आस्ट्रेलिया में हाल ही में संपन्न चुनावों में पिछली तीन बार से विपक्ष में बैठी लेबर पार्टी को जनादेश मिला है। लेबर नेता 59 बरस के एंथनी अल्बानीजी अब नए प्रधानमंत्री होंगे। 151 सीटों वाली संसद में उनकी लेबर पार्टी को स्पष्ट बहुमत तो नहीं मिला है, लेकिन अब तक सत्तारुढ़ लिबरल-नेशनल गठबंधन को सरकार बनाने के लिए जरूरी 76 सीटें भी नहीं मिल पाईं, तो ये तय हो गया कि स्कॉट मॉरिसन अब फिर से प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। नतीजों की रात को मॉरिसन ने निराशाजनक कहा है। ज़ाहिर है हर शासक की तरह उन्हें भी अपनी सत्ता के स्थायी होने की खुशफ़हमी हुई होगी, जो अब दूर हो चुकी है।
दरअसल मॉरिसन की हार में महिलाओं की और मुद्दों की राजनीति करने वाले निर्दलीयों की बड़ी भूमिका रही। आपको याद दिला दें कि 2019 में लिबरल पार्टी के लिए कार्यरत ब्रिटनी हिंगिन्स नाम की महिला के साथ संसद भवन में ही एक वरिष्ठ सदस्य ने व्याभिचार किया था। ब्रूस लेहरमैन पर यह आरोप लगा था, जिसके बाद 2021 की फरवरी में ब्रिटनी ने अपने लिए इंसाफ़ की आवाज़ उठाई। उनके चुप्पी तोड़ने के बाद और भी कई महिलाओं ने अपने साथ हुई यौन शोषण की घटनाओं के बारे में बताना शुरु किया।
आस्ट्रेलिया ने मी टू आंदोलन की ताकत को नए सिरे से महूसस किया। ब्रिटनी के साथ हुई घटना पर बतौर प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने जब ये कहा था कि उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि वे दो बेटियों के पिता के तौर पर इस पर विचार करें, तो उनकी यह दलील बहुत से लोगों को नागवार गुजरी थी। क्योंकि वे चाहे बेटे के पिता हों या बेटी के, बतौर प्रधानमंत्री यह उनका कर्तव्य है कि वे देश की महिलाओं की सुरक्षा के बारे में सोचें। हाल ही में मॉरिसन ने ब्रिटनी से माफ़ी भी मांगी। लेकिन इससे पहले पिछले साल ही मार्च में जब महिलाएं प्रधानमंत्री का विरोध करने संसद के बाहर पहुंची थीं, तो उन्होंने कहा था कि यहां से थोड़ी ही दूरी पर इस तरह के जुलूसों का सामना गोलियों से होता है। लेकिन इस देश में नहीं। जब हम इस तरह की चीजें यहां होते देखते हैं, तो यह लोकतंत्र की जीत लगती है।
उनके इस बयान पर भी नकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिली थींकि मॉरिसन लोकतंत्र की ताकत बता रहे हैं या पीड़ितों का मखौल उड़ा रहे हैं। बहरहाल, मॉरिसन की नीतियों और बयानों के खिलाफ आस्ट्रेलिया की महिलाओं ने जमकर वोट किया। इस चुनाव में कई निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी बड़े नेताओं को हराया है। यह नजर आ रहा है कि अगली सरकार के कार्यकाल में निर्दलीय और छोटे दलों के हाथ में काफी ताकत रहेगी। ज्यादातर निर्दलीय जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चुनाव लड़े थे और उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान जोर देकर कहा था कि वे सरकार को जलवायु परिवर्तन पर नीतियों में जरूरी बदलाव करने को मजबूर करेंगे। विक्टोरिया प्रांत की क्यूरिऑन्ग सीट पर वित्त मंत्री जॉश फ्राइडेनबर्ग एक निर्दलीय उम्मीदवार मोनीक रायन से चुनाव हार गए। इसी तरह पिछले चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ऐबट को हराने वालीं निर्दलीय जली स्टीगल अपनी सीट वारिंगा को बचाने के साथ-साथ अपने वोट बढ़ाने में भी कामयाब रहीं। यह देखना दिलचस्प है कि इस बार ज्यादातर निर्दलीय सुशिक्षित और प्रतिभाशाली लोग हैं। इसलिए संसद का स्तर भी बेहतर होगा।
लेबर नेता एंथनी अल्बानीजी ऐसे वक्त में देश की कमान संभालने जा रहे हैं, जब एक ओर दुनिया रूस और यूक्रेन के बीच तीन महीनों से लड़ाई देख रही है, कोरोना के कारण सभी जगह अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है। और चीन अपनी साम्राज्यवादी नीति के कारण बड़ी चिंता बन चुका है। 24 मई से ही जापान में क्वाड देशों की बैठक होने वाली है, जिसमें अब अल्बानीजी आस्ट्रेलिया का प्रतिनिधित्व करेंगे। वैसे चुनौतियों से जूझने की अल्बानीजी की पुरानी आदत है। उन्होंने 2019 में पार्टी की कमान तब संभाली थी, जब लेबर पार्टी लगातार दूसरा चुनाव हार गई थी। राजनीति में पिछले चार दशक से सक्रिय एंथनी अल्बानीजी दो दशक से सांसद हैं। वह दो बार केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं और 2013 में एक बार उप प्रधानमंत्री भी नियुक्त किए गए थे।
सिडनी में जन्मे अल्बानीजी का बचपन गरीब परिवार में गुजरा. उन्हें उनकी मां ने अकेले ही सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए घर में बड़ा किया। लेबर यूनियन के बीच उनकी मजबूत पकड़ रही है। अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने वाले अल्बानीजी ने पढ़ाई के वक्त से ही राजनीति में दिलचस्पी ली और वह लेबर पार्टी के वाम धड़े में सक्रिय रहे हैं। अपने प्रचार में अल्बानीजी जो बड़े वादे किए हैं, उनमें महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व, बच्चों की देखभाल के लिए रियायतें, मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था और बुजुर्गों के लिए बेहतर देखभाल जैसी बातें प्रमुख हैं।
निवर्तमान प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन भारत के प्रति विशेष लगाव रखते हैं. उन्हें भारतीय खाना पकाना और खाना दोनों ही बेहद पसंद रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके नजदीकी संबंधों की अक्सर चर्चा हुई है। अब देखना दिलचस्प होगा कि नए प्रधानमंत्री का रुख भारत के लिए किस तरह का रहता है। आस्ट्रेलिया की तरह भारत भी कई ज्वलनशील मुद्दों में सुलग रहा है, मगर फिलहाल यहां की जनता राजनीति में धर्म का बोलबाला देख रही है। और वो लोग चुनाव जीत रहे हैं जो रोजगार, बिजली, पानी, शिक्षा, सड़क और विकास की बात छोड़ जाति, धर्म की राजनीति कर रहे हैं।