राज्यसभा में देश के गृहमंत्री का भाषण सुन रहा था, वो कहते हैं – ” हम विश्वास दिलाते हैं कि नागरिकता संशोधन बिल (CAB) से देश के किसी मुसलमान को नुकसान नहीं होगा” । सुनकर अचानक से हिटलर की याद आ गयी ।
बात 15 सितंबर 1935 की है। जर्मन के अंदर ‘न्यूरेम्बर्ग कानून’ बनाकर जर्मनी यहूदियों को जर्मन नागरिकता से वंचित कर दिया गया । जर्मन की नाज़ी तानशाही में यह महत्वपूर्ण पड़ाव था जिसका खामियाजा अंत में बड़े पैमाने पर यहूदी नरसंहार और दूसरे विश्वयुद्ध के रूप में सामने आया जिसमें 60 लाख से ज़्यादा यहूदी मारे गए ।
लोकसभा के बाद नागरिकता संशोधन बिल (CAB) राज्यसभा में भी पास हो गया है, यानी की संविधान आधारित स्वतंत्रता, समानता और पंत-निरपेक्षता हार गई।
ये सब हार गए तो फिर जीता कौन ?
जातिवादी, कट्टरवादी, अतिवादी, उन्मादी और साम्प्रदायिक ताक़तें जीत गयी । वो अलग बात है कि यदि देश सीरिया नहीं बना तो इन्हें न इतिहास माफ़ करेगा और न ही आने वाली पीढ़ियां ।
वैसे भी भाजपा सरकार की लगभग 6 साल की नाकामियां अनगिनत हैं, न किसानों की आय दोगुनी हुई, न गंगा साफ हुई, न अर्थव्यवस्था में सुधार लाए, न नौकरियां लाए, न बेटियों को बचा पाए, न विकास कर पाए और न ही आतंकवाद की कमर तोड़ पाए ।
अब राजनीति धयान हटाने और समाज बांटने की चल रही है, ऐसा लग रहा है जैसे नागरिकता संशोधन बिल (CAB) लागू होते ही हमारी इकॉनमी 5 ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी, देश का बच्चा-बच्चा संस्कृत बोलते हुए भरपेट खाना खायेगा और प्रत्येक व्यक्ति के पास अपनी गाड़ी, अपना घर और नौकरी होगी।
परेशान हूँ ये सोचकर कि यह लोग किस देश को बांटना चाहते हैं ? क्या उस देश को जिस देश में मैं अपने मसलमान दोस्तों के साथ एक प्लेट में खाना खाता हूं ? क्या उस देश को जिस देश में संकट मोचन के मंदिर में उस्ताद बिस्मिल खां की शहनाई बजती है ? क्या यह लोग उस देश को बांटना चाहते हैं जिस देश में मौहम्मद रफ़ी गाना गाते हैं -” मेरे रोम रोम में बसने वाले राम,जगत के स्वामी, ए अंतर्यामी..! मैं तुझसे क्या मांगू ” ?
आखिर देश के मुसलमानों के साथ दुश्मनों जैसे सुलूक क्यों ? क्या देश के इतिहास में, विकास में, आज़ादी में देश के मुसलमानों का कोई योगदान नहीं ? क्या वीर अब्दुल हमीद से लेकर अशफ़ाक़ उल्ला खान, बिस्मिल खान, बहादुर शाह ज़फ़र आदि की कुर्बानियों को भुला देना इतना आसान है ?
ख़ैर…
मुसलमानों…! तुम भी एक बात समझ लो…नागरिकता संशोधन बिल (CAB) सिर्फ शिया, सुन्नी, देवबन्दी, बरेलवी, अहमदी, बोहरा या वहाबी के लिए नहीं है बल्कि सभी मुसलमानों के लिए है ।
तुमको मुबारकबाद भी देता हूँ कि तुम फिरकों के चक्कर में आपस में एक दूसरे फिरकों को काफ़िर कहकर संबोधित करते रहो लेकिन सरकार ने तुम सबको मुसलमान मान लिया है ।
किसका पजामा कितना ऊंचा है, किसकी टोपी कितनी बड़ी है, किसकी टोपी रंगीन है और किसकी काली है, कौन मजलिस-मातम करता है और मजलिस-मातम देखकर किसका निकाह टूटता है, किसकी मूंछे हैं और किसकी दाड़ी है, किसकी झोपड़ी है और किसका महल है, किसका टायर पंक्चर बनाने का खोखा है और किसका पेट्रौलपम्प है…
ये सब तुम जानों लेकिन बस इतना बता दो की तुम में से वो कौन है जिसको मुसलमान नहीं मानकर नागरिकता संशोधन बिल (CAB) से अलग रखा गया हो।
ख़ैर… तुम्हारे मस्लक़ो के झगड़े हैं , तुम जानों ।
मूसा ने ठोकर खाकर सबक लिया था, गांधी को एक धक्के ने जगाया था, और तुम कब जागोगे ये तुम्हारा मसअला है । मुझे क्या मैं तो ख्वामख्वाह ही लिख रहा हूँ, तुम तो अपने अल्लाह के कहने से नहीं जागे, अपने रसूल के कहने से नहीं जागे और अपने क़ुरआन के कहने से नहीं जागे तो मेरे लिखने से भला कैसे जाग जाओगे ? तुमको जगाने के लिए फिर एक कर्बला की ज़रूरत है ।
वो कर्बला जिसमें हुसैनी गुण हो, हुसैनी जज़्बा हो, हुसैनी अंदाज़ हो । कर्बला को पढ़ो फिर कर्बला से सीखो ।
विपुल चौहान