लोकसभा चुनाव करीब आ रहा है, चुनाव आयोग किसी भी समय चुनाव की घोषणा कर सकता है। चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में मदरसों का नाम उछाला जा रहा है। उत्तर प्रदेश में एक SIT की कमेटी गठन की गई थी, जिसका मक़सद UP में मदरसों का सर्वे करने का था।
विगत दिनों SIT ने अपनी रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप दी है, SIT ने रिपोर्ट में दावा किया है कि इन मदरसों का निर्माण पिछले दो दशकों में खाड़ी देशों से प्राप्त धन से किया गया है। SIT ने जिन 13 हजार मदरसों को बंद करने की सिफारिश की है, उनमें से ज्यादातर नेपाल सीमा से लगे सिद्धार्थनगर महाराजगंज, श्रावस्ती, बहराइच समेत 7 जिलों में हैं। हर एक सीमावर्ती जिले में ऐसे मदरसों की संख्या 500-500 से ज्यादा है।
उत्तर प्रदेश में मदरसे तब से मीडिया की सुर्ख़ियों में बने हुए हैं, जब से राज्य सरकार ने 2022 के मध्य में गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को मैप करने के लिए एक सर्वे की घोषणा की है। सर्वे में, 8,496 मदरसे गैर-मान्यता प्राप्त पाए गए। कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए इल्ज़ाम लगाया था कि यह सर्वे दुर्भावनापूर्ण इरादे से किया गया है और इसका उद्देश्य मदरसा शिक्षा प्रणाली को अपमानित करना है। तत्कालीन समय में यह बातें भी कही गई थीं कि उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में मदरसों को बंद करना चाहती है।
हालांकि, तब मदरसा बोर्ड की ओर से यह कहा गया था कि इनकी जाँच केवल इसलिए की जा रही है जिससे इनमें मौजूद कमियों को दूर किया जा सके और इन मदरसों में पढ़ने वाले छात्र -छात्राओं को अच्छी शिक्षा दिलाने का प्रबंध किया जा सके। लेकिन मदरसों को बंद करने की जो बातें कही जा रही थीं, वह अब सच साबित होने जा रही हैं।
दा हिन्दू की एक रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश माइनॉरिटी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने कहा कि हर बार जब भाजपा सत्ता में आती है तो मदरसा शिक्षा को अपमानित करने के लिए प्रचार किया जाता है। अगर कोई मदरसा गैरकानूनी काम में शामिल है तो कार्रवाई की जानी चाहिए। सरकार को कोई नहीं रोक रहा है लेकिन वे जो कर रहे हैं वह समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए दुष्प्रचार कर रहे हैं।
वहीं उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद की कुंदरकी सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक जियाउर्रहमान बर्क ने कहा कि बीजेपी के पास चुनाव लड़ने का कोई मुद्दा नहीं है। यह लोग मुसलमानों के खिलाफ साजिश रच कर हिंदुत्व को एक करना चाहते हैं।
आगे उन्होंने कहा कि मुसलमान भी इस देश का हिस्सा हैं और मुसलमान भी इस देश के मालिक हैं। मुसलमानों ने भी इस देश को आजाद कराने के लिए अपनी जान और माल की कुर्बानी दी है। आज जो मदरसे चल रहे हैं, उनको बंद कराने का कोई औचित्य नहीं बनता है। इन लोगों ने फर्जी तरीके से टीम गठित करके जो रिपोर्ट सौपी है, मैं पूरी तरह से उसकी मजम्मत और विरोध करता हूं।
आज मदरसों पर कई तरह के सवाल खडे हो रहे हैं लेकिन कोई मुस्लिमों के शिक्षा की बात नहीं कर रहा है। कोई भी सरकार मुस्लिमों के शिक्षा में सुधार की बात नहीं करती आखिर ऐसा क्यों? जस्टिस राजेंद्र सच्चर ने मुसलमानों को आरक्षण देने की वकालत करती हुई ऐसी रिपोर्ट पेश की जिसे पढ़ कर कोई भी ईमानदार शख्स इसे लागू करवाने की मांग करेगा। सच्चर कमेटी की उस रिपोर्ट बताया गया था कि मुसलमानों के हालात दलितों से भी बदतर हैं। जस्टिस सच्चर ने किसी एक भौगोलिक क्षेत्र के कुछ मुसलमानों, सवर्ण अथवा पिछड़े मुसलमानों की बात नहीं कि थी बल्कि उन्होंने उस रिपोर्ट में हर एक मुसलमान की बात लिखी थी।
आज भी लाखों की तादाद में मुस्लिम बच्चे मदरसा तो छोड़िए, बेसिक स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। मुद्दा होना चाहिए था उन बच्चों को कैसे शिक्षित बनाया जाए। मदरसों में सिर्फ मज़हबी नहीं बल्कि एक ज़िम्मेदार, आत्मनिर्भर और मेहनतकश इंसान बनने की शिक्षा दी जाती है। वहां से मौलाना आज़ाद बने, वहीं से ज़ाकिर हुसैन और वहीं से कलाम बने और लाखों की तादाद में बच्चे पढ़ कर देश की बड़ी-बड़ी संस्थानों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
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