“ठोकर खाकर ही अक्ल आती है”, यह कहावत वामपंथी शासन वाले नास्तिको के देश चीन पर चरितार्थ होती दिखाई पड़ रही है, क्योकि पहले वहां पर कोरोना वायरस से छुटकारे के लिये धार्मिक स्थलो पर प्रार्थना करने की इजाजत दी गई, फिर यहूदियो के “कोशर” भोजन (Kosher foods) और मुसलमानो के “हलाल” भोजन की तरह चीनियो के लिये भी मांसाहारी भोजन के कड़े नियम बनाने की शुरुआत हुई है।
कोविद -19 प्रकोप के बाद जंगली जानवरो के सेवन (खाने) पर “पूर्ण प्रतिबंध” को लागू करने के लिए चलाई गई राष्ट्रव्यापी मुहिम के तहत चीन के शहर शेनज़ेन (Shenzhen) मे “बिल्लियो और कुत्तो” के मास को भी “प्रतिबंधित भोजन सामग्री (मांसाहारी) की सूची” मे शामिल किया गया है।
नए नियमो को “शेन्ज़ेन पीपुल्स कांग्रेस (शहर विधायिका) की स्थायी समिति द्वारा मंगलवार 3 मार्च, 2020 को प्रकाशित किया गया था और जनता को अपनी राय प्रस्तुत करने के लिए अगले सप्ताह गुरुवार तक समय दिया गया था।
प्रस्तावित मसौदे मे नौ प्रकार (जानवरो) के मांसाहारी भोजन की अनुमति प्रदान करने वाली “सफेद सूची” शामिल है, लेकिन सरकार ने यह नही बताया है कि मसौदे के नियमो को लागू करने अर्थात उपायो पर कब मतदान होगा? इस “सफेद सूची” मे खरगोश, मछली और समुद्री भोजन के साथ पोर्क, बीफ और चिकन भी शामिल है।
लेकिन इसमे बिल्लियो और कुत्तो के साथ-साथ सांप, कछुए और मेंढक जैसे (दक्षिणी चीन के अन्य लोकप्रिय मांसाहारी व्यंजन) पालतू जानवरो को शामिल नही किया है।
अधिकारियो ने “शेन्ज़ेन स्पेशल जोन डेली” को बताया कि उन्होंने “ब्लैक लिस्ट” प्रकाशित नही करने का फैसला किया है,क्योकि चीन मे जंगली जानवरो की हजारो प्रजातियां है और उनको इस “काली सूची” मे शामिल करना (सूची का सम्पूर्ण होना) असंभव था।
एक तरफ चीन हलाल खाने की तरफ अपने कदम बढ़ा रहा है, तो दूसरी तरफ भारत मे इस्लामोफोबिया चर्म सीमा पर पहुंच गया है, क्योकि जैसे ही दुनिया मे चीनी वायरस (कोविड-19) का कहर बरपा, तो भारत मे सवर्ण विशेषकर ब्राह्मण शाकाहार पर प्रवचन सुनाने और लेख लिखने लगे।
इन अव्यवहारिक वक्ताओ और लेखको को यह समझ नही आता है, कि विश्व की सात अरब आबादी अगर शाकाहारी हो जाऐ, तो सब्जियां इतनी महंगी हो जायेगी,कि तीस महीने के अन्दर अनाज की कमी के कारण हर बीसवा आदमी (5%) भूख से ही मर जायेगा और पूरे विश्व मे राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता फैल जायेगी।
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भारत मे गौमूत्र और गोबर जैसी गंदी चीजो (जानवरो के अवशेषो) से खेलने वाले दुष्प्रचार कर रहे है, कि ज्यादातर वायरस मांसाहार से ही मनुष्य मे आते है, इन अज्ञानियो को यह नही पता कि बहुत से ऐसे वायरस है,
जो जानवरो के सिर्फ संपर्क मे आने से ही मनुष्य के शरीर मे प्रवेश कर जाते है।
एड्स जैसी लाइलाज बीमारी बंदरो से मनुष्य मे आई है, भारत जैसे अंधविश्वासी बहुल समाज वाले देश मे तो बंदरो को भगवान माना जाता है, तब ऐसी बीमारियो से मनुष्य को कैसे बचाया जा सकता है? भारत मे इस्लाम दुश्मनी का यह हाल है, कि फासीवादी “झटके के मीट” के नाम से व्यापार करना शुरू कर चुके है।
जबकि अधिकतर झटके वाले मीट के व्यापारियो को यह तक नही पता,कि झटके के मीट का मतलब क्या होता है?इसका फायदा और नुकसान क्या है? अनपढ़ को ज्ञान दिया जा सकता है, लेकिन अगर शिक्षित व्यक्ति मूर्खतापूर्ण बाते करने लगे, तो स्थिति ऐसी हो जाती है,जैसे कि सोते हुये आदमी को तो जगाया जा सकता है लेकिन जो सोने का नाटक करे उसे नही जगाया जा सकता है।
समस्या मांसाहार से नही होती है, बल्कि ऐसे जानवरो के मांस के सेवन से होती है, जिन जानवरो के मनुष्य को काटने या उनके साथ रहने से मनुष्य के शरीर मे बीमारियां पैदा होती है।
दूसरे मांसाहार से उत्पन्न बीमारियो का कारण भ्रष्टाचार है, क्योकि लालची व्यापारी बीमार, घायल और मृत जानवरो के मांस को स्वस्थ और जिंदा जानवर का मांस बताकर भोले भाले ग्राहको को बेचते है।
तीसरी समस्या जानवरो के शरीर के कुछ हिस्सो के सेवन से होती है, जिनमे रक्त और पित्ताशय जैसे अंग शामिल है, जिनसे जहर और दूसरी बीमारियां मनुष्य के शरीर मे प्रवेश कर सकती है।
इस्लाम ने इन समस्याओ का समाधान देते हुये नियम निर्धारित किये है, अगर उन नियमो का पालन किया जाये, तो मांसाहार से उत्पन्न समस्या को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है।
गर्दन के पास एक छोटा सा कट लगा कर पशु का इस तरह वध किया जाता है, जिससे कुछ मिनटो तक उसके शरीर मे ऊर्जा बची रहे और शारीरिक क्रियाओ की गति से शरीर का अधिकतर रक्त बाहर आ जाये।
इस्लामिक ज़िबाह पद्धति (Zabiha Hallal) का उद्देश्य रक्त जैसे विषैले पदार्थो के सेवन से मनुष्य को बचाना है,
क्योकि अधिकतर जानलेवा बीमारियो के जीवाणु और विषाणु रक्त से ही फैलते है, इसलिए रक्त और उससे बने पदार्थो का सेवन इस्लाम मे प्रतिबंधित है।
इस्लाम के अनुसार मांसाहारी पदार्थो को चार श्रेणियो मे बांटा गया है:-
(1) हलाल (सेवन योग्य)।
(2) हराम (वर्जित)।
(3) मकरू (जो हलाल नही है, किंतु हराम भी नही है अर्थात तटस्थ नीति)।
(4) मुबाह (जिनके बारे मे कोई सूचना नही है अर्थात नया विषय)।
यद्यपि मुसलमानो मे अलग-अलग वर्ग (फिरका-फिकाह) के अनुसार हलाल और हराम भोजन की अलग-अलग व्याख्या की जाती है।
किन्तु सामान्यता: तीन श्रेणियो मे बांटा जा सकता है।
1) वह घरेलू जानवर जो स्वाभाविक रूप से देखने मे बदसूरत-घृणित नही है और उन्हे शरीयत (इस्लामी कानून) की प्रथाओ के अनुरूप ज़िबाह (वध) किया जाता है, तो उनका मांस हलाल माना जाता है और उसको खाया (सेवन) जा सकता है, जैसे भेड़, बकरी, गाय, भैंस, ऊँट, हिरण, मुर्गियाँ, टर्की, हंस, बत्तख, शुतुरमुर्ग, बटेर, कबूतर और उसी श्रेणी के अन्य जानवर।
2) पानी मे रहने वाले उन जानवरो के मांस जो मछली के वर्ग से है, वह भी हलाल है और उन्हे खाया जा सकता है, जैसे टर्बोट्स, कार्प्स और ईल आदि।
चूंकि मछली वर्ग का खून तरल नही है, इसलिये वध की प्रक्रिया (ज़िबाह) नही की जा सकती है,यदि उन जानवरो की मौत समुद्र मे हुई है, तो उनका मांस नही खाया जा सकता है अर्थात हराम है। यदि वह मछलिया बाहरी प्रभावो (तूफान, गर्मी, ठंडक, आदि) के कारण मरी है, तो उनका मांस हलाल है।
(3) कीट-पतंगो मे सिर्फ टिड्डियो को ही हलाल माना गया है। यद्यपि हराम जानवरो की पहचान के भी अलग-अलग नियम है (धर्मगुरुओ और विद्वानो मे घोड़ा और खरगोश जैसे कई जानवरो को लेकर गंभीर मतभेद है)।
किंतु सामान्यता: इनको पाँच प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।
(1) उन जंगली (शिकारी) जानवरो का मांस हराम (निषेद्ध) है,
जो शिकार (जानवर) पर हमला करते हुये उसे अपने दाढ़ के दांतो और पंजो द्वारा पकड़कर उसको टुकड़ो मे फाड़ देते है, जैसे भेड़िये, भालू, शेर, बाघ, लकड़बग्घे, तेंदुए, गिलहरी, हाथी, बंदर, लोमड़ी, भेड़, बिल्ली और कुत्ते आदि।
(2) उन पक्षियो का मांस भी हराम है, जो अपने पंजो द्वारा अपने शिकार को पकड़कर उसका वध करते और उसे खाते है, जैसे पतंग, रावण, चील, गिद्ध, चमगादड़, शिकरा और बाज़ आदि।
(3) उन जानवरो का मांस भी हराम है,
जो स्वाभाविक रूप से घातक और घृणित है, जैसे चूहे, सेही, हाथी, छिपकली, बिच्छू, साँप, मेंढक, कछुआ, घोंघे, मधुमक्खियाँ, मक्खियाँ, कैटरपिलर, कीड़े आदि।
(4) उन हलाल जानवरो के मांस (मुर्गियो, भेड़ो और गायो) भी निषेध है जिन्होने अशुद्ध चीजे खा ली है, उनके पेट की सफाई हुये बिना (जीवित जानवर के शरीर से उस भोजन के अवशेष मल-मूत्र द्वारा शरीर से बाहर आने तक) उनको खाने के लिये उपयोग नही किया जा सकता है।
इस कारण (जिन गंदी चीजो को जानवर ने खाया है) से उन्हे एक जगह पर बंदी बनाकर रखा जाता है और फिर उनका पोषण सिर्फ पोषक तत्वो से किया जाता है,मुर्गियो के लिये कारावास की अवधि तीन दिन, गायो और ऊंटो के लिये दस दिन और भेड़ो के लिये चार दिन है, किंतु सुअर के दूध से पाले जाने वाले जानवरो का मांस हलाल होता है।
(5) चूँकि घोड़े युद्ध के लिये उपयुक्त जानवर है, इसलिए उनका मांस खाना इमाम-ए-आज़म (अबु हनीफा) के अनुसार “मकरूह” है। हाँलाकि इमाम शाफी और इमाम अहमद बिन हम्बल के अनुसार घोड़े के मांस को खाया जा सकता है।
दक्षिण एशिया के सबसे बड़े सुन्नी मुस्लिम संप्रदाय के हनफ़ी फिकाह (Fiqh) की पुस्तको मे वर्णित संदर्भो के आधार पर (अल-फतवा अल-हिंदीया, 5 / 289-291, बड़ाई-अल-सनाई, 5 / 35-39 और रेड अल-मुख्तार, 304-308) भोजन मे सेवन के लिये हलाल-हराम मांस (जानवरो) की निम्नलिखित व्याख्या की गई है :-
1} जो जानवर कुरान या सुन्नत मे स्पष्ट रूप से निषिद्ध (प्रतिबंधित) किये गये है,
वे बिना शक के हराम है,
जैसे सुअर, गधा, आदि।
2} जो जानवर पानी मे पैदा होते और रहते है, वे सभी (मछली को छोड़कर) हराम है। सभी प्रकार की मछलियां तब तक हलाल है,जब तक वह किसी भी बाहरी कारण के बिना समुद्र मे स्वाभाविक रूप से मर नही जाती है, अगर किसी बाहरी कारण जैसे कि ठंड, गर्मी, पानी के द्वारा किनारे पर फेका जाना, किसी पत्थर से टकरा जाना आदि के कारण मछली मरती थी, तो वह हलाल होगी।
अल्लाह कहता है :-
“(भोजन के लिए) आपको मना किया गया है: मृत मांस, रक्त, सुअर का मांस।” (सूराह मायदाह, 53)। अब्दुल्लाह इब्ने उमर वर्णन करते है, कि पैगंबर साहब ने कहा :- “दो प्रकार के मृत मांस और दो प्रकार के रक्त हमारे उपभोग के लिए वैध (हलाल) बनाए गए है, दो मृत मांस है (मछली और टिड्डे) और दो प्रकार के रक्त है (यकृत और प्लीहा)। (अबू दाऊद, मसनद अहमद और इब्ने माजाह)
3} तीसरा सिद्धांत यह है, कि जिन ज़मीनी जानवरो मे रक्त नही पाया जाता है, उन्हे हराम माना जाता है, जैसे कि हॉर्नेट, मक्खी, मकड़ी, बीटल, बिच्छू, चींटी, आदि, किंतु टिड्डी हलाल है। इब्न अबी ओफ़ा से एक टिड्डे के सेवन के बारे मे पूछा गया था और उन्होने कहा कि “मैंने अल्लाह के रसूल के साथ मिलकर दुश्मनो से छह या सात लड़ाईया लड़ी और हमने भोजन मे खाने के लिये टिड्डियो को इस्तेमाल किया था” (अबू दाऊद, सं० 3805)
4} चौथा सिद्धांत यह है,कि जिन ज़मीनी जंतुओ मे रक्त तो होता है, लेकिन उन पशुओ मे रक्त बहता नही है, उन्हे भी हराम माना जाता है, जैसे सांप, छिपकली, गिरगिट, आदि।
5} पांचवां सिद्धांत यह है,कि सभी प्रकार के कीट और कुतरने वाले जानवरो (Pests)/(हशारत अल-अर्ध) को भी हराम माना जाता है, जैसे चूहा, छछूंदर, सेही, कृन्तक (Jerbao) आदि। इन जानवरो के निषेध के पीछे तर्क सुराह अल-अर्फ की एक आयत है, जिसके आधार पर उन्हे उपभोग के लिये अपवित्र (हराम) माना जाता है।
6} छठा सिद्धांत यह है,कि जो जमीनी जानवर जिनमे रक्त प्रवाहित होता है और वे घास और पत्तियो पर जीवित रहते है (अन्य जानवरो का शिकार नही करते है), उन्हे हलाल माना जाता है, जैसे ऊंट, गाय, बकरी, भैंस, भेड़, हिरण आदि। अब्दुल्लाह इब्ने उमर वर्णन करते है, कि “अल्लाह के रसूल खैबर की लड़ाई के दिनो मे गधो के मांस को खाने से मना करते है” (सही अल-बुखारी, नंबर: ५२०२)
7} सातवां सिद्धांत यह है, कि सभी स्थलीय शिकारी जानवरो को जो अपने दांतो से शिकार करते है, उन्हे हराम माना जाता है, जैसे कि शेर, चीता, बाघ, तेंदुआ, भेड़िया, लोमड़ी, कुत्ता, बिल्ली, आदि।
8} आठवां सिद्धांत यह है, कि शिकारी पक्षी अर्थात् जो अपने पंजे/नाखूनो से शिकार करते है, उन्हे हराम माना जाता है, जैसे बाज़, चील, पतंग, चमगादड़, आदि।
9} नौवां सिद्धांत यह है, कि जो पक्षी अपने पंजो से शिकार नही करते है और अन्य जानवरो का भी शिकार नही करते है, बल्कि वे केवल अनाज और फसल खाते है, वे सभी हलाल माने जाते हैं, जैसे कि मुर्गा, बत्तख, फ़ाख़ता, कबूतर, गौरैया आदि।
10} दसवाँ सिद्धांत यह है,कि यदि कोई हलाल जानवर उस चीज़ का सेवन करता है, जिससे उसके मांस और दूध मे बुरी गंध पैदा हो जाये,तो वह मकरूह होगा। “एक चिकन को इसलिये मकरुह माना जाएगा, अगर वह कुछ अशुद्ध खाता है और उससे उसके मांस मे बुरी गंध पैदा होने लगती है।”(अल-फतवा अल-हिन्दी, 5/289)
11} अंतिम सिद्धांत यह है,कि यदि एक मिश्रित जानवर (mixed breed) का एक माता-पिता हलाल और दूसरा हराम है,तो माता को महत्व दिया जायेगा। यदि माँ एक हलाल जानवर है,तो संतान भी हलाल होगी, जैसे कि एक खच्चर जिसकी माँ एक गाय है। माँ एक हराम जानवर है, तो संतान भी हराम होगी, जैसे कि एक खच्चर जिसकी माँ एक गधा है।
सुन्नी हनफी विचारधारा के उपरोक्त ग्यारह सिद्धांतो के अनुसार हलाल और हराम जानवरो की सूची दी गई है :-
जिन जानवरो का मांस हलाल है :-
1} ऊँट
2} बकरी
3} भेड़
4} भैंस
5} हिरण
6} खरगोश
7} गाय (पहाड़ी गाय सहित)
8} जंगली गधा (हदीस मे निषेध घरेलू गधो का है)
9} मछली (जिनमे झींगे भी शामिल है, जिस झींगे को मछली का एक रूप मानते है)
10} हिरण / मृग / गज़ेल
11} बत्तख
12} बगुला (लंबी गर्दन और लंबे पैर और आमतौर पर लंबे बिल के साथ ग्रे या सफेद लुप्त होती चिड़िया)।
13} कोकिला (बुलबुल)
14} बटेर
15} तोता
16} तीतर
17} टिड्डी
18} दलिया (भारी-भरकम छोटी-छोटी पंखो वाली दक्षिण अमेरिकी गेम बर्ड)
19} लार्क (उत्तर अमेरिकी पीले-स्तन वाले गीतकार)
20} गौरैया
21} हंस
22} शुतुरमुर्ग
23} फाख़ता
24} कबूतर
25} सारस
26} जंगली मुर्गा
27} चिकन (मुर्गा)
28} मोर
29} मैना (सारिका)
30} हुपु (जिसे अरबी मे हुदहुद के नाम से जाना जाता है)
जिन जानवरो का मांस हराम है :-
1} भेड़िया
2} लकड़बग्धा
3} बिल्ली
4} बंदर
5} बिच्छू
6} तेंदुआ
7} बाघ
8} चीता
9} शेर
10} जेरबा (मूषक/कृन्तक)
11} भालू
12} सुअर
13} गिलहरी
14} सेही
15} साँप
16} कछुआ
17} कुत्ता
18} केकड़ा
19} जैकाल (सियार)
20} गधा (पालतू)
21} छिपकली
22} लोमड़ी
23} मगरमच्छ
24} ऊनी
25} हाथी
26} बाज़
27} हॉक (शिकरा)
28} पतंग (चील)
29} चमगादड़
30} गिद्ध
31} माउस (घूस)
32} चूहा
33} सभी कीड़े, जैसे कि एक मच्छर, मक्खी, ततैया, मकड़ी, बीटल, आदि।
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हर दौर मे मनुष्य और जानवरो मे नई-नई बीमारिया पैदा होती रही है, इसलिए हलाल जानवरो की सूची सिर्फ एक सीमा है, किन्तु हलाल मांसाहारी भोजन सदैव सुरक्षित ही होगा, यह निर्णय सिर्फ परिस्थितियो के अनुसार ही लिया जा सकता है। चिड़ियो, गाय, ऊंट और दूसरे हलाल जानवरो से कई प्रकार की बीमारियां पैदा होती रही है, इब्ने मसूद की ज़ईफ हदीस के मुताबिक गौमांस का सेवन हानिकारक हो सकता है।
हम जानवर को काटने (ज़बीहा) मे इस्लामिक पद्धति का तत्परता से उपयोग करते है, किंतु हम यह ध्यान नही रखते है, कि जानवर किन परिस्थितियो मे पला-बढ़ा बड़ा है? जानवर बीमार या विकलांग तो नही है? इस्लाम मे घरेलू जानवरो के पालन-पोषण को लेकर जो नियम निर्धारित किये है।
बड़े पैमाने पर जानवरो को पैदा और पालने वाले किसान उन नियमो का पालन नही करते है,उपर से फार्म हाउस मे हारमोंस और दूसरी दवाई देखकर पशुओ के शरीर को अप्राकृतिक रूप से बढ़ाया जाता है,जिससे बीमारियां पैदा होती है।
हमे उन्ही पशुओ का सेवन करना चाहिए,जो हमारी आँखो के सामने बड़े हुये है या हमारे भरोसेमंद किसान ने हमे बेचा है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी और बड़े शहरो मे यह संभव नही है।

इसलिये हम समाजसेवी संस्थाओ के माध्यम से जानवरो (मांस) के रेंडम सैंपल लैबोरेट्री मे टेस्ट करवा सकते है, ताकि सरकार को रणनीति बनाने मे और समाज को सतर्क रहने मे सफलता मिले, जिससे मांसाहारी भोजन के सेवन को पूर्णतया सुरक्षित बनाया जा सके।
{ये लेखक के अपने विचार हैं }