हाल के दिनों में देश के कई भागों में सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों के हमलों में कई बच्चों व बड़ों के घायल होने व मरने के समाचारों ने व्यथित किया है। कमोबेश ऐसी ही स्थिति हरियाणा में भी देखी गई है। वहीं स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि राज्य में पिछले दस सालों में ग्यारह लाख लोगों को आवारा कुत्तों ने काटा है।
सरकार का दावा है कि वर्ष 2014 से लेकर 2022 तक राज्य के ग्यारह जिलों में चलाये गए नसबंदी अभियान में एक लाख सैंतीस हजार के करीब कुत्तों की नसबंदी की गई ताकि उनकी बढ़ती संख्या पर अंकुश लगाया जा सके। लेकिन इस अभियान पर करीब साढ़े सत्रह लाख रुपये खर्च करने के बावजूद सकारात्मक परिणाम देखने में नहीं आये। बल्कि उनकी संख्या में कुछ हजार का इजाफा ही हुआ है।
कहा जा रहा है कि नसबंदी अभियान को कारगर ढंग से चलाकर ही समस्या का समाधान किया जा सकता है। काटे लोगों को रैबीज का इंजेक्शन लगाकर अपनी सुरक्षा करने को बाध्य होना पड़ता है। हालांकि, सरकारी अस्पताल व डिस्पेंसरियों में कम दाम में वैक्सीन उपलब्ध है, लेकिन निजी अस्पताल वैक्सीन के प्रति डोज डेढ़-दो हजार रुपये वसूलते हैं। जो गरीब आदमी के लिये कष्टदायक ही है।
कहा जा रहा है कि राज्य में आवारा कुत्तों की नसबंदी का अभियान कारगर ढंग से नहीं चलाया जा रहा है। जानकार लोग तेजी से नसबंदी अभियान चलाने को समस्या का उपयोगी समाधान बता रहे हैं। वैसे यह विचारणीय प्रश्न है कि सदियों से मनुष्य का साथी रहा कुत्ता क्यों आक्रामक हो चला है। कभी समाज में उसकी वफादारी की मिसाल दी जाती थी। कहीं न कहीं शहरी जिंदगी में उसकी उपयोगिता कम होने के चलते उसे सड़क पर आना पड़ा है।
वहीं लोगों में विदेशी नस्ल के कुत्तों के बढ़ते मोह ने उसे आम भारतीयों के घरों से बाहर का रास्ता दिखाया है। देश में विदेशी नस्ल के कुत्तों की खरीद-फरोख्त का बड़ा बाजार भी विकसित हुआ है। वहीं हमारी खान-पान की आदतों में बदलाव का असर भी कुत्तों में देखा गया है। अकसर मांस व अन्य तामसिक पदार्थों की दुकानों के बाहर इनका जमावड़ा देखा जाता है। मारे गये जीवों के अवशेषों का सावधानी से निस्तारण नहीं किया जाता।
वहीं मांसाहारी लोग भी इसके अवयव बाहर फेंक देते हैं, जिसके चलते कुत्ते हिंसक होते हैं। दूसरे, वातावरण में बढ़ती गर्मी भी इन्हें उग्र बनाती है। हम महसूस करें तो समाज में वाहनों व अन्य उपकरणों का शोर बहुत बढ़ा है । यह जानवर ध्वनि के प्रति बेहद संवेदनशील होता है। शहरों, कस्बों के गली-कूचों में लोगों द्वारा दुत्कारे जाते, मार-पीटकर भगाये जाते कुत्ते कालांतर आक्रामक होने लगते हैं।
सड़कों का तेज व भीड़-भाड़ वाला ट्रैफिक भी उन्हें उग्र बनाता है। निस्संदेह, आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या पर योजनाबद्ध ढंग से नियंत्रण, सामाजिक जागरूकता व जीवों के संरक्षण में लगी स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से ही इस समस्या का समाधान संभव है।