सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने एक आदेश के पालन में विफल रहने पर भाजपा, कांग्रेस, राकांपा और सीपीएम सहित कई राजनीतिक दलों पर जुर्माना लगाया है.
यह मामला पिछले साल बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास को सार्वजनिक करने के सुप्रीम कोर्ट के पहले के फ़ैसले के पालन न करने से जुड़ा है.
अदालत ने भाजपा और कांग्रेस पर अपना आदेश न मानने पर एक-एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया है.
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म कोर्ट का ताज़ा फैसला जस्टिस रोहिंटन फ़ली नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला जस्टिस रोहिंटन फ़ली नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने सुनाया. अदालत मंगलवार को उसके आदेश न मानने के आरोप में राजनीतिक दलों के ख़िलाफ़ दायर अवमानना याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी.
सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला जस्टिस रोहिंटन फ़ली नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने सुनाया. अदालत मंगलवार को उसके आदेश न मानने के आरोप में राजनीतिक दलों के ख़िलाफ़ दायर अवमानना याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फ़रवरी 2020 में कहा था कि सभी राजनीतिक दलों को यह बताना जरूरी होगा कि आपराधिक मामलों या उससे जुड़े उम्मीदवारों को चुनाव में खड़ा नहीं करना क्यों ज़रूरी है. इसके साथ यह भी कहा गया था कि सभी पार्टियों को ऐसे उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ दर्ज सभी मामलों का ब्यौरा अपनी पार्टी की वेबसाइट पर अपलोड करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने ताज़ा फैसले में कहा है कि ”पिछले साल उसकी संविधान पीठ द्वारा जारी निर्देशों को और आगे बढ़ाते हुए हम और निर्देश देना ज़रूरी समझते हैं. ऐसा करने से मतदाताओं के जानने के अधिकार को और प्रभावी और अधिक सार्थक बनाया जा सकेगा.”
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वहीं सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को इस बारे में एक समर्पित मोबाइल ऐप्लीकेशन बनाने का निर्देश दिया है. इस ऐप में उम्मीदवारों की ओर से दिए गए अपने आपराधिक इतिहास के ब्यौरे को बताया जाएगा. इससे हर मतदाता को उसके मोबाइल पर बड़ी आसानी से एक झटके में ऐसी तमाम जानकारी मिल सकेगी.
देश की शीर्ष अदालत ने अपने फ़ैसले में चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि वह मतदाता के जानने के अधिकार को लेकर जागरूकता अभियान चलाए. इस अभियान के तहत सभी उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास से मतदाताओं को अवगत भी कराने की मुहिम भी चलाई जाए. ऐसा सोशल मीडिया, वेबसाइटों, टीवी विज्ञापनों, प्राइम टाइम डिबेट, पैम्फ़लेट समेत अनेक तरीकों से किया जाए.
अदालत ने चुनाव आयोग को इस उद्देश्य के लिए अगले चार सप्ताह के भीतर एक फ़ंड बनाने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस फ़ंड में अदालत की अवमानना के लिए लगने वाले जुर्माने को डाला जा सकता है.
अपने फ़ैसले में अदालत ने कहा, “चुनाव आयोग को एक अलग सेल बनाने का निर्देश दिया जाता है. यह सेल अदालत के फ़ैसले के पालन की निगरानी करेगा. इससे राजनीतिक दलों पर नजर रखी जा सकेगी. हमारे आदेशों के पालन के लिए चुनाव आयोग अपने निर्देश, पत्र और परिपत्र जारी कर सकता है. इन निर्देशों का राजनीतिक दलों से पालन कराने के लिए यह सेल काम करेगा और यदि कोई ऐसा न करे, तो यह सेल तुरंत अदालत को अवगत कराएगा.”
सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले में यह भी साफ किया कि प्रकाशित की जाने वाली सूचनाओं को उम्मीदवार अपने चयन के 48 घंटों के भीतर ही जारी करें, न कि नामांकन दाख़िल करने की पहली तारीख़ के दो सप्ताह पहले.
अदालत ने यह भी दोहराया कि यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव आयोग को उसके निर्देशों के पालन करने की रिपोर्ट मुहैया नहीं कराता, तो चुनाव आयोग इसे सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाएगा. इस तरह की विफलता को अदालत की अवमानना मानी जाएगी और ऐसी विफलता को भविष्य में बहुत गंभीरता से देखा जाएगा.