जमीयत उलमा-ए-हिंद के नेता मौलाना महमूद मदनी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। जिसमें वो कह रहे हैं कि “मोदी सरकार अगर 100 साल भी टिक जाए तब भी भारतीय मुसलमानों के लिये भारत, पाकिस्तान से हमेशा अच्छा रहेगा..इंशाल्लाह…। हम यहां मजबूरी में नहीं हैं, शौक से हैं, अपने फैसले से हैं।
हमें निज़ाम ए मुस्तफा के नाम पर बुलाया गया था, ले जाया जा रहा था, क़ुरान के मुताबिक़ फैसले होंगे, इस्लामिक स्टेट बनाई जा रही थी. हमने उस विचार को ख़ारिज किया और दोबारा ख़ारिज करते हैं। हमारी वो ग़लती नहीं थी, बल्कि सोचा समझा फैसला था, आज भी अगर यह हम कह रहे हैं तो सोच समझकर कह रहे हैं, हमें फख़्र है।“
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पूर्व सांसद मौलाना महमूद मदनी के इस वीडियो को उनके ‘विरोधी’ और राजनीतिक दल विशेष के समर्थक मनमाने कैप्शन के साथ पोस्ट कर रहे हैं। इस वीडियो की आड़ में कुछ लोग मसलक़ी ‘कुंठा’ भी निकाल रहे हैं।
लेकिन सवाल यह है कि मौलाना ने ग़लत क्या कहा? क्या पाकिस्तान ले जाने के लिये भारत में रहने वाले मुसलमानों को ये सब वास्ते नहीं दिए गए थे? क्या उनसे नहीं कहा गया था कि तुम्हें तुम्हारा मज़हब देंगे, तहज़ीब देंगे, ज़बान देंगे, इस्लामी निज़ाम देंगे? क्या भारत में रहने वाले मुसलमानों ने इसे खारिज नहीं किया था?
क्या आज़ाद भारत के सबसे पहले शहीद ब्रिगेडियर उस्मान को यह लालच नहीं दिया गया था कि पाकिस्तान आ जाईए, आपको पाकिस्तानी सेना का जनरल बना देंगे? लेकिन उन्होंने पाकिस्तान जाकर जनरल बनने के बजाय भारत में ब्रिगेडियर रहकर शहीद होने को तरजीह दें। इस सच्चाई से कौन मुंह मोड़ सकता है?
भारत पाकिस्तान बंटवारे से जुड़ीं ऐसी बहुत सी दास्तानें जिसमें भारतीय मुसलमानों को भारत से जाकर पाकिस्तान में बसने के लिये तरह तरह के प्रलोभन दिए गए थे । लेकिन मुसलमान नहीं गए, ये मुसलमानों की मर्ज़ी थी, अपनी मर्ज़ी से उन्होंने भारत और पाकिस्तान में से भारत में रहना पसंद किया।
उन्होंने अपना ख़ून बांटा, रिश्तेदारियां बांटी, पाकिस्तान ले जाने, पाकिस्तान बनाने के नाम पर दिए गए धर्म के वास्ते को खारिज किया। क्या यह सच नहीं है? कि भारतीय मुसलमानों ने मुस्लिम लीग के विचार को ख़ारिज किया और कांग्रेस के विचार पर विश्वास जताया? क्या यह सच नहीं है कि भारतीय मुसलमानों ने जिन्ना को ख़ारिज़ किया और गांधी, नेहरू, मौलाना आज़ाद, मौलाना हुसैन अहमद मदनी को स्वीकार किया?
इस ऐतिहासिक तथ्य से कौन इनकार कर सकता है? इसके बावज़ूद भी अगर मौलाना महमूद मदनी के वक्तव्य को आधार बनाकर उन पर आरोप प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं, तो ऐसा करने वाले अपने उन बुज़ुर्गों के फैसले से खुश नहीं हैं जो इतने प्रलोभन के बावजूद पाकिस्तान नहीं गए थे।
निश्चित रूप से महमूद मदनी से मतभेद हो सकते हैं, मनमुटाव भी हो सकते हैं। उनके कई वक्तव्य विवादित भी सकते हैं, लेकिन जहां तक उनके इस वक्तव्य की बात है, तो इसमें उन्होंने कुछ भी नया नहीं कहा बल्कि वही बातें कही हैं जो पाकिस्तान के संस्थापकों ने भारतीय मुसलमानों से कही थीं, लेकिन उस समय भी मुसलमानों ने उन्हें खारिज किया था, और आज भी खारिज कर रहे हैं।
ये अलग बात है कि आज भी सत्ताधारी दल के संरक्षण में पलने वाले संगठनों के लोग मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने के बयान जारी करते रहें, भले नस्लवादी क़ानून लाकर मुसलमानों को ‘टाईट’ रखने की योजना पर काम किया जाए, लेकिन सच्चाई यही है कि भारतीय मुसलमान कम से कम पाकिस्तान जाने के लिये तो तैयार नहीं हैं। उसे तुर्कमेनिस्तान मंज़ूर हो सकता है लेकिन पाकिस्तान नही।
लिहाज़ा मौलाना महमूद मदनी को बुरा भला कहने से पहले उनके वक्तव्य की गहराई में जाईए, तथ्यों का आंकलन कीजिए, किस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने यह वक्तव्य दिया था, उसे भी देखिए. भेड़ चाल मत चलिए, बल्कि अपना विवेक लगाईए।
हैं इसी वतन की खाक से, यहीं खाक अपनी मिलाएंगे
न बुलाए किसी के आए थे, न निकाले किसी के जाएंग।
Wasim Akram Tyagi