अगस्त 1947 में जब देश का विभाजन हो रहा था और देश स्वाधीन भी हो रहा था उस समय गांधी जी दिल्ली में नहीं थे। वे 9 अगस्त 1947 से 9 सितम्बर 1947 तक कलकत्ता में रहे। जब वे कलकत्ता पहुंचते हैं तो सबसे पहले कलकत्ता की हिंसा को अंजाम देने वाले एक क्रूर और सबसे ताकतवर मुसलमान जिसका पूरा नाम हुसेन शहीद सुहरावर्दी था, उनसे मिलने आते हैं । सुहरावर्दी मुस्लिम लीग के थे और जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन में शामिल थे। सुहरावर्दी गांधीजी के खिलाफ थे और हिंसा में सीधे शामिल थे। सुहरावर्दी , गांधीजी से कहते हैं कि आपको कलकत्ता में रुकना चाहिए क्योंकि आपके रुके बिना अमन और शांति स्थापित नहीं हो सकती।
18 अगस्त को जब वे प्रार्थना सभा में बोल रहे थे उस दिन हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर ईद मनाई।यह अचरज की बात है कि देश के बंटबारे और साम्प्रदायिक हिंसा के बीच यह सब हो रहा था। लोगों ने एक दूसरे को गले लगाया, मिठाईयां बांटी। लेकिन गांधी ने महसूस किया कि ये अमन चैन स्थायी नहीं रहेगा और कुछ साम्प्रदायिक ताकतें इस माहौल को बिगाड़ सकती हैं। गांधी की भविष्यवाणी सही निकली अगस्त के अंत में दंगे फिर भड़कने लगे। तब गांधी ने कहा कि 1 सितम्बर को मैं यहां कलकत्ता में अनशन करूँगा, ताकि लोगों का ह्रदय बदला जा सके। गांधीजी हमेशा कहते थे कि ह्रदय परिवर्तन सबसे बड़ी बात है और दिलीय एकता बननी चाहिए। एक सितंबर को महात्मा ने आमरण उपवास का निर्णय कर लिया। आजाद भारत में गांधी का यह पहला उपवास था।
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गांधीजी के कलकत्ता के चमत्कारी उपवास पर बहुत कुछ लिखा गया है पर सबसे मार्मिक चित्रण नारायण भाई देसाई ने गांधी की जीवनी के खंड 4 में प्रस्तुत किया है। जिसमें मुस्लिम बहुल बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र के कई साधारण तबके के मुसलमान जो कम पढ़े लिखे हैं गांधी जी को पत्र लिखते हैं जिसमें वे मुसलमान कहते हैं कि वे अब अपने हिन्दू भाइयों को अपने परिवार की तरह समझते हैं और उनके साथ मिलजुल कर रहना चाहते हैं और अगर गांधी के प्रयास सफल नहीं हुए तो गांधी उनके घर के बाहर आकर जान दे देंगे।
गांधी जी सुहरावर्दी के साथ रुकने के लिए एक शर्त रखते हैं कि आप जब मेरे साथ आएंगे तो पुराने हिंसक सुहरावर्दी को मरना होगा। जब पुराना सुहरावर्दी मरेगा तभी फकीर सुहरावर्दी का जन्म होगा। वे कलकत्ता में रुकने का फैसला करते हैं। यह भी अपने स्तर पर बड़ा लोमहर्षक प्रसंग है। सोहारावर्दी बाहर जाकर सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हैं कि उन्होंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है। कलकत्ता की हिंसा के लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं और तब गांधी उनके साथ कलकत्ता में रहना स्वीकार करते हैं।
एक पुरानी शेवरलेट कार जिसका नम्बर 151 था कलकत्ता के बेलियाघाट रोड पर चलती हुई धूल भरे ऊबड़ खाबड़ रास्ते को पार करती हुई एक पुरानी जीर्ण शीर्ण बिल्डिंग के सामने जाकर रुकती है जिसमें वह दुबला पतला कृषकाय मसीहा बैठा हुआ था जिसे आधी दुनिया राष्ट्रपिता कहती थी। इस बिल्डिंग का नाम था हैदरी मंजिल जो सुहरावर्दी की निजी संपत्ति थी और इसी बिल्डिंग में गांधी जी अपने सचिव प्यारेलाल के साथ पहुंचते हैं। इसी बिल्डिंग में महात्मा गांधी 1 सितम्बर से आमरण अनशन पर जाने वाले थे।
कलकत्ता में श्री राजगोपालाचारी ने महात्मा गांधी से कहा था कि ये गुंडों के गिरोह जो कलकत्ता की सड़कों पर घूम रहे हैं, क्या आप इन गुंडों का मुकाबला उपवास से कर सकते हैं? तब गांधी जी ने राजाजी को कहा कि मैं उन लोगों के ह्रदय को छूना चाहता हूँ जो इन गुंडों को सहारा दे रहे हैं। ये जो गुंडे सड़क पर घूम रहे हैं ये तब तक सड़क पर नहीं हो सकते, जब हम और आप जो सड़क पर नहीं हैं उनके मन में एक सूक्ष्म गुंडागर्दी न हो। हम और आप जो सड़क पर नहीं हैं वे ही हिंसक दिमाग तैयार करते हैं और फिर उसके मन में चारों तरफ से हिंसा भरी जाती है।
फारवर्ड ब्लॉक के नेता शरत बोस जो काफी दिनों से गांधी जी से नाराज थे, उपवास के दूसरे दिन दौड़े चले आए। गांधीजी ने कहा, ‘परिवर्तन हो रहा है, लेकिन अभी नहीं। जीने की लालसा करना ईश्वर को द्रोह होगा। अभी और दृढ़ता से शांति का काम करो।’ उपवास का तीसरा दिन था, गांधी ने मुख्यमंत्री श्री प्रफुल्ल चंद्र घोष से कहा, ‘मेरी जान बचाने के लिए दबाव मत डालो। जब स्वेच्छा से, यथार्थ से दिलीय एक्य हो जाएगा तो ही जीना चाहूंगा, अन्यथा मृत्यु श्रेयस्कर है। बंगाल प्रचार विभाग के डायरेक्टर ने चाहा कि गांधी जी की उपवास मुद्रा का फोटो छापने से शांति स्थापित करने और प्रचार कार्य में सहायता मिलेगी। बापू ने मना कर दिया, ‘लोगों की क्षणिक दया-माया के लिए मैं अपनी क्षीण मुद्रा से अपील नहीं करना चाहता हूं।’
उपवास के दौरान सुहरावर्दी पर हमला होता है। भीड़ सोहरावर्दी को मारने के लिए हैदरी मेंशन को घेर लेती है । गांधी जी बाहर निकलते हैं और कहते हैं कि सूहरावर्दी को मारने से पहले मुझे मारना होगा । भीड़ रूक जाती है । गांधी जानते थे कि लोगों का ह्रदय परिवर्तन जरूरी है । वे लोगों से सम्बेदना के स्तर पर जुड़ने के लिए अपना अनशन जारी रखते हैं।
इस उपवास के बारे में बहुत से लोगों ने आंखों देखा हाल लिखा है कि घरों में जो महिलाएं थीं उन्होंने गांधीजी के समर्थन में खाना खाना छोड़ दिया। वे खाना तैयार करती थीं पर खुद नहीं खाती थीं। सभी स्टूडेंट्स यहां तक कि लेफ्ट स्टूडेंट भी कहने लगे कि अब हम इस उपवास में गांधी जी के साथ हैं। यहां तक कि कलकत्ता के एंग्लो इंडियन व अंग्रेज पुलिस अफसरों ने भी गांधीजी के समर्थन में सहानुभूति प्रकट करने के लिए काले रंग का आर्म बेंड पहन लिया। कलकत्ता में ऊपर से नीचे तक गांधी के प्रति समर्थन व सहानुभूति उपजने लगी। यहां तक कि उपनिवेशवादियों के स्टेट्समैन समाचार पत्र के प्रधान संपादक ने लिखा कि अब तक हम इन्हें मि. गांधी कहते थे, लेकिन आज से हम इनको महात्मा गांधी कहेंगे। गुंडे व अराजक तत्व स्टेनगन व हथियार लेकर गांधीजी के चरणों में डालने लगे। गांधीजी ने कहा कि मैं अपनी जिंदगी में पहली बार स्टेनगन देख रहा हूँ।
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उपद्रवी लोग गांधी जी के सामने हाथ जोड़े खड़े थे। अपना अपराध स्वीकार करने के पश्चात उन गुंडों के सरदार ने गांधीजी से कहा कि मैँ और मेरे साथी कोई भी सजा जो आप देना चाहें वो भुगतने के लिए तैयार हैं। बस आप अपना अनशन तोड़ दीजिये। यह कहकर उन्होंने अपनी धोतियों की झोलियाँ खोल दीं। बहुत से चाकू, छुरे, पिस्तौल और बखनक झंझनाकर फर्श पर गिर पड़े। गांधीजी ने उनसे बहुत ही धीमी आवाज में कहा कि मैं तुमको सजा देना चाहता हूँ जिन लोगों को तुमने सताया है, उन्हीं बस्तियों में फिर से जाओ और उनकी रक्षा के लिए अपने आप को समर्पित कर दो।
उपवास के चौथे दिन सोहरावर्दी, ए.सी. चटर्जी और सरदार निरंजन सिंह तालीब ने गांधी जी जो को शहर में अमन-चैन बहाल होने की रिपोर्ट सौंपी और कहा कि अगर अब अशांति पैदा हुई तो वे तीन नेता स्वयं जिम्मेदार होंगे। 5 सितम्बर को गांधीजी ने अपना उपवास तोड़ा। गांधी का चमत्कारिक मिशन कलकत्ता पूरा चुका था।
जब गांधी जी कलकत्ता से जा रहे थे तो सुहरावर्दी बच्चों की तरह फूट फूट कर रोने लगे।
राजगोपालाचारी जो शुरू में उपवास के विरोध में थे, बाद को जब उन्होंने गांधी जी का जादू देखा तो हतप्रभ रह गए। कलकत्ता का यह बड़ा मशहूर व चमत्कारी उपवास था। उपवास के बाद में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने बाद में कहा था कि यह एक बड़ा चमत्कारिक उपवास था। गांधीजी ने बड़े बड़े कारनामे किये हैं , लेकिन कलकत्ता में उन्होंने बुराई और दुराचार पर जो विजय प्राप्त की है , उतना शानदार कारनामा कोई दूसरा नहीं है। भारत की स्वतंत्रता भी नहीं है।
माउंटबेल के प्रेस सलाहकार एलन कैंपबेल जॉनसन ने इस उपवास के बारे में लिखा, ‘गांधी जी के उपवास में लोगों के अंतर्मन को झकझोर देने की कैसी अद्भुत शक्ति है, इसे तो सिर्फ ‘गांधी उपवास का साक्षी ही समझ सकता है.’ उपवास का चमत्कारी प्रभाव पड़ा।
माउंटबेटन ने कहा था ‘’ हमारी 50 हजार सेना की बटालियन पंजाब में वो काम नहीं कर पाई जो काम बंगाल में एक वन मैन बटालियन ने किया और मैं उस वन मैन बटालियन के आगे नतमस्तक हूँ उस वन मैन बटालियन का नाम है मोहनदास करमचंद गांधी। मैँ उनको सेल्यूट करता हूँ।
कलकत्ता के चमत्कारिक मिशन के बाद गांधी जी दिल्ली के लिए चल पड़ते हैं। वे 9 सितम्बर1947 को दिल्ली पहुँचते हैं।
अवधेश पांडे