“इसी मिजाज से भारत सरकार एक योजना लाई। वो योजना यह है कि देश की दस प्राइवेट यूनिवर्सिटी और देश की दस पब्लिक यूनिवर्सिटी, इन दस दस टोटल 20 यूनिवर्सिटी इनको वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए एक, आज जो सरकार के सारे बंधन हैं, सरकार के जो कानून नियम हैं, उससे उनको मुक्ति देना।
दूसरा,आने वाले पांच साल में इन यूनिवर्सिटी को दस हजार करोड़ रुपया देना। लेकिन ये यूनिवर्सिटी का सलेक्शन किसी नेता की इच्छा पर नहीं होगा, प्रधानमंत्री की सिफारिश पर नहीं होगा। पूरे देस की यूनिवर्सिटी को चैलेंज रुप में निमंत्रित किया गया है। उसमें हर किसी को आगे आना होगा और अपने सामर्थ्य को सिद्ध करना होगा। उनका एक थर्ड पार्टी प्रोफेशनल एजेंसी के द्वारा सलेक्शन होगा।
उसमें राज्य सरकारों की भी जिम्मेवारी होगी। उनके इतिहास परफार्मेंस को देखा जाएगा।ये जो टोटल बीस यूनिवर्सिटी आएगी, उन्हें सरकार के नियमों से मुक्त कर स्वतंत्रता दी जाएगी, जिस दिशा में बढ़ना है, मौका दिया जाएगा। पांच साल के भीतर दस हज़ार करोड़ दिया जाएगा। ये सेट्रल यूनिवर्सिटी से कई गुना आगे है।
इसमें पटना यूनिवर्सिटी पीछे नहीं रहनी चािए। ये निमंत्रण देने आया हूं। पटना यूनिवर्सिटी आगे आए,उसकी फैक्लटी आगे आए, पटना यूनिवर्सिटी हिन्दुस्तान की आन बान शान, जो पटना की ताकत है, वो विश्व के अंदर भी पटना यूनिवर्सिटी की ताकत बने,उसे आगे लेकर चलने की दिशा में आप मेरे साथ चलिए।”
यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण का अंश है। 2017 में पटना यूनिवर्सिटी के सौ साल होने के मौके पर बोलते हुए उन्होंने एक योजना के बारे में एलान किया था। उनके भाषण के इस अंश को आप ध्यान से पढ़िए। एक से अधिक बार पढ़ कर देखिए। उस वक्त उनकी सभा में बैठे नौजवान के मोदी मोदी करने और ताली बजा रहे थे।
वहां पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मांग की थी कि इसे केंद्रीय यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया जाए ताकि कुछ आर्थिक मदद मिल जाए और लड़खड़ाता सा यह विश्वविद्यालय थोड़ा चलने लगे। वैसे तो राज्य सरकार को ही यह जवाबदेही लेनी चाहिए थी कि उसके राज्य में एक यूनिवर्सिटी तो कम से कम ढंग की हो। नीतीश कुमार बीस साल से सरकार में है। बहरहाल, मैं उस सभा में मौजूद छात्रों और शिक्षकों की आज प्रतिक्रिया जानना चाहूंगा कि तब इसे सुनते हुए उनके दिलो दिमाग़ पर क्या असर हुआ था और बाद में क्या समझ आया।
बहरहाल अधमरी हो चुकी पटना यूनिवर्सिटी को इस रेस में आना ही नहीं था। वो जहां थी वहीं पर आज भी है। इसलिए उस सभा में मौजूद छात्रों को जमा कर इसी भाषण को दुबारा चला कर एक अध्ययन किया जा सकता है कि तब और अब में क्या फर्क समझ आया।
इसके बाद वही छात्र अब दस हज़ार करोड़ से दुनिया की टॉप 500 यूनिवर्सिटी में पहुंचने के लिए जिन बीस संस्थानों का चयन किया गया है उसकी सूची देखें। उसमें वही संस्थान हैं जो पहले से बेहतर हैं। कई बार टॉप 500 यूनिवर्सिटी की सूची में आते रहे हैं। फिर आप बजट पत्र का अध्ययन करें।
पता करें कि इन पांच सालों में दस हज़ार करोड़ की सहायता से टॉप 500 में शामिल होने वाली इन यूनिवर्सिटी या संस्थानों की क्या हालत है। क्या सरकार ने दस हज़ार करोड़ दिया? पांच साल निकल गए। दूसरा अगर दिमाग़ में जगह बची हो तो यह भी सोचें कि दस संस्थानों को दस हज़ार करोड़ देकर टॉप 500 में पहुंचा देने से भारत की उच्च शिक्षा की समस्या दूर हो जाएगी? बाकी तमाम सैंकड़ों यूनिवर्सिटियां कबाड़ होती जा रही हैं।
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प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के छठे वर्ष नई शिक्षा नीति आई। यह अभी लागू ही हो रही है। पता चलता है कि शिक्षा को लेकर वाकई उनकी प्राथमिकता क्या है। यह अलग विषय है। इस पर विस्तार से लिखा जा सकता है और चर्चा हो सकती है।
आज प्रधानमंत्री मोदी अलीगढ़ में हैं। वहां पर एक नई यूनिवर्सिटी की आधारशिला रखने जा रहे हैं। यूपी के छात्र ही बता सकते हैं कि पांच साल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यूपी की कितनी यूनिवर्सिटी में गए हैं। गए हैं या नहीं, मैं नहीं जानता। मैं पूछ रहा हूं। अलीगढ़ नाम का एक खास सियासी महत्व है इसलिए वहां पर आधारशिला रखी जा रही है।
इस वक्त इस बात से उत्साहित लोग नोट करेंगे कि यह यूनिवर्सिटी कितने साल में बनकर तैयार होती है, इसकी पूरी फैक्लटी बहाल होती है या नहीं। आप जानते हैं कि एम्स के नाम पर क्या होता है। एलान होता है और एम्स दस बीस साल तक बनता ही रहता है।
यूपी के लोग ही बता सकते हैं कि उनके ज़िले में कौन सा कालेज बन कर तैयार है और शिक्षकों की बहाली के कारण चालू नहीं हुआ है। किसी स्थापित यूनिवर्सिटी में जाने के बजाए नई यूनिवर्सिटी के शिलान्यास का रास्ता चुना गया ताकि वहां से यूपी के युवाओं को शिक्षा पर भाषण दिया जा सके। स्थापित यूनिवर्सिटी में जाने से क्या पता छात्र नौकरी और पढ़ाई की हालत पर हंगामा करने लगते या क्या पता सभी में आते ही नहीं।
यूजीसी की वेबसाइट पर उत्तर प्रदेश में चल रही तमाम यूनिवर्सिटी के नाम मैंने उतारे हैं। दो चार नाम छूट गए हैं। ये सभी राज्य सरकार के तहत चलने वाली यूनिवर्सिटी हैं। मेरे पेज पर उत्तर प्रदेश के तमाम कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़े छात्र होंगे ही। क्या पिछले पांच साल और पहले के भी पांच या जितने साल के अनुभवों के बारे में लिखना चाहेंगे? बेशक कुछ लोग ट्रोल बन गए होंगे और यहां अनाप-शनाप लिखेंगे ही फिर आप अगर लिखें तो पता चलेगा कि यूपी की राजकीय यूनिवर्सिटी की क्या हालत है।
वहां आपने पढ़ने के नाम पर कुंजी या गाइड बुक का सहारा लिया, नकल होते देखा या वाकई शिक्षक पढ़ाते थे और उनकी गुणवत्ता अच्छी थी। दरअसल इसका मूल्याकंन करना सभी को नहीं आएगा लेकिन कोशिश करेंगे तो आप समझ पाएंगे कि आपके जीवन को कैसे बर्बाद किया गया है। अगर आप अलीगढ़ बनाम अलीगढ़ की जगह इसी बहाने उच्च शिक्षा की बात करेंगे तो बेहतर होगा। आपका भी और उत्तर प्रदेश का भी।
लखनऊ यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद राजकीय विश्वविद्यालय, बांदा यूनिवर्सिटि ऑफ एग्रीकल्चर एंट टेक्नॉलजी, बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, चंद्रशेखर आज़ाद यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंट टेक्नॉलजी, छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर यूनिवर्सिटी, चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी,दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी, डॉ ए पी जी अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटीडॉ भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी,
डॉ राम मनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी, डॉ राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़, डॉ राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, डॉ शकुंतला मिश्रा नेशनल रिहैबलिटेशन यूनिवर्सिटी, गौतम बुद्ध यूनिवर्सिटी, हर्कोट बटलर टेक्निकल यूनिवर्सिटी, जननायक चंद्रशेखर यूनिवर्सिटी, ख्वादा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू अरबी फारसी यूनिवर्सिटी, किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी आफ टेक्नालजी, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी, नरेंद्र राव यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नालजी, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, सरदार वल्लभ भाई पटेल यूनिवर्सिटी आफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नालजी, सिद्धार्थ यूनिवर्सिटी, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल यूनिवर्सिटी
बेहतर होगा कि आप तस्वीरें भी साझा करें। तस्वीर खींचते समय ध्यान रखें। मोबाइल फोन को लैंडस्केप मोड में कर दें।
जिस तरह आप गाना देखते समय चौड़ा कर देते हैं वैसे। तब तस्वीर लें। कक्षा, शौचालय, प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों और परिसर की तस्वीर पोस्ट करें। यह भी बताएं कि इन विश्वविद्यालयों के कालेजों में शिक्षक हैं या नहीं?
इन शिक्षकों को वेतन समय पर मिलता है? क्या सभी विषयों के शिक्षक हैं? किस विषय के शिक्षक न होने के कारण आपने कैसे पढ़ाई की? क्या आपका कालेज जाने का अनुभव सार्थक हुआ? चिन्ता मत कीजिए कांग्रेस की सरकारों का भी यही हाल है। यह तभी सुधरेगा जब आप शिक्षा को लेकर ईमानदारी से बात करेंगे। आज वो मौका आया है कि यूपी उच्च शिक्षा को लेकर बात करे।
Ravish Kumar