काम की बात हमेशा एक लाइन में नहीं की जा सकती, और ना ही एक मिनट में। मैंने ये लिखने में भी घंटों खपाए हैं। बात नेहरू की है और मुझे स्पष्ट करने के लिए थोड़ी और लाइनें लिखने की इजाजत चाहिए होगी। जिनके पास वक्त ना हो वो दूसरे ज़रूरी काम निपटाने के लिए आगे बढ़ सकते हैं। कल मैंने एक पोस्ट लगाई थी जिसमें नेहरू का चरित्रहनन उनकी पत्नी कमला नेहरू और उनकी बीमारी को ढाल बनाकर किया जा रहा था।
हम सब इस तरह की पोस्ट्स पढ़ते ही रहते हैं। ये भी जानते हैं कि इन पोस्ट्स के पीछे वो खास तबका है, जो देश की राजनीति में अपनी पसंद के लोगों को स्थापित करने के लिए नेहरू की निंदा किसी भी स्तर पर जाकर करता है। मैं उस पोस्ट के हर हिस्से का जवाब इस उम्मीद से आगे लिखने जा रहा हूं कि इसे आप ना सिर्फ पढ़ेंगे बल्कि आगे भी बढ़ाएंगे। पोस्ट लंबी ना हो इसलिए इसे दो भागों में लिखूंगा और एक ही साथ पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग पर जाया जा सकता है।
मूल पोस्ट का पहला हिस्सा –
क्या आप को यह पता है जवाहर लाल नेहरु ने अपनी पत्नी के साथ क्या किया ?जवाहरलाल नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी हो गया था .. उस जमाने में टीबी की दहशत ठीक ऐसा ही थी जैसे आज एड्स की है .. क्योंकि तब टीबी का इलाज नही था और इन्सान तिल तिल तडप तडप कर पूरी तरह गलकर हड्डी का ढांचा बनकर मरता था … और कोई भी टीबी मरीज के पास भी नहीं जाता था क्योंकि टीबी सांस से फैलती थी … लोग मरीजों को पहाड़ी इलाके में बने टीबी सेनिटोरियम में भर्ती कर देते थे ..
नेहरु ने अपनी पत्नी को युगोस्लाविया [आज चेक रिपब्लिक] के प्राग शहर में दुसरे इन्सान के साथ सेनिटोरियम में भर्ती कर दिया ..
कमला नेहरु पुरे दस सालो तक अकेले टीबी सेनिटोरियम में पल पल मौत का इंतजार करती रही.. लेकिन नेहरु दिल्ली में एडविना बेंटन के साथ इश्क करते थे.. सबसे शर्मनाक बात तो ये है की इस दौरान नेहरु कई बार ब्रिटेन गये लेकिन एक बार भी उन्होंने प्राग जाकर अपनी धर्मपत्नी का हालचाल नही लिया।
जवाब- पहली बात तो ये है कि एड्स संक्रमण से नहीं फैलता जबकि टीबी फैलता है, इसलिए उस बीमारी में मरीज़ को लोगों से अलग रखा जाना मजबूरी होती है। कमला नेहरू इसकी अपवाद नहीं थीं। सबसे पहले तो साल 1934 के अंतिम महीनों में सेहत खराब होने के बाद उनकी देखरेख के लिए इलाहाबाद के स्वराज भवन में डिस्पेंसरी बनवाई गई। नेहरू उस वक्त देश की कई जेलों में बंद रहे। अपनी आत्मकथा में वो खुद 1934 के अगस्त महीने का ज़िक्र करते हैं जब उन्हें ग्यारह दिनों के लिए देहरादून जेल से छोड़ा गया ताकि वो बीमार पत्नी को देखने के लिए जा सकें।
अपनी आत्मकथा के अध्याय ‘ग्यारह दिन’ में वो विस्तार से जो लिखते हैं उससे कोई भी अनुभव कर सकता है कि अपनी पत्नी को खो देने का डर उन्हें कैसे परेशान रखता था। 11 दिन पत्नी के पास रहने के बाद उन्हें नैनी जेल में डाल दिया गया।
अपनी आत्मकथा के ‘फिर जेल में’ अध्याय में नेहरू बताते हैं कि किस तरह कमला की फिक्र की वजह से उन दिनों राजनीति उनके दिमाग से एकदम निकल गई। इसके बाद नेहरू को अल्मोडा ज़िला जेल में शिफ्ट कर दिया गया ताकि वो पास ही के भुवाली में इलाज कराने पहुंची अपनी पत्नी से मुलाकात करते रह सकें ।
खुद नेहरू लिखते हैं कि साढ़े तीन महीनों में वो 5 (भोवाली अस्पताल की रिकॉर्डबुक में 6 मुलाकात दर्ज हैं) बार कमला नेहरू से मिल सके, जबकि भारत मंत्री सर सेम्युअल होर अक्सर ये कहते रहते थे कि नेहरू को हफ्ते में एक या दो बार पत्नी से मिलने दिया जाता है। खैर नेहरू ने इन मुलाकातों के लिए अंग्रेज़ी सरकार का शुक्रिया ही किया। इसी अल्मोड़ा जेल में नेहरू ने अपनी आत्मकथा का अंत किया और उपसंहार में तारीख 25 अक्टूबर 1935 को लिखा कि पिछले महीने मेरी पत्नी भुवाली से यूरोप इलाज कराने गई है
। उसके यूरोप चले जाने से मेरा मुलाकात करने के लिए भुवाली जाना बंद हो गया है। बाद के दिनों में उन्होंने किताब में जोड़ा था कि गत 4 सितंबर को एकाएक मैं अल्मोड़ा जेल से छोड़ दिया गया क्योंकि समाचार मिला था कि मेरी पत्नी की हालत नाज़ुक हो गई है।
स्वार्ट्सवाल्ड (जर्मनी) के बेडनवीलर स्थान पर उसका इलाज हो रहा था। मुझसे कहा गया कि मेरी सज़ा मुल्तवी कर दी गई है और मैं अपनी रिहाई के साढ़े पांच महीने पहले छोड़ दिया गया। मैं फौरन हवाई जहाज से यूरोप को रवाना हुआ। (ये वो दौर था जब नेहरू को पहली बार आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ा। उन्होंने पत्नी के इलाज के लिए बड़ी मुश्किल से रुपए का इंतज़ाम किया। बिरला परिवार ने मदद का जो प्रस्ताव रखा वो नेहरू ने ठुकरा दिया।)
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नेहरू पांच साल बाद अपनी आत्मकथा में छोटा सा हिस्सा जोड़कर बताते हैं कि बेडनवीलर में ही उन्होंने अपनी किताब को थोड़ा और विस्तार दिया था। कमला का देहांत हो जाने के बाद वो खुद को परिस्थिति के अनुकूल नहीं बना पाए। भीड़,कामकाज और अकेलेपन ने उनके जीवन में घर कर लिया।
बहरहाल नेहरू द्वारा दी गई जानकारी से पता चलता है कि कमला नेहरू को इलाज के लिए जर्मनी भेजा गया, ना कि पोस्ट लेखक के हिसाब से ‘प्राग में किसी दूसरे इंसान के साथ’। आत्मकथा से ही साबित होता है कि नेहरू का अपनी पत्नी से कितना प्रेम था।
उनकी आत्मकथा में इस बात का ज़िक्र भी मिलता है कि स्वतंत्रता संघर्ष में व्यस्तता के बावजूद जवाहरलाल नेहरू कमला का इलाज कराने के लिए उनके साथ में कोलकाता तक की यात्रा करते थे।
और तो और इससे पहले 1925 में कमला का कई महीनों तक लखनऊ में इलाज हुआ लेकिन जब डॉक्टरों ने साफ कहा कि उन्हें स्विट्ज़रलैंड ले जाया जाए तो नेहरू खुद अपनी पत्नी और बेटी इंदिरा को लेकर मार्च 1926 में बंबई से वेनिस रवाना हुए । इस सफर में उनकी बहन और बहनोई भी थे। ज़ाहिर है कि वो अपनी पत्नी को लेकर बेहद संजीदा थे। वहां कमला नेहरू का इलाज स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा और मोंटाना के पहाड़ी सेनिटोरियम में चला।
कमला जी का देहांत स्विट्ज़रलैंड के लोज़ान शहर (बेडनवीलर के बाद उनका इलाज यहां भी चला) में 28 फरवरी 1936 में हो गया था लेकिन पोस्टलेखक के हिसाब से वो 10 साल तक सेनिटोरियम में रहीं जो सरासर मनगढ़ंत बात है।
पोस्ट लेखक नेहरू पर इतना नाराज़ है कि लिखता है नेहरू उन दस सालों तक दिल्ली में एडविना से इश्क फरमाते रहे जबकि एडविना अपने पति के साथ दिल्ली की धरती पर 1947 में पधारीं। ये भी झूठ है कि कमला की बीमारी के दौरान नेहरू कई बार लंदन गए और एक बार भी उनका हालचाल नहीं लिया।
ज़ाहिर है, नेहरू 1935-36 के दौरान ब्रिटेन कभी नहीं गए बल्कि दूसरी बार कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाने पर वो हवाई जहाज से हिंदुस्तान ही आए लेकिन पत्नी की एकदम खराब हो चुकी हालत की खबर पाते ही वो फिर से स्विट्ज़रलैंड की तरफ दौड़े।