सिद्धू मूसेवाला यदि कांग्रेस नहीं, आम आदमी पार्टी के सदस्य होते, क्या तब भी उन्हें इसी तरह अकाल मौत का शिकार होना पड़ता। ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि रविवार शाम पंजाबी गायक और कांग्रेस नेता सिद्धू मूसेवाला की नृशंसता के साथ हत्या कर दी गई। गौर करने वाली बात ये है कि इस हत्या के एक दिन पहले ही सिद्धू मूसेवाला की सुरक्षा आम आदमी पार्टी की सरकार ने वापस ले ली थी। उनके पास केवल दो सुरक्षाकर्मी थे, लेकिन उन्हें छोड़कर सिद्धू दो अन्य लोगों के साथ खुद ही अपना वाहन चलाते हुए निकल गए और कुछ ही देर में उन्हें दो गाड़ियों ने आगे से रोका और एक तीसरी गाड़ी पीछे से आई और फिर तीनों गाड़ियों से लोग उतरे, अंधाधुंध गोलियां चलाईं और फ़रार हो गए।
ये सारी घटना सीसीटीवी में कैद हुई है। घटना के बाद गाड़ी के परखच्चे उड़ गए, ड्रायविंग सीट पर बैठे सिद्धू को कई गोलियां लगीं और जब तक उन्हें अस्पताल ले जाया गया, वो इस दुनिया को छोड़ चुके थे। उनकी हत्या बिल्कुल किसी फिल्मी पटकथा की तरह लगती है, जिसमें अपराधियों को पता था कि सिद्धू कब, कहां, कैसे निकलने वाले हैं, किस वक्त उनके साथ सुरक्षाकर्मी होंगे, कब वो बगैर सुरक्षा के होंगे। उनकी हत्या के बाद पंजाब की कानून व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं, जिसमें आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से लगातार कमियां दिखने लगी हैं।
गौरतलब है कि आप की पंजाब सरकार ने वीवीआईपी संस्कृति को खत्म करने के नाम पर कम से कम 400 विशिष्ट व्यक्तियों को दी गई सुरक्षा वापस ले ली। लेकिन आप की प्रचारप्रियता की हद ये रही कि इस फैसले के बारे में सोशल मीडिया पर जानकारी भी दी गई। खुद को आम आदमियों के साथ खड़े दिखाने के फेर में आप की सरकार का इस बात पर ध्यान शायद नहीं गया कि सुरक्षा व्यवस्था जैसे गंभीर मसलों पर गोपनीयता बरती जानी चाहिए। कुछ ख़ास लोगों को अगर पहले की सरकारों ने सुरक्षा प्रदान की है, तो उसकी कोई ख़ास वजह रही होगी। अगर आप को इस बारे में कोई फैसला लेना था, तो सुरक्षा वापस लेने से पहले यह पड़ताल कर लेनी चाहिए कि किसी व्यक्ति को किस वजह से सुरक्षा दी गई है। और अगर सुरक्षा वापस ली गई है तो उसका प्रचार न किया जाए, क्योंकि इससे अपराधियों को अपने काम को अंजाम देने में आसानी होगी।
सिद्धू मूसेवाला के साथ भी शायद यही हुआ। उन्होंने बहुत कम वक्त में काफी लोकप्रियता हासिल कर ली। इस लोकप्रियता के कारण वे विवादों में भी पड़े, लेकिन उनकी शख्सियत ऐसी थी कि विवादों को भी गीतों में उन्होंने ढाल दिया। जैसे गीतों में बंदूकों और धमकी भरे शब्दों के इस्तेमाल के कारण उनकी छवि खराब लड़के की बनी, तो उन्होंने एक गाने में बोल डाल दिए कि तेरा सिद्धू मूसेवाला बुरे दिल का नहीं है। एक बार अपने गीत के लिए एके-47 का इस्तेमाल उन्होंने किया, इस पर विवाद हुआ और सिद्धू को गिरफ़्तार किया गया, तो इसके बाद उन्होंने संजू नाम से गाना बना दिया कि उन पर संजय दत्त की तरह एके-47 रखने का केस चला है।किसान आंदोलन के वक्त तो सिद्धू मूसेवाला बहुत से पंजाबी कलाकारों की तरह किसानों का साथ दिया और ‘कह कह के बदले लेंदा, मेनू पंजाब कहंदे आं’ जैसे बोल के जरिये मोदी सरकार को सीधी चुनौती दी थी। उन्हें इस चुनाव में कांग्रेस ने मनसा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था। हालांकि आप के उम्मीदवार से उन्हें हारना पड़ा था।
सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद अब राजनीति भी तेज हो गई है। कांग्रेस ने तो अपने युवा नेता की मौत पर भगवंत मान सरकार को आड़े हाथों लिया ही है। कांग्रेस छोड़ने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ ने भी इस घटना के लिए मान सरकार की निंदा की है। इसके अलावा भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के नेता भी आप सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। अरविंद केजरीवाल पर आरोप लग रहे हैं कि वे दिल्ली से बैठकर पंजाब की पुलिस को नियंत्रित करना चाह रहे हैं। वैसे कांग्रेस के सत्ता से जाते ही पंजाब में कानून व्यवस्था की बदहाली सामने आने लगी है। हत्या, मारपीट और रंगदारी वसूलने की घटनाएं रुक नहीं पा रही हैं।आप सरकार ने एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स का गठन किया है और इस टास्क फोर्स ने इस महीने की शुरुआत में ही जेल में बंद गैंगस्टर लारेंस बिश्नोई और कनाडा स्थित गैंगस्टर गोल्डी बराड़ के तीन नज़दीकी साथियों को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने इसे बड़ी सफलता कहा था। लेकिन अब ये खुलासा भी हो रहा है कि सिद्धू मूसेवाला की हत्या में लारेंस बिश्नोई और गोल्डी बराड़ के लोगों का ही हाथ है। उनके पिता ने भी कहा है कि उन्हें धमकी भरे फोन आते रहते थे।
इससे ज़ाहिर होता है कि अपराधियों के मन में कानून या पुलिस का कोई डर नहीं है। पंजाब से सैकड़ों-हजारों किमी दूर बैठे लोग अपने गुर्गों की मदद से आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। लेकिन सत्ता या प्रशासन में बैठे रसूखदार लोगों की मदद के बिना अपराध का यह नेटवर्क चलाना मुमकिन नहीं है। अगर कड़ी से कड़ी जोड़ी जाए, तो कई चौंकाने वाली तस्वीरें बन सकती हैं। डर इस बात का भी है कि अपराधियों का यह गिरोह केवल वसूली, धमकी या हत्या तक ही सीमित न रहे और इससे आगे नशे के कारोबार या आतंकवाद में भी उसकी संलिप्तता हो तो, फिर पुलिस किस तरह हालात संभालेगी। पंजाब इन दोनों ही गंभीर समस्याओं का भुक्तभोगी रहा है। यहां के बच्चों और नौजवानों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। इस सीमांत राज्य में कानून व्यवस्था का मसला हमेशा से काफी संवेदनशील रहा है। जिससे जरा सा भी खिलवाड़ बहुत भारी पड़ सकता है।
आम आदमी पार्टी ने यहां सरकार तो बना ली है, अब हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी वह किस्मत आजमाएगी। बेशक अरविंद केजरीवाल जितना चाहें अपनी पार्टी का प्रसार करें और अपनी जमीन से जुड़े आदमी की छवि का प्रचार करें, मगर अपनी राजनीति के लिए आम लोगों के जीवन से खिलवाड़ न करें।