नई दिल्ली: प्रशांत भूषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की तरफ से शुरू किए गए आपराधिक अवमानना केस के नतीजे अभी खत्म नहीं हुए हैं। उनके वकालत लाइसेंस के ऊपर गाज गिर सकती है। एक तरफ जहां सर्वोच्च अदालत ने प्रशांत भूषण को दोषी करार देने के बाद एक रुपये का जुर्माना लगाया, दूसरी तरफ इस फैसले के बाद अब उनके लाइसेंस को निलंबित किया जा सकता है।
फैसले के पैराग्राफ 89 में यह कहा गया है कि ”एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) अगर चाहे वह नामांकन को निलंबित कर सकती है।”
बार काउंसल ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए दिल्ली बार काउंसिल से कहा है, प्रशांत भूषण के ट्वीट्स की जांच करें और कानून के मुताबिक कार्रवाई करे। भूषण का दिल्ली बार काउंसिल में वकील के तौर पर नामांकन है।
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बार काउंसल ऑफ इंडिया की तरफ से जारी बयान में कहा गया, “बार काउंसल ऑफ इंडिया की ये राय है कि प्रशांत भूषण की तरफ से किए गए ट्वीट्स और उनके दिए बयानों के विस्तृत अध्ययन और जांच की आवश्यकता है…
बार काउंसिल ऑफ इंडिया की जनरल काउंसिल ने सर्वसम्मति से यह तय किया कि दिल्ली बार काउंसिल, जहां प्रशांत भूषण का वकील के तौर पर नामांकन है, वे मामले की जांच करें और कानून के मुताबिक जल्द से जल्द फैसले ले।’
अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24 में यह प्रावधान है कि किसी व्यक्ति को संबंधित राज्य की बार काउंसिल के रोल पर एक अधिवक्ता के रूप में भर्ती नहीं किया जाएगा, यदि वह नैतिक अपराध से जुड़े अपराध का दोषी है।
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अधिनियम की धारा 35 यह कहती है कि यदि कोई अधिवक्ता पेशेवर या अन्य कदाचार का दोषी पाया जाता है, तो ऐसे अधिवक्ता को सीमित अवधि के लिए अभ्यास से निलंबित किया जा सकता है या उनका लाइसेंस पूरी तरह से रद्द किया जा सकता है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियम भी कोर्ट के प्रति एक वकील की आवश्यकता के लिए पेशेवर आचरण और शिष्टाचार निर्धारित करते हैं। इन प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा कि भूषण के ट्वीट की जांच की जानी चाहिए। हालांकि, इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण की टिप्पणी नहीं मिल पाई है।