शाह, आकिब जावेद, सजर गुल और काजी शिबली के मामलों का हवाला दिया गया और अक्टूबर 2020 में मुखर अखबार कश्मीर टाइम्स के बंद होने पर भी चिंता जताई गई। इसमें कहा गया कि ये उल्लंघनकारी कार्रवाइयां “जम्मू और कश्मीर में स्वतंत्र रिपोर्टिंग को चुप करने के व्यापक तौर-तरीकों का हिस्सा हो सकते हैं, जो अंततः अन्य पत्रकारों और नागरिक समाज को इस क्षेत्र में जनहित और मानवाधिकारों के मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने से बड़े पैमाने पर रोक सकते हैं।”
10 सितंबर को आयकर विभाग के अधिकारियों ने कथित कर चोरी की जांच के सिलसिले में दिल्ली में समाचार वेबसाइट्स न्यूज़लॉन्ड्री और न्यूज़क्लिक के कार्यालयों पर छापा मारा। दोनों वेबसाइट्स सरकार की आलोचना के लिए जाने जाते हैं। छापे के दौरान, अधिकारियों ने न्यूज़लॉन्ड्री के प्रधान संपादक अभिनंदन सेखरी के कार्यालय के कंप्यूटरों और निजी सेल फोन एवं लैपटॉप से डेटा डाउनलोड किया, और न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ तथा दूसरे संपादक से विभिन्न वित्तीय दस्तावेज़ के साथ-साथ ईमेल आर्काइव्स भी साथ ले गए। इसके पहले, जून में वित्त विभाग के अधिकारियों ने दोनों मीडिया संस्थानों को निशाना बनाया था। फरवरी में, प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने पुरकायस्थ के कार्यालय और घर पर छापा मारा था।
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जुलाई में कर अधिकारियों ने भारत के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले समाचार पत्रों में से एक, दैनिक भास्कर के मध्य प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में स्थित लगभग 30 कार्यालयों पर छापे मारे। ये कार्रवाई अखबार द्वारा कई महीनों तक कोविड-19 महामारी से निपटने में सरकार के तरीकों की आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के बाद हुई। 2017 में, अधिकारियों ने वित्तीय अनियमितता के आरोपों पर टेलीविजन समाचार चैनल एनडीटीवी पर छापा मारा था, यह चैनल भी सरकार की नीतियों का आलोचक है।
7 सितंबर को उत्तर प्रदेश पुलिस ने भाजपा सरकार की मुखर आलोचक पत्रकार राणा अय्यूब के खिलाफ कथित मनी लॉन्ड्रिंग, धोखाधड़ी, सम्पत्ति के गबन और आपराधिक न्यास भंग के लिए आपराधिक मामला दर्ज किया। “हिंदू आईटी सेल” नामक एक समूह की शिकायत में उन पर यह आरोप लगाया गया कि बाढ़ पीड़ितों और कोविड-19 महामारी से प्रभावित लोगों के लिए धन उगाहने के अभियानों के दौरान उन्होंने ऐसे आपराधिक कृत्य किए।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा करने के लिए जून में एक अन्य आपराधिक मामले में अय्यूब पर धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने और धार्मिक विश्वासों का अपमान करने का आरोप लगाया। इस वीडियो में, एक मुस्लिम व्यक्ति हिन्दुओं पर अपनी पिटाई करने और उसे जय श्री राम का जयकार लगाने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाता है। जय श्री राम जो हिंदुओं द्वारा प्रार्थना या अभिवादन के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला वाक्य है, अब हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला नारा भी बन गया है। सोशल मीडिया पर सरकार के समर्थकों और हिंदू राष्ट्रवादी ट्रोल्स ने अय्यूब को बार-बार गालियां दी हैं और उन्हें धमकाया है। 2018 में, उन्हें मौत की धमकी मिलने के बाद, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने भारत सरकार से उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की मांग की थी।
15 सितंबर को कर अधिकारियों ने एक रियल एस्टेट सौदे में कर चोरी का आरोप लगाते हुए मुंबई में अभिनेता सोनू सूद के परिसर की तलाशी ली। यह छापेमारी राजनीति से प्रेरित लगती है क्योंकि महामारी के दौरान अभिनेता के लोकहितैषी कार्यों, खास तौर से सरकार की लॉकडाउन नीतियों और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण पैदा हुए कमियों को दूर करने के लिए देश भर में आम जनता, मीडिया और विपक्षी राजनीतिज्ञों ने उनकी व्यापक प्रशंसा की थी।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त और संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पिछले कुछ वर्षों में नागरिक समाज समूहों के लिए सिकुड़ते स्पेस और मानवाधिकार रक्षकों और अन्य आलोचकों के उत्पीड़न और अभियोजन में वृद्धि पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने सरकार से यह सुनिश्चित करने की मांग की है कि किसी को भी उनके बुनियादी मानवाधिकारों का प्रयोग करने के लिए हिरासत में नहीं लिया जाए और देश के नागरिक समाज समूहों को सुरक्षा प्रदान की जाए।
गांगुली ने कहा, “अपने घर में मूलभूत स्वतंत्रता का गला घोंटकर, भारत मानवाधिकारों को बढ़ावा देने वाले विश्व नेता के रूप में अपने प्रभाव को कम कर रहा है। सरकार को चाहिए कि अपने तौर-तरीके में बदलाव लाए और अपने लोगों के मूलभूत अधिकारों का सम्मान करे।”
3 काले किसान विरोधी कानूनों के लागू होने के बाद मंडी व्यवस्था को लेकर मोदी सरकार द्वारा किए गए खोखले वादों के बावजूद, विभिन्न राज्यों में मंडियों की स्थिति एक विपरीत दिशा की ओर इशारा कर रही है। मंडी प्रणाली में सच्चे सुधारों के बजाय ताकि अधिक किसानों को विनियमित बाजारों या मंडियों के सुरक्षात्मक कवरेज के तहत लाया जा सके, और मंडी के अंदर प्रतिस्पर्धा बढ़ाने ताकि किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्त हो सकें, क्रमिक सरकारों द्वारा जो तथाकथित “सुधार” लाए गए थे उसने विनियमित कृषि बाजारों को कमजोर और पतन के ओर ढकेल दिया है। मोदी सरकार द्वारा एपीएमसी बाईपास अधिनियम के तहत दो असमान बाजार व्यवस्था बनाने की नीति, जहां अनियमित “व्यापार क्षेत्र” कॉर्पोरेट और व्यापारियों के फायदे के लिए बनाया गया था, मंडी प्रणाली की कमर तोड़ने के लिए आखिरी तिनका बन गया। प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात और कृषि मंत्री के गृह राज्य मध्य प्रदेश से आ रहे आंकड़े बेहद आपत्तिजनक हैं, और किसान आंदोलन द्वारा किए जा रहे संघर्ष को सही ठहराते हैं।
गुजरात के एक लोकप्रिय दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह के राज्य में कुल 224 एपीएमसी में से लगभग 114 बंद होने वाले हैं, और मोदी सरकार के कई झूठे आश्वासनों के बावजूद, 15 पहले ही बंद हो चुके हैं। इनमें से 22 एपीएमसी जल्द ही अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ होंगे, और 10 एपीएमसी में वेतन में कटौती की गई है। इस स्थिति को देखते हुए, किसानों के लिए भाजपा सरकारों के आश्वासन कि एपीएमसी मंडियां बनी रहेंगी और उनकी रक्षा की जाएगी पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं है।
नरेंद्र सिंह तोमर के गृह राज्य मध्य प्रदेश में, यह बताया गया है कि 62% एपीएमसी मंडियों ने सरकार से अपने कर्मचारियों को वेतन देने में मदद करने के लिए कहा है। मप्र राज्य की 259 कृषि मंडियों में से 49 मंडियों में आय शून्य बताई गई है। 143 मंडियों में, इस वर्ष आय पिछले वर्ष के 50% से कम है (तुलना की समयावधि 1 जुलाई 2019 से फरवरी 2020 और 1 जुलाई 2020 से 15 फरवरी 2021 है)। यह स्थिति कर्नाटक की तरह अन्य राज्यों में भी दिखाई देती है। इस पृष्ठभूमि पर, भाजपा नेताओं द्वारा मंडियों और किसानों के स्थिति में सुधार का खोखला आश्वासन बहुत ही विडंबनापूर्ण और समस्याग्रस्त है। यह स्पष्ट है कि पार्टी उस वास्तविकता को स्वीकार नहीं करना चाहती जिसकी सटीक भविष्यवाणी विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों ने की थी।
न केवल पंजाब और हरियाणा में बल्कि अन्य राज्यों में भी भाजपा और सहयोगी दलों के नेताओं के खिलाफ काले झंडे का विरोध नियमित रूप से हो रहा है। उत्तराखंड में कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत को काले झंडे के विरोध का सामना करना पड़ा, जब किसानों ने नैनीताल जिले में उनके काफिले को रोका और भाजपा के किसान विरोधी रवैये के खिलाफ नारे लगाने लगे। उत्तराखंड कैबिनेट में शहरी आवास मंत्री एक उद्घाटन समारोह में आए थे, जहां उनका स्वागत काले झंडे के साथ किया गया। विरोध कर रहे किसानों ने चेतावनी दी कि जब तक किसान आंदोलन की मांग पूरी नहीं हो जाती, भाजपा नेता जहां भी जाएंगे, उनका शांतिपूर्ण तरीके से विरोध किया जाएगा। पंजाब के मानसा में, किसानों ने कल श्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर एक भाजपा समारोह का विरोध किया। पीएम मोदी के जन्मदिन के जश्न के खिलाफ कई जगहों पर रचनात्मक शांतिपूर्ण विरोध की खबरें आ रही हैं। विशेष रूप से युवाओं ने इस दिन को “जुमला दिवस” के रूप में चिह्नित किया। इस बीच, पंजाब के अमृतसर में भाजपा के श्वेत मलिक के घर के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए किसान अंगरेज सिंह (45) का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। एसकेएम शहीद किसान को श्रद्धांजलि देता है, जो भाजपा नेता के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन में सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले के अरवी में 9 सितंबर को शुरू हुई प्रहार किसान संगठन के 38 किसानों की साइकिल यात्रा 1200 किलोमीटर की दूरी तय कर आज गाजीपुर बार्डर पहुंची। यहां मोर्चा मंच समिति ने साइकिल यात्रियों का गर्मजोशी से स्वागत किया।
महाराष्ट्र में दो दिन पहले शुरू हुई शेतकारी संवाद यात्रा आज अहमदनगर जिले के श्रीरामपुर पहुंची। एक हॉल मीटिंग में कृषि श्रमिकों, किसानों, युवाओं और महिला किसानों की प्रभावशाली उपस्थिति और भागीदारी देखी गई।
देश भर में कई स्थानों पर 27 सितंबर के बंद की तैयारी का काम चल रहा है – हरियाणा के रेवाड़ी और पानीपत, कर्नाटक के तुमकुर, उत्तराखंड के रुड़की, आंध्र प्रदेश के ओंगोल, बिहार के सीतामढ़ी और कई जगहों पर इस तरह की लामबंदी की खबरें आई हैं। छत्तीसगढ़ में 28 सितंबर को राजिम में आयोजित होने वाली राज्य स्तरीय किसान महापंचायत को लेकर लामबंदी बैठकें हो रही हैं।
एसकेएम पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में करनाल की घटनाओं से संबंधित अपने हलफनामे में हरियाणा सरकार द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे किसान विरोधी विचारों की निंदा करता है। एसकेएम ने कहा, “यह शर्मनाक है कि राज्य सरकार शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे किसानों पर आरोप लगा रही है, जबकि वरिष्ठ अधिकारियों ने राज्य सरकार के वरिष्ठतम नेताओं के आशीर्वाद से करनाल में पुलिस से क्रूर हिंसा को बढ़ावा दिया है।”