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यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर मुसलमानों में खौफ

Muslim Today by Muslim Today
दिसम्बर 11, 2022
in संपादकीय
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यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर मुसलमानों में खौफ
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2024 का लोकसभा एलक्शन जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है मुल्क मंे यूनिफार्म सिविल कोड का मुद्दा भी बीजेपी की जानिब से तेजी से उठाया जा रहा है। उत्तराखण्ड समेत कई प्रदेशों की बीजेपी सरकारों ने पहले ही अपने प्रदेश में यूनिफार्म सिविल कोड लाने का एलान कर रखा था, उसके लिए कमेटियां बना दी हैं। असम्बली एलक्शन के दौरान बीजेपी ने गुजरात में भी कहा कि अगर उनकी सरकार बनी तो यूनिफार्म सिविल कोड लाया जाएगा।

अगर सरकारें चाहती हैं तोे यूनिफार्म सिविल कोड लाएं, उसपर किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। लेकिन जिस तरह से एलान किए जा रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि बीजेपी सरकारों को यूनिफार्म सिविल कोड से ज्यादा दिलचस्पी इसके जरिए मुसलमानों को खौफजदा करने में है। संविधान में भी यूनिफार्म सिविल कोड की बात कही गई है। इसीलिए मुसलमान हो या हिन्दू कोई भी तबका यूनिफार्म सिविल कोड की मुखालिफत नहीं करेगा, बशर्ते कि वह संविधान के मुताबिक हो और किसी एक मजहब के रीति-रिवाज इसके जरिए बाकी मजहबों के लोगों पर थोपे न जाएं।

जहां तक संविधान की बात है, उसमें देश के अवाम के लिए राइट टू एजूकेशन, यानी सबके लिए तालीम का हक, राइट टू फूड यानी सबके लिए खाने का बंदोबस्त, राइट टू हेल्थ यानी सबके लिए इलाज का माकूल बंदोबस्त, सबको रोजी कमाने का जरिया मुहैया कराना और सबके लिए सर छुपाने की छत मुहैया कराना भी शामिल है। यूनिफार्म सिविल कोड भी सातवें या आठवें नम्बर पर आता है।

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सरकार लोगों के लिए तालीम का माकूल बंदोबस्त नहीं कर पाई, रोजी-रोटी का बंदोबस्त नहीं किया, सबको इलाज मुहैया कराने की कोशिश नहीं हुई तो मुल्क में महंगे प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम्स का जाल बिछ गया। प्राइमरी से यूनिवर्सिटी सतह तक बड़े पैमाने पर प्राइवेट सेक्टर के तालीमी इदारे कायम हो गए, सबको दो वक्त की रोटी मिले इसकी किसी को फिक्र नहीं, कोविड के दौेरान लाकडाउन की वजह से हुकूमत ने पांच किलो मुफ्त गल्ला देना शुरू किया लेकिन वह टेम्प्रेरी इंतजाम है। इन तमाम बुनियादी जरूरतों को छोड़कर सीधे यूनिफार्म सिविल कोड की बात की जाने लगी।

बड़ी तादाद में मुसलमानों ने यूनिफार्म सिविल कोड की मुखालिफत शुरू कर दी, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योकि सरकार ने अभी तक यूनिफार्म सिविल कोड का कोई मसविदा पेश नहीं किया है। अब सवाल यह है कि जब कोई मसविदा ही नहीं है किसी को पता ही नहीं है कि यूनिफार्म सिविल कोड में क्या होगा तो मुखालिफत किस बात की, इसलिए मुखालिफत करने के बजाए सरकार से यह मतालबा किया जाना चाहिए कि पहले वह यूनिफार्म सिविल कोड का मुजव्विजा (प्रस्तावित) मसविदा देश के सामने रखे उसपर हर तबके और हर मजहब के लोगों की राय ली जाए।

उसे पार्लियामेंट में पेश करके बहस हो, उसके बाद उसे कानूनी शक्ल दी जाए चूंकि यह बहुत ही हस्सास (संवेदनशील) मामला है। इसलिए रियासतों को अलग-अलग तरीके से इसपर कानून बनाने की छूट न दी जाए। पार्लियामेंट के जरिए कानून बने जो पूरे मुल्क के लिए नाफिज उल अमल (प्रभावी) करार दिया जाए। अलग-अलग प्रदेश अगर अपना यूनिफार्म सिविल कोड बनाएंगे तो उसकी मुखालिफत भी होगी और उसपर टकराव भी हो सकता है।

शुरू में यह कहा गया था कि देश में जितने भी मजहब माने जाते हैं उन सबकी अच्छी और सबके लिए काबिले कुबूल बातेें लेकर यूनिफार्म सिविल कोड बनाया जाएगा, ताकि किसी भी मजहब और तबके के लोगों को ऐसा महसूस न हो कि उनपर किसी एक मजहब के रीति-रिवाज और जवाबित (नियम) लादे जा रहे हैं। अभी तो यूनिफार्म सिविल कोड की बात कहते वक्त बीजेपी लीडरान यह भी धमकी देते हैं कि अगर हिन्दू सिर्फ एक शादी कर सकता है तो मुसलमानों को चार तक शादियों की इजाजत क्यों? ऐसी ही बातों से मुसलमानों में यह मैसेज जाता है कि शायद उनपर यूनिफार्म सिविल कोड के बहाने हिन्दू कोड बिल लादा जाएगा।

मुसलमानों को घबराना नहीं चाहिए, क्योकि हिन्दू मजहब मानने वाले बड़ी तादाद में ऐसे तबके भी हैं जिन्हें शायद यूनिफार्म सिविल कोड कुबूल न होगा। मसलन बड़ी आबादी आदिवासियों की है जिनमें कम उम्र में लड़के-लड़कियों की शादी का रिवाज है। ‘बाल विवाह’ के खिलाफ कानून बने हुए पचासों साल गुजर गए लेकिन आदिवासियों को कम उम्र के लड़के-लड़कियों की शादी करने से रोका नहीं जा सका। मुल्क की साहिली (तटीय) कोंकण बेल्ट के हिन्दुओं में ‘मामा और भांजी’ की शादी का रिश्ता बहुत अच्छा माना जाता है और ऐसे रिश्ते होते भी हैं। लेकिन उत्तरप्रदेश और मुल्क के दीगर हिस्सों में मामा और भांजी की शादी की बात कोई अगर कर दे तो उसकी पिटाई हो जाएगी। यूनिफार्म सिविल कोड ऐेसे मामलात में क्या करेगा?

जहां तक मुसलमानों का ताल्लुक है तो वह विरासत, इबादत, शादी, मरने के बाद रसूमात जैसे चंद मामलात में इस्लामी कानूनों पर अमल करते हैं। जिन्हें वह छोड़ भी नहीं सकते। वह सभी बिल्कुल जाती मामलात हैं उनपर अमल करने से किसी दूसरे मजहब के लोगों पर कोई असर नहीं पड़ता, फिर उनपर एतराज करने का क्या जवाज (औचित्य) है? बाकी तमाम मामलात में तो मुसलमान देश का कानून ही मानते हैं। अब बड़े पैमाने पर यह प्रोपगण्डा किया जा रहा है कि मुसलमान तो चार-चार शादियां करते हैं और दर्जनों बच्चे पैदा करते हैं। सवाल यह है कि क्या मुसलमानों में शादियों और बच्चों पर कोई सर्वे हुआ है।

अगर नहीं तो प्रोपगण्डा क्यों? मरकजी हुकूमत को चाहिए कि वह हर प्रदेश के एक-एक जिले का सर्वे करा ले कि किस मजहब के लोगों ने कितनी शादियां की हैं और किस तबके में ज्यादा बच्चे हो रहे हैं। महज अफवाह फैलाकर कोई ऐसा कानून बनाना किसी भी कीमत पर मुनासिब नहीं होगा। यूनिफार्म सिविल कोड क्या सिखों के मजहबी मामलात में दखल दे सकेगा इतनी हिम्मत किसी सरकार में है। जैनियों में दिगम्बर जैन मुनि कपडे़ नहीं पहनते वह पूरी तरह बरैहना (निर्वस्त्र) रहते हैं क्या कोई कानून या सरकार उनपर कपड़े पहनने की पाबंदी लगा सकती है?

हिसाम सिद्दीकी

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