पांच अगस्त को महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ कांग्रेस ने देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन किया था। अब इस मुद्दे को जनता के बीच लगातार गर्म रखने के लिए कांग्रेस ने फैसला लिया है कि महंगाई की समस्या पर इस पूरे महीने श्रृंखलाबद्ध तरीके से प्रदर्शन किया जाएगा। कांग्रेस 17 से 23 अगस्त तक सभी विधानसभा क्षेत्रों में ‘महंगाई चौपाल’ लगाएगी, जिसके तहत मूल्य वृद्धि के खिलाफ आवाज़ उठाई जाएगी।
इस अभियान का समापन 28 अगस्त को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक मेगा रैली से होगा। कांग्रेस के इस तरह विरोध-प्रदर्शन का नतीजा क्या निकलेगा, इस बारे में फ़िलहाल कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के भीतर जोश का संचार होगा, यह तो माना ही जा सकता है।
सवाल ये है कि कांग्रेस की इस सक्रियता का भाजपा पर असर किस तरह पड़ेगा। पिछली बार यानी 5 तारीख़ को कांग्रेस के प्रदर्शन के दौरान दिग्गज कांग्रेसियों की गिरफ़्तारी, रास्ते बंद करना जैसे कदम पुलिस ने उठाए थे। इस दौरान कांग्रेसियों ने काले रंग के कपड़े पहन कर विरोध किया था, तो शाम होते-होते गृहमंत्री अमित शाह और उप्र के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने इसे राम मंदिर के विरोध से जोड़ दिया।
चूंकि दो साल पहले पांच अगस्त को ही अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास प्रधानमंत्री मोदी ने किया था, तो स्वाभाविक है कि भाजपा यह कतई नहीं चाहेगी कि इस दिन को देश किसी और वजह से याद रखे। लेकिन कांग्रेस ने भाजपा की इस चाहत पर पानी फेर दिया। इसलिए भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं ने इस पर कांग्रेस की राम विरोधी छवि बनाने की कोशिश की। इस कोशिश को मनमाफ़िक प्रतिसाद नहीं मिला, तो अब खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मोर्चा संभाला।
जनता के बीच कांग्रेस की छवि बिगाड़ने के सौ तरीके भाजपा ढूंढ सकती है, बल्कि कई तरीकों से लगातार ये काम हो ही रहा है। इसी का नतीजा है कि कांग्रेस की चुनावी सभाओं में भीड़ उमड़ने के बावजूद उसे अब वोट नहीं मिलते हैं। इसके लिए अगर कांग्रेस की कमज़ोर रणनीतियां ज़िम्मेदार हैं, तो उतनी ही ज़िम्मेदारी भाजपा के कांग्रेस विरोधी प्रचार की भी है। फिर भी अब नरेन्द्र मोदी को काले जादू जैसे अंधविश्वास को दर्शाने वाले शब्द का सहारा कांग्रेस की छवि बिगाड़ने के लिए लेना पड़ा।
जनता ने देखा है कि पांच अगस्त को कांग्रेस ने महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर अपनी नाराजगी जाहिर की है, मौजूदा सरकार की कमज़ोर नीतियों के ख़िलाफ़ बातें कहीं। उसमें कहीं भी तंत्र-मंत्र, यज्ञ-अनुष्ठान जैसा कोई काम नहीं दिखा। न तो किसी ने गले में बड़ी मालाएं नहीं पहनी थीं, न ही हाथ में झाड़-फूंक का कोई सामान था। काले रंग का चोगा भी नहीं था।
केवल रोज़मर्रा के कपड़े काले रंग में थे। फिर भी जनता को अब प्रधानमंत्री ये बतला रहे हैं कि कांग्रेस ने काला जादू फैलाने की कोशिश की। क्या उस देश के प्रधानमंत्री को अपने सार्वजनिक संबोधन में अंधविश्वास का जरा सा भी जिक्र करना चाहिए, जहां के संविधान में अंधविश्वास के ख़िलाफ़ नागरिकों के मौलिक कर्तव्य का उल्लेख है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 51ए के तहत मौलिक कर्तव्यों में वर्णित है कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद, ज्ञानार्जन और सुधार की भावना का विकास करे।
नरेन्द्र मोदी भी प्रधानमंत्री होने से पहले इस देश के नागरिक हैं, और उनका भी कर्तव्य है कि वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करें। विशेष अवसरों पर व्रत और सार्वजनिक तौर पर पूजा-पाठ पर तो कोई टीका-टिप्पणी नहीं होती है। उनकी सरकार के मंत्री जब नींबू-मिर्च के टोटके जैसे काम करते हैं, तब भी उस पर छिटपुट आपत्तियों के अलावा कोई विरोध नहीं होता है। लेकिन प्रधानमंत्री के पद पर बैठकर जब नरेन्द्र मोदी काला जादू जैसा शब्द कहते हैं तो आश्चर्य नहीं दुख होता है कि विश्व गुरु बनने की जगह हम क्या बन चुके हैं।
क्या मोदीजी नहीं जानते कि भारत में आस्था के साथ-साथ अंधविश्वास की जड़ें कितनी गहरी हैं। हर दिन ऐसी खबरें आती हैं जिनमें तांत्रिक या बाबाओं के फेर में पड़कर कभी किसी महिला की इज्जत लूट ली जाती है, कभी किसी मासूम की बलि दी जाती है, कभी भूत-प्रेत भगाने के नाम पर जानवरों पर अत्याचार होता है। असाक्षर लोगों से लेकर उच्च शिक्षित तबके तक अंधविश्वास के शिकार लोग मिल जाएंगे। भारत में कुछ लोग अंधश्रद्धा और अंधविश्वास के खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं, लेकिन ऐसे लोगों पर हमले होते हैं। नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या इसका प्रमाण है।
वैज्ञानिक सोच, तार्किक प्रवृत्ति और रूढ़िवादिता को चुनौती देने वालों का साथ सरकार को देना चाहिए, ताकि संविधान के अनुरूप देश आगे बढ़ाया जा सके। लेकिन गणेश जी की प्लास्टिक सर्जरी, कर्ण का जन्म स्टेम सेल का विज्ञान और त्रिपुरा में माणिक उतारकर हीरा पहनने की लोगों को सलाह देने के बाद अब मोदीजी ने काले जादू का ज़िक्र किया है। अपने प्रतिद्वंद्वियों से हिसाब-किताब करने के लिए अंधविश्वास से भरी बातों का उदाहरण देना ठीक नहीं है।