विधान परिषद के गठन की घोषणा से विधायको में पनप रहा असन्तोष कम हो जाएगा, इसकी संभावना बिल्कुल क्षीण है । पिछले 50 वर्षों में किसी भी राज्य को विधान परिषद गठन की इजाजत संसद नही दी है । राजस्थान को इसकी इजाजत शीघ्र मिल जाएगी, यह कयास लगाना व्यर्थ है । केंद्र की मोदी सरकार कभी नही चाहेगी कि राजस्थान में विधान परिषद गठन की इजाजत दी जाए ।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायको में उमड़ रहे असन्तोष को भांपते हुए केबिनेट के जरिये विधान परिषद गठन का प्रस्ताव दिल्ली भिजवाया है । विधान परिषद गठन की प्रक्रिया बहुत जटिल है । इसलिए यह मानकर चला जाए कि गहलोत के वर्तमान कार्यकाल तक इसकी इजाजत मिल जाएगी, यह कोरी कल्पना के अलावा कुछ नही है ।
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गहलोत बखूबी जानते है कि विधायकों का असन्तोष समाप्त नही किया गया तो यह नाराजगी ज्वालामुखी में तब्दील हो सकती है । पायलट खेमा पिछले एक साल से उत्पात मचा रहा है तो गहलोत के समर्थक विधायक भी अंदर ही अंदर कसमसा रहे है । बसपा और निर्दलीय भी वफादारी के मुआवजा मांगने के लिए अड़े हुए है ।
हर वर्ग के तर्क बड़े वाजिब और ठोस है । जब सचिन पायलट खेमे की वजह से गहलोत की गाड़ी बीच सड़क पर हिचकोले खाने लगी थी, तब धक्का देकर निर्दलीय, बसपा और गहलोत के समर्थक विधायकों ने स्टार्ट किया था । यदि ये लोग उस समय गहलोत की गाड़ी को धक्का नही लगाते तो अब तक अशोक गहलोत निवर्तमान मुख्यमंत्री हो जाते । गहलोत ने संकट के समय भरोसा दिलाया था कि हर विधायक को उसकी वफादारी का पूरा मुआवजा मिलेगा । चूँकि वादा किये साल भर होगया है । लेकिन अभी तक मिठाई बंटेगी, इसकी कहीं तैयारी होती दिखाई नही दे रही है ।
चारो और निराशा का माहौल है । विधायक मंत्री और बोर्ड आदि के चेयरमैन बनने के लिए उतावले हो रहे है । यद्यपि विधायकों के जमकर काम हो रहे है । कमाने और खाने के लिए तबादलों पर लगी रोक भी हटा ली गई है । लेकिन माननीय सदस्य इससे संतुष्ट नही है । इनको केवल कुर्सी की दरकार है । इससे कम पर वे कतई राजी नही है । इसलिए गहलोत ने विधायकों को पुचकारने की गरज से विधान परिषद का लॉलीपॉप दिखाया है ।
विधान परिषद के लिए सबसे पहले 2008 में वसुंधरा ने पहल की थी । इसी तर्ज पर गहलोत ने अपने पूर्व कार्यकाल में विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर विधान परिषद गठन की मांग केंद्र से की थी । केंद्र की ओर से इस बारे में स्पस्टीकरण मांगा था, जो अभी तक नही भिजवाया गया है । ऐसे में अचानक विधान परिषद की मांग को दिल्ली की मोदी सरकार स्वीकार कभी नही करेगी ।
विधायक भी जानते है कि विधान परिषद गठन का प्रस्ताव केवल बरगलाने का प्रयास है । लेकिन अब विधायक बहकावे में नही आने वाले है । सभी ने नए सूट सिलवा रखे है । अब उनको पहनने का बेसब्री से इंतजार है । राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत भी इस दफा अपने ही जाल में फंस कर रह गए है । पंजीरी थोड़ी सी है और पंजीरी के लालायित भक्तो की संख्या बहुत ज्यादा । ऐसे में झमेला होना स्वाभाविक है ।
महेश झालानी, पत्रकार