मणिपुर में हिंसा भड़के 2 महीने से ज्यादा हो चुके हैं। पिछले 2 महीनों से चल रही हिंसा के दौरान सरकार ने कोई कड़ा एक्शन नहीं लिया, जिसका नतीजा रहा कि 4 मई को इंसानियत को शर्मसार करने वाली दो-तीन कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया जाता है। 4 मई को कुकी महिलाओं को निवस्त्र करके घुमाने का वीडियो 19 जुलाई को वायरल हुआ, पूरी दुनिया में भारत को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। मणिपुर में 2 महीनों से ज्यादा हिंसा चलने के बावजूद बिरेन सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इस पूरे घटनाक्रम में सरकार आंख बंद करके सब होने दिया और चुपचाप दर्शक बनकर देखती रही।
ऐसी ही दरिंदगी 2002 में गुजरात दंगों के दौरान भी देखी गई थी, फ़र्क़ इतना है कि वहां निशाने पर मुसलमान थे, तो मणिपुर में निशाने पर ईसाई हैं। मणिपुर में तीन कुकी महिलाओं पर हुए यौन अत्याचार और नफरत की हवा में बहने वाली भीड़ द्वारा उन्हें निर्वस्त्र कर उनकी परेड निकाली गई, जबकि पुलिस कथित तौर पर खामोश खड़ी थी। इस दिल दहला देने वाले वीडियो ने गुजरात दंगों में बिलकीस बानो के साथ दो दशक पहले हुए सामूहिक अत्याचार, उसके रिश्तेदारों की वहीं पर की गई हत्या और 2002 के दंगों की घटना के दृश्य सामने आए हैं।
दरिंदगी करने वालों को सत्ता में बैठे लोग ही संरक्षण दे हैं। गुजरात दंगों में जितने भी मुकदमा दर्ज हुए थे, सभी आरोपियों को निचली अदालतों से बरी करा दिया गया। गैंगरेप के जिन आरोपियों को हाईकोर्ट तक से उम्र कैद की सजा मिली थी, बिलकीस बानो के उन दरिंदों को सरकार ने एक कमेटी बनाकर रिहा करने का फैसला करा दिया। ज़ब सरकार के संरक्षण में इस तरह के दरिंदों को खुली छूट मिल रही है तो ऐसे फैसलों के बाद धर्म के नशे में चूर नौजवान आखिर क्या सबक सीखेंगे?
विडंबना ही है कि ऐसे निर्दयी, बर्बरों को राजनीतिक शह भी मिलती है और दोनों के बीच आपस में गठबंधन रहता है, तालमेल बना रहता है। समाज ही मौन होकर ऐसे बलात्कारियों को ‘संस्कारी ’ होने का प्रमाणपत्र मिलता देखता रहता है और इस बात से भी गुरेज नहीं करते कि उनका सार्वजनिक अभिनंदन हो रहा है।
मणिपुर को ईसाई मुक्त बनाने की सपना देखने वाले दक्षिणपंथी संगठन RSS के नेताओं को भी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि मणिपुर की ईसाई महिलाओं के खिलाफ ऐसी घिनौनी हिंसा की जा सकती है। जिस तरह की खबर आ रही थीं इसमें कोई शक नहीं है कि दक्षिणपंथी संगठन वहां के चर्च के खिलाफ ज़रूर मुहिम चला रहे थे परन्तु महिलाओं के साथ दरिंदगी की घटनाओं को बढ़ावा कोई भी संगठन नहीं देगा।
हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक RSS के वरिष्ठ पदाधिकारी ने बातचीत के दौरान मणिपुर हिंसा को लेकर कहा कि ये बिल्कुल भी हिंदू-ईसाई संघर्ष नहीं है। कुछ पार्टियों ने इसे साजिश के तहत ऐसा पेश करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि कुकी ईसाई समुदाय से आते हैं, जबकि बहुसंख्यक मैतई हिंदू हैं। इसके बावजूद उनके बीच हो रहा टकराव धर्म के आधार पर नहीं है। हालांकि आरएसएस पदाधिकारी ने माना कि इस हिंसा ने मणिपुर को एक ऐसा घाव दिया है, जिसे भरने में कई साल लग जाएंगे।
मणिपुर में तीन मई से जो कुछ हो रहा है, वह महज धार्मिक या अधिकारों की रक्षा को लेकर हिंसा नहीं है। जो सुबूत सामने आ रहे हैं उनसे साफ लगता है कि मणिपुर में कुकी और मिजो ईसाइयों के खिलाफ एक सोची समझी साजिश के तहत हिंसा हुआ है। कुकी-जोमी समुदाय से आने वाले बीजेपी विधायक पाओलीनलाल होकिप ने मुख्यमंत्री बिरेन पर सांठगाँठ का आरोप लगाया था। उन्होंने आरोप लगाया कि 3 मई 2023 को चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी आदिवासियों के खिलाफ हो रहे हिंसा पर मणिपुर की मौजूदा सरकार मौन रूप से समर्थन कर रही है। बहुसंख्यक मैतेई लोगों की ओर से शुरू की गई हिंसा ने पहले ही राज्य को विभाजित कर दिया है। हाओकिप उन 10 कुकी विधायकों में शामिल हैं, जिन्होंने एक पत्र में एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर आदिवासी समूह की ‘रक्षा करने में गंभीर विफलता’ का आरोप लगाते हुए एक ‘अलग प्रशासन’ की मांग की थी।
शर्मनाक घटना की वीडियो वायरल होने के बाद मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए साफ कहा कि आप इस एक घटना की बात कर रहे हैं यहां ऐसे सौ से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। यहाँ 6000 रिपोर्ट दर्ज की गई, ये सब मुख्यमंत्री ऐसे बता रहे थे जैसे वह कोई अपनी उपलब्धि को गिना रहे हों।
अगर मुख्यमंत्री बिरेन को 100 से ज्यादा ऐसे दहला देने वाले घटनाओं और 6000 एफआईआर की जानकारी थी तो क्या उन्होंने पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को इसकी सूचना नहीं दी थी? गवर्नर अनुसुइया उइके कह रही हैं कि उन्होने हर हफ्ते मणिपुर के घटना की रिपोर्ट ‘ऊपर’ भेजा है। इसके बावजूद पीएम मोदी और सरकार में बैठे मंत्रियों ने खबरों को दबाए रखा। इतनी बड़ी घटना के रिपोर्ट मिलने के बावजूद चुप रहना बहुत बड़ी नाकामी है या फिर वह चाहते हैं कि मणिपुर में कुकी ईसाइयों के खिलाफ गुजरात में हुए मुसलमानों के साथ की तरह दरिंदगी और इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटनाएं होती रहें।
जदीद मर्कज़ में छपी रिपोर्ट के अनुसार सीनियर जर्नलिस्ट अशोक वानखेड़े बताते हैं कि मैतेईयों ने पुलिस की 4537 रायफलें और 63200 कारतूस लूट लिए बल्कि उन्हें सरकार ने लुटवा दिया क्योंकि असलहे पुलिस रिजर्व बटालियन पुलिस ट्रेनिंग सेण्टर और मणिपुर रायफल्स से लूटे गए पुलिस तो लुटेरों के साथ मिली हुई ही है।
मणिपुर में तैनात पैरा मिलीट्री फोर्सेज और फौजी जवान भी दर्शक बने रहे, शायद उन्हें कोई कार्रवाई न करने के निर्देश दिए गए थे। जो दरिंदे सरकारी असलहे लूट कर दहशत फैला रहे हैं वह पूरी तरह से फौज की ड्रेस में आते हैं। दिल्ली से एन बीरेन सिंह को पूरी तरह हिमायत मिल रही है इसका अंदाजा दिल्ली में हो रही सरगर्मियों और मंत्रियों के बयान से साफ नजर आता है।
दिल्ली से CM बिरेन को बचाने के लिए केंद्रीय मंत्री आए विपक्षी दलों के राज्य सरकारों की कमियों को गिनाकर अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश कर रही है। विपक्ष इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रही है, तो इसके बदले में विपक्षी सांसदों को पूरे सत्र से निलंबित किया जा रहा है।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और अनुराग ठाकुर समेत अन्य नेता ने कहना शुरू कर दिया कि विपक्षी दलों के सरकारों वाली राज्यों में भी आए दिन रेप की घटनाएं हो रही हैं, उनपर इतना हंगामा क्यों नहीं होता। आखिर यह कैसी दलील है कि आपने गलत किया है तो उसके खिलाफ बोलने के बजाए मैं खुदग लत करूँगा?
यहाँ के चुनावी आंकड़ों से साफ अंदाजा हो जाएगा कि आखिर इस पूरे घटनाक्रम में प्रदेश सरकार ने चुप्पी क्यों साध रखी है प्रदेश मैतेयी समुदाय आबादी में बहुसंख्यक है और इंफाल घाटी के आसपास रहते हैं। प्रदेश की 60 विधानसभा सीटों में से 40 पर इसी समुदाय के विधायक हैं और सीएम एन बीरेन सिंह भी इसी समुदाय से आते हैं।
मणिपुर हिंसा के दौरान हुई शर्मनाक घटनाओं के सोशल मीडिया पर वायरल होने बाद पूरे देश भर में एक सुर में मणिपुर के CM एन बिरेन सिंह के इस्तीफे मांग उठी जिसका CM बिरेन पर कोई असर नहीं पड़ा। उसके बाद CM बिरेन को बर्खास्त करने की मांग की गई परन्तु केंद्र सरकार चुप रही, आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि सरकार बिरेन सिंह को बर्खास्त नहीं कर रही है?