दिल्ली सरकार के इस इनकार के बावजूद कि कोविड-19 की ‘तीसरी लहर’ देश की राजधानी में नहीं आई है, पिछले दो दिनों से संक्रमण के मामले अब तक सबसे ज़्यादा दर्ज किए गए हैं। बुधवार को जहां 5673 मामले दर्ज किये गए वहीं गुरुवार को ये आंकड़ा 5729 पर पहुंचा गया. शुक्रवार को 5891 नए मामले सामने आए।
ये अब तक दिल्ली में किसी एक दिन दर्ज किये गए कोरोना वायरस के संक्रमण के मामलों में सबसे ज़्यादा है। दिल्ली में कोरोना संक्रमण से मरने वालों की संख्या भी 6423 तक पहुँच गयी है।
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बढ़ते हुए मामलों के साथ ही दिल्ली में संक्रमण का ‘पॉज़िटिविटी रेट’ भी 9.55 हो गया है जबकि देश की राजधानी में अब तक संक्रमित होने वालों की संख्या 3.75 लाख पहुँच चुकी है।
इसी बीच चिकित्सा की सुविधाओं की अगर बात की जाए तो कोविड-19 के उपचार के लिए चिन्हित किए गए अस्पतालों में अब एक अस्पताल कम हो गया है जबकि मामले प्रतिदिन के हिसाब से बहुत ज़्यादा बढ़ रहे हैं।
ये अस्पताल है हिंदू राव अस्पताल जहां पर रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन की लंबी हड़ताल चली। उत्तरी दिल्ली में कोविड-19 के मरीज़ों का इलाज इसी अस्पताल में होता था।
यहाँ पहले से भर्ती कोविड-19 के मरीज़ों को भी दूसरे अस्पतालों में भेज दिया गया। पत्रकारों से बात करते हुए दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन का कहना है कि संक्रमित लोगों की संख्या इसलिए ज़्यादा दिख रही है क्योंकि दिल्ली में पहले से भी ज़्यादा टेस्टिंग हो रहे हैं।
इसके अलावा उन्होंने कहा कि अब राज्य सरकार ने संक्रमित लोगों के परिवार के लोगों और उनसे संपर्क में आये लोगों को ढूंढ कर इलाज करने के काम में भी तेज़ी लायी है।
लेकिन, कपिल चोपड़ा, जो ग़रीबों के लिए नीजी अस्पतालों में मुफ़्त चिकित्सा की संस्था ‘चैरिटी बेड्स’ चलाते हैं, उनका कहना है, “दिल्ली को बढ़ते हुए संक्रमण के मामलों से निपटने के लिए मदद की ज़रूरत है।
स्थिति को क़ाबू में लाने के लिए सरकार को चाहिए कि वो कुछ पाबंदियां लागू करे जिससे जगह-जगह भीड़ न लगे और लोग ज़्यादा मेलजोल से दूर रहें। गंभीर बात ये है कि सारे अस्पताल संक्रमित मरीज़ों से भरे हुए हैं और अस्पतालों में नए मरीज़ों के लिए जगह नहीं है।”
जिन राज्यों में संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गयी है उनमें दिल्ली के अलावा पश्चिम बंगाल और केरल शामिल है। अपने बयान में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि पिछले दस महीनों में कोरोना के ख़िलाफ़ युद्ध में मास्क और दो गज़ की दूरी ‘रामबाण’ साबित हुए हैं।
उनका कहना था कि संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए ‘कोविड अनुरूप व्यवहार’ को ‘जन आंदोलन’ की तरह चलाया जाना चाहिए। लेकिन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के डॉक्टर विजय के अनुसार, देखा जाए तो अभी भी कोविड-19 का सही से प्रबंधन नहीं हो पा रहा है।
क्योंकि जो संक्रमण से बचाव के तरीक़ों की बात केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री कर रहे हैं, वो लागू होते नहीं दिख रहे। उनका कहना है कि गृह मंत्रालय अपनी ‘गाइडलाइन्स’ जारी करता रहता है, वहीं चुनाव आयोग और स्वास्थ्य मंत्रालय भी अपनी गाइडलाइन्स जारी करते हैं।
इलाज कराने के लिए गए लोगों का कहना है कि एम्स में भी ‘बेड’ की काफ़ी कमी है जबकि कोविड-19 के लिए अलग इंतज़ाम किया गया है। मरीज़ों का कहना है कि अस्पताल के आपातकाल वाले वॉर्ड में भी तीन-तीन घंटों तक इंतज़ार करना पड़ रहा है।
उनके अनुसार गंभीर सिर की चोटों या दूसरी गंभीर दुर्घटनाओं के मरीज़ों को भर्ती करने की बजाय एम्स से दूसरे अस्पतालों में ‘रेफ़र’ किया जा रहा है।
वर्धमान महावीर अस्पताल मेडिकल कॉलेज और सफ़दरजंग अस्पताल में ‘कम्युनिटी मेडिसिन’ के विभागाध्यक्ष और निदेशक डॉक्टर जुगल किशोर ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उनके अस्पताल की जो ‘सुपर स्पेशलिटी’ वाली ‘बिल्डिंग’ थी जिसमें हृदय रोग से लेकर दूसरे गंभीर रोग से जूझ रहे मरीज़ों को भर्ती किया जाता था, वो अब पूरी तरह से कोविड-19 के मरीज़ों के लिए अलग कर दी गयी है।
जुगल किशोर कहते हैं कि उनका अस्पताल ही है जो कोविड-19 के मरीज़ों के साथ-साथ उन गंभीर चोटों या बीमारियों वाले मरीज़ों को भी देख रहा है जिन्हें दूसरे अस्पताल लेने से मना कर रहे हैं। वो कहते हैं, “फिर भी स्थिति ऐसी है कि जो कोविड-19 के संक्रमण वाले मरीज़ नहीं भी हैं उन्हें हम भर्ती नहीं कर पा रहे हैं और उनका इलाज ‘ओपीडी’ में ही हो रहा है।”
कोरोना वायरस के मरीज़ों के इलाज में लगे डॉक्टरों का आरोप है कि अब भी अस्पतालों में ऑक्सिजन वाले ‘बेड’ की कमी है। जहां तक बात एम्स की होती है तो मरीज़ों के परिजनों का आरोप है कि इस अस्पताल में प्राथमिकता मंत्रियों, सांसदों या अधिकारियों को दी जाती है जबकि आम कोविड-19 के संक्रमण वाले मरीज़ों को मशक्कत करनी पड़ती है।
दिल्ली में ‘तीसरी लहर’ की है शुरुआत? वहीं जुगल किशोर संक्रमण के बढ़ रहे मामलों को ‘कोई तीसरी लहर’ के रूप में नहीं देखते। वो दावा करते हैं, “संक्रमण की अगर वास्तविकता में लहर की बात की जाए तो वो विश्व के इतिहास में ये सिर्फ़ एक बार आई थी। वो वक़्त था ‘स्पेनिश फ़्लू’ का।
इसलिए भी लहर देखने को मिली थी क्योंकि ‘स्पेनिश फ़्लू’ के ‘वायरस’ में रूपांतरण यानी ‘म्यूटेशन’ हुआ था। भारत की अगर बात की जाए तो लहर बहुत बड़ी होती है, छोटी नहीं. अलग-अलग स्थानों पर कोविड-19 के संक्रमण के मामले कभी बढ़ते हैं तो कभी उनमें कमी आती है, इसके अलग-अलग कारण हैं।”
उनके अनुसार जून महीने में ज़्यादा मामले दर्ज हुए जबकि जुलाई के अंत तक ये घटने लगे। फिर सितम्बर से मामले बढ़ते दिख रहे हैं। इसका कारण वो कहते हैं कि एक तो अर्थव्यवस्था खुल गयी। और दूसरी बात कि लोग संक्रमण के प्रति बेपरवाह होते जा रहे हैं और ऐसा आचरण पेश कर रहे हैं जैसे ये संक्रमण पूरी तरह ख़त्म हो गया हो।
वो कहते हैं जब कोई इंसान संक्रमण काल में ढिलाई से पेश आता है तो फिर उसके संक्रमित होने के आसार बढ़ जाते हैं जो अब हो रहा है इसीलिए संक्रमण फैल रहा है।
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महामारी के विशेषज्ञों ने दिल्ली को लेकर पहले ही चेतावनी दी है कि हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने की वजह से दिल्ली में फिर प्रदूषण बढ़ेगा और ऐसे समय में संक्रमण के भी बढ़ने के आसार हैं इसलिए उन्होंने लोगों को ख़ासा एहतियात बरतने का सुझाव भी दिया है।