मुंबई: उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं लेकिन वह विधायक नहीं हैं। संविधान के मुताबिक, उन्हें शपथ लेने के छह महीने के अंदर विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य चुना जाना है।
भारत में लॉकडाउन के कारण सबकुछ रुका हुआ है और छह में से पांच महीने बीत चुके हैं।
इन 5 महीनों में विधान परिषद के चुनाव भी हुए लेकिन महाराष के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने चुनाव नहीं लड़ा।
अब मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उद्धव ठाकरे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की ओर देख रहे हैं।
दरअसल, राज्यपाल चाहें तो मनोनीत होने वाले सदस्यों में उद्धव ठाकरे को विधान परिषद भेज सकते हैं। आइए जानते हैं कि उद्धव ठाकरे के लिए अपनी कुर्सी बचाना अब कितना आसान या मुश्किल हो गया है।
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कोरोना वायरस से बुरी तरह जूझ रहे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पास अब एक महीने से भी कम समय बचा है।
24 मई से पहले-पहले उन्हें विधानमंडल का सदस्य जरूर बनना होगा। अगर वह ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा।
कोरोना के कारण विधानसभा या विधान परिषद का चुनाव होने की कोई संभावना नहीं है, ऐसे में उद्धव ठाकरे के पास एक ही रास्ता बचा है कि राज्यपाल उन्हें मनोनीत कर दें।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर 2019 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के मुताबिक, किसी भी मंत्री को (मुख्यमंत्री भी) पद की शपथ लेने के छह महीने के अंदर किसी विधानसभा या विधानसपरिषद का सदस्य निर्वाचित होना अनिवार्य है।
उद्धव ठाकरे बिना चुनाव लड़े ही सीधे सीएम बने हैं, ऐसे में उन पर यह नियम लागू होता है। जनवरी 2020 में विधान परिषद की दो सीटों के लिए चुनाव भी हुए लेकिन उद्धव ने चुनाव नहीं लड़ा।
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24 मार्च को विधान परिषद की धुले नांदुरबार सीट पर उपचुनाव होना था। 24 अप्रैल को विधान परिषद की 9 और सीटें खाली हो गई हैं। महाराष के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उम्मीद लगाई थी कि वह इनमें से किसी एक सीट से चुनाव जीत जाएंगे और मुख्यमंत्री बने रहेंगे। इसी बीच कोविड 19 ने सारी गणित बिगाड़ दी है। इन 10 सीटों पर चुनाव टाल दिए गए हैं।
इसी मुद्दे पर चर्चा के लिए 9 अप्रैल को कैबिनेट मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में उद्धव खुद मौजूद नहीं थे, ऐसे में मीटिंग का नतीजा नहीं पता चल पाया है।
मीटिंग की अध्यक्षता राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता और डेप्युटी सीएम अजित पवार ने की। इस मीटिंग में प्रस्ताव पारित करके राज्यपाल को भेजा गया कि वह महाराष के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मनोनीत कर दें।
राज्य की 78 सदस्यों वाली विधान परिषद में से 12 सदस्यों को राज्यपाल मनोनीत करते है। इसमें से दी सीटों अभी खाली है। हालांकि, इन दो सीटों का कार्यकाल भी 6 जून को समाप्त हो जाएगा और नए सिरे से चुनाव कराने पड़ेंगे। फिलहाल राज्यपाल भगत कोश्यारी ने ना तो इस प्रस्ताव को स्वीकार किया है और ना ही इसे खारिज किया है।
इसपर शिवसेना और भाजपा के बीच राजनीति भी शुरू हो गई है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि कोरोना के मुश्किल हालात में गठबंधन सरकार को राज्यपाल पर दबाव नहीं बनाना चाहिए। वहीं, शिवेसना नेता संजय राउत का कहना है कि राज भवन को राजनीतिक साजिश का केंद्र नहीं बनना चाहिए। वहीं, लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी आचार्य का कहना है कि राज्यपाल के पास कैबिनेट के प्रस्ताव को मानने के अलावा कोई दूसरी विकल्प नहीं है। वह इस प्रस्ताव को मानने के लिए बाध्य हैं।
हालांकि, यह सब इतना आसान नहीं है, जितना एनसीपी और शिवसेना के नेता दावा कर रहे हैं। बॉम्बे के हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में रामकृष्ण उर्फ राजेश पिल्लई नाम के शख्स ने याचिका दायर की है। इस याचिका में मांग की गई है कि महाराष के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मनोनीत करने संबंधी महाराष्ट्र कैबिनेट के प्रस्ताव पर रोक लगाई जाए। याचिकाकर्ता का तर्क है कि इस बैठक में मुख्यमंत्री खुद मौजूद नहीं थे इसलिए यह प्रस्ताव गैरकानूनी है।
दूसरी तरफ मुंबई के हाई कोर्ट ने 20 अप्रैल को इसपर सुनवाई और स्टे देने से इनकार कर दिया। मुंबई के हाई कोर्ट ने कहा कि इसकी वैधानिकता तय करने का अधिकारी राज्यपाल का है। ऐसे में अब सबकी नजरें सिर्फ और सिर्फ महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर टिकी हुई हैं।