आगा खुर्शीद खान
2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव कई नज़रिये से भारतीय राजनीति की दिशा और दशा तय करने वाली है। एक तरफ जहाँ केंद्र की सत्ता पर काबिज़ भारतीय जनता पार्टी जीत की हैट्रिक बनाने की कोशिश में है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है। अगर बीजेपी इस चुनाव में सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रहती है, तो देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद नरेंद्र मोदी ऐसे पहले शख्स होंगे जिनकी अगुवाई में कोई पार्टी लगातार तीन बार सत्ता हासिल करने में कामयाब होगी।
भारतीय जनता पार्टी के इसी मुहिम को रोकने के लिए विपक्षी दल एकजुट होने की बात करते आ रहे हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस जहाँ विभिन्न राज्यों के दलों को एक धागे में पिरोने की कोशिश कर रही है तो दूसरी ओर इन्ही विपक्षी दलों में से कुछ दल बीजेपी की इस विजयी रथ को रोकने के लिए तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटे हुए हैं। सवाल ये उठता है कि क्या कांग्रेस के बगैर विपक्ष को मज़बूती मिल सकती है? ये सवाल इस लिए उठ रहा है कि क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 200 से ज्यादा सीटों पर बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी।
जिस तरह से तीसरे मोर्चे के प्रयास विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से किए जा रहे हैं, जिससे ये साफ नज़र आ रहा है कि विपक्ष के बंटने से वोट का भी बंटवारा होगा। तीसरे मोर्चे के बाद बीजेपी को चुनाव जीतने के लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि विरोधी दलों की कवायद से उसके लिए 2024 की राह बेहद आसान हो जाएगी। विपक्ष की आपसी फूट कहीं ना कहीं सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी को फ़ायदा पहुँचाने का काम करेगा।
जो भी पार्टी तीसरा मोर्चा बनाने की पहल कर रही है, सच पूछो, तो वह फिर से सत्ता विरोधी वोटों का बंदरबाट कर रही है। तीसरे मोर्चे के पक्षधर दलों को यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि अब लड़ाई पार्टियों की नहीं, विचारधारा की हो चुकी है, और ऐसे में तीसरा मोर्चा सिर्फ अहंकार है और कुछ नहीं है। विपक्षी दलों को PM मोदी के सामने एक चेहरा खड़ा करने में दिक्कत हो रही है और ये स्वाभाविक है कि PM मोदी के टक्कर में कोई विपक्षी दल का नेता नहीं है लेकिन अगर बीजेपी के टक्कर में राष्ट्रीय स्तर कोई दल सामना कर सकती है तो वो कांग्रेस है। 2024 के चुनाव में कांग्रेस इस स्तिथि में कहीं से नज़र नहीं आ रही है जो अकेले दम पर बीजेपी को रोक सके ऐसे सभी विपक्षी दलों का एक साथ होना ज़रूरी हो जाता है।
भारतीय राजनीति को क़रीब से देखने वाले विशेषज्ञ का मत है कि भारतीय विपक्षी राजनीति वर्तमान में एक अजीब स्थिति से गुजर रही है। यह सच है कि अगर विपक्षी जीत भी जाएं, तो कांग्रेस के अलावा कोई भी दल स्थायी सरकार नहीं दे सकता। इसे क्षेत्रीय दल के नेता भी अंदर से स्वीकार करते हैं, लेकिन अस्तित्व का सवाल शायद उन्हें अलग राह अख्तियार करने को मजबूर कर रहा है, क्योंकि जनता पार्टी और जनता दल के असफल प्रयोग को देश की जनता देख चुकी है। दूसरा सच यह है कि क्या कांग्रेस एक मजबूत गठबंधन सरकार देने के लिए कम से कम 150-200 सीटें लाने की स्थिति में होगी? इन सब चुनौतियों के बीच विपक्षी ऊंट आखिर किस करवट बैठेगा, यह तो वक्त बताएगा।
इसी साल जनवरी माह के मध्य में तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टी BRS के मुखिया KCR की ओर एक मेगा रैली का आयोजन किया गया था, जिसमें कई गैर कांग्रेसी विपक्षी दल एक साथ नज़र आए। पिछले दिनों कोलकाता में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं ने एक सुर में कहा कि भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी बनाने वाली पार्टियों से बातचीत की जाएगी। खबर ये भी आ रही है कि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस के प्रमुख एचडी कुमारस्वामी भी ममता बनर्जी से मिलने 24 मार्च को कोलकाता आ रहे हैं।
पिछले दिनों केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों के 9 नेताओं की तरफ एक चिट्ठी PM नरेंद्र मोदी को भेजी गई। इस चिट्ठी पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, उद्धव ठाकरे और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने हस्ताक्षर किए थे।
दरअसल इस चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले नेता ज्यादातर अपनी पार्टियों के मुखिया है, इन्ही दलों में से कुछ दल तीसरे मोर्चे की संभावना को वास्तविक आकार देने के सियासी मंशा के साथ रणनीति बनाने में जुटे हैं। इन दलों के अलावा नवीन पटनायक की बीजू जनता दल को भी इस विपक्षी मोर्चे का हिस्सा बनाने की कोशिश हो रही है। मायावती की बीएसपी और नीतीश की जेडीयू का इस तीसरे मोर्चे के प्रति कोई रुचि नहीं दिख रही है। तेजस्वी यादव शरद पवार और उद्धव ठाकरे के लिए तीसरे मोर्चे की तरफ देखना इन दलों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
सबसे बड़ी बिडंवना यह है कि अभी तक तीसरा मोर्चा कोई सर्वमान्य चेहरा खोज नहीं पाया है, अभी इतना ही कहा जा रहा है कि चुनाव के बाद नेता तय होगा। लेकिन पार्टियां ये भूल रही हैं कि बिना चेहरे के उनकी नैया कैसे पार लगेगी, क्योंकि जनता अब बातों पर नहीं, चेहरे पर विश्वास करने लगी है। दूसरी तरफ अगर देखें तो 2024 में राजग के पास दो बार के प्रधानमंत्री रहे नरेंद्र मोदी उनका सबसे बड़ा चेहरा होंगे। यहाँ सवाल यही उठता है कि क्या बिना चेहरे के क्या तीसरे मोर्चे की नैया पार लग पाएगी?
एक बात साफ है कि तीसरे मोर्चे के हाथ-पैर मारने वाले आम आदमी पार्टी के अलावा सभी दल मौटे तौर से एक राज्य विशेष तक ही सीमित हैं। विपक्ष में अभी भी सिर्फ़ कांग्रेस है जिसका जनाधार पूरे देश के ज्यादातर राज्यों में दिखता है। ऐसे में 2024 चुनाव से पहले तीसरे मोर्चे के आने बाद बीजेपी का चुनाव जीतना बहुत आसान हो जाएगा क्योंकि इससे बीजेपी विरोधी वोट दो खेमे में बटेंगे और हो सकता है कि बीजेपी 2014 और 2019 से भी बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब हो जाए।