रेज़ीडेंसी के बचाव में एक प्रिंसिपल और छात्रों का संघर्ष
जब रेज़ीडेंसी का सामने का हिस्सा अवध के सेनानियों ने ध्वस्त कर दिया और अंग्रेज़ों के पास सेना कम पड़ने लगी तब रेज़ीडेंसी से ईस्ट इंडिया कंपनी के लखनऊ में मौजूद हर विभाग के पेंशनर्स समेत ‘ला मार्टिनियर’ स्कूल के अंग्रेज़ प्रिंसिपल मिस्टर शिलिंग को आदेश जारी हुआ कि अपने स्कूल के हाईस्कूल के छात्रों को लेकर फ़ौरन रेज़ीडेंसी में जंग के लिए पहुँचें, बाग़ियों ने आर-पार की जंग छेड़ दी है, रेज़ीडेंसी में महिलाओं और बच्चों की भी जान जा रही है और जो बचे हैं उनकी ख़तरे में है।ऐसे में जितने अंग्रेज़ सिविलियन लखनऊ में मौजूद हैं सबका फ़र्ज़ है कि रेज़ीडेंसी की रक्षा के लिए फ़ौरन रेज़ीडेंसी आ जाएं।
इधर एक दूत रेज़ीडेंसी से तैयार किया गया जिसे रेज़ीडेंसी पर हुए हमले की सूचना लेकर कानपुर जाना था।अंग्रेज़ दूत को हिंदोस्तानियों जैसे कपड़े पहनाए गए और उसके चेहरे समेत उसके कपड़ों को धूल-मिट्टी-कोयले से गंदा कर दिया गया।नकली मूँछ लगाई गई और रेज़ीडेंसी से उसे कानपुर के लिए निकाला जाने लगा।जब दूत निकलने लगा तब उसके ऊपर लखनऊ की रेज़ीडेंसी को घेरे अवध के हिंदू-मुस्लिम क्रांतिकारियों ने फ़ायरिंग की लेकिन दूत निकलने में कामयाब रहा और गोमती नदी में कूदकर भाग गया।उसने कानपुर जाकर सूचना दी।कानपुर से ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना कूच की तैयारी करने लगी।
इधर रेज़ीडेंसी में पुरूषों के साथ अंग्रेज़ महिलाएं भी अवध के क्रांतिकारियों से मुक़ाबला कर रही थीं।1857 की सबसे ख़ौफ़नाक जंग रेज़ीडेंसी में चल रही थी।अंग्रेज़ मरते तो फ़ौरन परिसर में ही दफ़न कर दिए जाते।कई अंग्रेज़ महिलाएं भी जंग करते हुए मारी जा चुकी थीं।उधर ला मार्ट स्कूल के प्रिंसिपल ने अपने स्कूल के पचास छात्रों को रेज़ीडेंसी की जंग में अंग्रेज़ों की मदद करने के लिए तैयार कर लिया।क्योंकि सामने के मोर्चे पर क्रांतिकारियों की भारी जुटान थी लिहाज़ा प्रिंसिपल शिलिंग ने तय किया कि वो रेज़ीडेंसी के पिछले हिस्से से घुसेंगे और पिछले हिस्से में नवाब द्वारा एक मारवाड़ी बनिया को दिए हुए बंगले में मोर्चा जमाएंगे ताकि रेज़ीडेंसी पर पीछे से हमला हो तो मुक़ाबला किया जा सके।
इसके लिए ज़रूरी था कि मारवाड़ी बनिया के बंगले की चाबी मिले।वरना ताला और मज़बूत दरवाज़े तोड़ने में बहुत वक़्त लग जाएगा और इस बीच क्रांतिकारी हमला कर देंगे।मारवाड़ी बनिया नवाब का ख़ास था और मारवाड़ से आने के बाद अवध के नवाब ने उसे रेज़ीडेंसी में बंगला दिया था।बाद में मारवाड़ी शहर में मकान बनाकर रहने लगा और रेज़ीडेंसी को हर तरह से सुरक्षित समझ उसमें मिले अपने बंगले में अपना क़ीमती माल रखता था।प्रिंसिपल शिलिंग ने मारवाड़ी पर नज़र रखी।मारवाड़ी जैसे ही शहर से रेज़ीडेंसी की तरफ़ चला कि प्रिंसिपल ने सुनसान इलाक़ा पाकर मारवाड़ी को घेर लिया।उसे बंदूक सटा दी और कहा कि चाबी नहीं दी तो जान से जाओगे।मारवाड़ी ने जान बचाने के लिए चाबी दे दी।
अब प्रिंसिपल शिलिंग ने रेज़ीडेंसी के पिछले हिस्से में मौजूद मारवाड़ी के बंगले को खोला और उसमें मोर्चा जमा लिया।अब क्रांतिकारियों ने रेज़ीडेंसी के पीछे के हिस्से से घुसना चाहा तो वहाँ ला मार्ट के छात्रों द्वारा ज़ोरदार प्रतिरोध हुआ।क्रांतिकारियों ने अब मारवाड़ी को जा पकड़ा कि तुमने अंग्रेज़ों को चाबी क्यों दी,तुम किसकी तरफ़ हो,अंग्रेज़ों की तरफ़ हो या बेगम हज़रत महल की तरफ़ हो।मारवाड़ी ने कहा कि मैं तो बेगम की ही तरफ़ हूँ लेकिन चाबी नहीं देता तो जान से जाता।क्रांतिकारियों पर ख़ून सवार था,कुछ युवा क्रांतिकारी मारवाड़ी को जान से मारना चाहते थे लेकिन बुज़ुर्ग़ क्रांतिकारियों ने उसे बचा लिया और कहा कि इसका फ़ैसला अब बेगम ही करेंगी कि इसे जान से मारा जाए या छोड़ा जाए।
मारवाड़ी बेगम के सामने से जाया गया। बेगम ने मारवाड़ी से कहा कि क्या आपके पास नवाब ने सोना छोड़ा है।मारवाड़ी ने बताया कि हाँ मेरे पास नवाब का चालीस सेर सोना है जो रेज़ीडेंसी के मेरे बंगले में रखा है,मेरा अपना सोना भी वहाँ है।बेगम हज़रत महल ने मारवाड़ी से कहा कि आप नवाब के ख़ास थे,हम आपको मारेंगे नहीं,आप अपने बंगले में जाइये और प्रिंसिपल से अपना और नवाब का सोना लेकर आइये,नवाब के सोने से क्रांतिकारी सैनिकों को तनख़्वाह दी जाएगी,आपके सोने को कोई नहीं छुएगा।
अब मारवाड़ी अपने बंगले की तरफ़ बैलगाड़ी लेकर अकेला चला।प्रिंसिपल शिलिंग दयालु आदमी थे,उन्होंने मारवाड़ी को पहचान लिया और उसे शूट ना करने का हुक्म दिया।मारवाड़ी प्रिंसिपल के पास पहुँचा और उसने कहा कि मेरा सोना यहाँ है,मैं उसे लेने आया हूँ।प्रिंसिपल चाहते तो मारवाड़ी को मार सोना लुटवा लेते लेकिन वो ईमानदार आदमी थे,उन्होंने मारवाड़ी से कहा कि आप अपना माल ले जा सकते हैं।मारवाड़ी ने अब अपना और नवाब का सोना बैलगाड़ी पर लादा और लेकर निकल गया। नवाब के सोने से बहुत से क्रांतिकारी सैनिकों को तनख़्वाह दी गई।
इधर प्रिंसिपल शिलिंग और उनके छात्र मोर्चे पर दमदारी से जुटे थे।उस तरफ़ से क्रांतिकारियों का घुसना मुमकिन नहीं हो पा रहा था। क्रांतिकारियों ने आपस में राय की कि क्यों ना किसी तरह बारूदी सुरंग से उस इमारत को ही उड़ा दिया जाए जिसमें प्रिंसिपल अपने छात्रों के साथ मोर्चे पर है,वरना सीधे फ़ायरिंग करके तो हम लोग घुस नहीं सकते,वजह कि सामरिक दृष्टि से वो बंगला बहुत मज़बूत स्थान पर है।सामने के द्वार की तरह इसे भी बारूदी सुरंग से ही उड़ाना उचित है।
कुछ क्रांतिकारियों ने कहा कि उसमें अंग्रेज़ छात्र हैं,सिर्फ़ प्रिंसिपल होता और सिपाही होते तो मारना उचित था,लेकिन छात्रों को कैसे बारूदी सुरंग से उड़ाया जाए।लेकिन कहते हैं कि जंग में सब जायज़ है लिहाज़ा क्रांतिकारियों ने इमारत को बारूदी सुरंग से उड़ाना तय कर लिया, भले यह काम नैतिक रूप से अनुचित था।किसी तरह रात में बारूदी सुरंग क्रांतिकारियों ने बिछा दी और इमारत को उड़ा दिया।
इमारत ध्वस्त हो गई,प्रिंसिपल शिलिंग समेत ला मार्ट के सभी पचास अंग्रेज़ छात्र उसी में दबकर मर गए।क्रांतिकारी अब पिछले दरवाज़े से रेज़ीडेंसी में घुस गए।
रेज़ीडेंसी में उसी ध्वस्त इमारत पर उन छात्रों की याद में जंग थमने के बाद अंग्रेज़ों ने ये पत्थर लगवाया जो आज मेरे कैमरे से ली गई इस तस्वीर में है।बाद में इसी ध्वस्त इमारत के बगल में स्थित सिख पोस्ट को भी क्रांतिकारियों ने ऐसे ही बारूदी सुरंग से सन् सत्तावन में तब उड़ा दिया था जब अंग्रेज़ों की मदद के लिए सिख सैनिकों की टुकड़ी रेज़ीडेंसी की सिख पोस्ट की बैरक में आ गई थी।
पूरी की पूरी सिख टुकड़ी बारूदी सुरंग से उड़ी पोस्ट में दबकर मर गई थी।आख़िर में रेज़ीडेंसी में कानपुर से ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना आ गई और दूसरे कई इलाक़ों से सेना पहुँच गई,तब रेज़ीडेंसी में मौजूद लोगों की जान बच सकी,लेकिन रेज़ीडेंसी तोप के गोलों से खंडहरनुमा ही हो गई थी।
डॉ शारिक अहमद खान