बीते दिनों उड़ीसा के बालासोर में कोरोमण्डल एक्सप्रेस, बेंगलुरू हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस और मालगाड़ी की टक्कर की घटना सामने आई। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 288 लोगों ने जान गँवाई तो गैर सरकारी आंकड़ों का मानें तो लगभग 400 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। इतने बड़े घटना पर 2-3 दिनों तक बवाल के बाद सब कुछ सामान्य सा हो गया लेकिन ये घटना बता रही है कि लगातार रेलवे की लापरवाही से कितने लोग अपनी जानें गंवा चुके हैं।
मोदी सरकार जब से सत्ता में आई इस दौरान कई बड़े रेलवे घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जिससे भारी नुकसान और सैकड़ों लोगों ने अपनी जानें गँवाई। साल 2016 के नवंबर में उत्तर प्रदेश में एक एक्सप्रेस ट्रेन के पटरी से उतरने से 146 लोग मारे गए और 200 से अधिक घायल हो गए। साल 2017 के जनवरी में आंध्र प्रदेश राज्य में एक पैसेंजर ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतर जाने से कम से कम 41 लोगों की मौत हो गई। साल 2018 के अक्टूबर में अमृतसर शहर में एक त्योहार के लिए पटरियों पर जमा भीड़ के बीच एक कम्यूटर ट्रेन चलती है, जिसमें कम से कम 59 लोगों की मौत हो गई और 57 घायल हो गए। इसी तरह देहरादून से उत्तर प्रदेश के वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी। इस हादसे में करीब 34 लोग मारे गए थे। ये कुछ घटनाएं हैं जो रेलवे सिस्टम की हक़ीक़त को बताती है।
हादसे के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत कई बड़े नेताओं का दौरा हुआ, सबने ये दर्शाने की कोशिश किया कि इस घटना को लेकर वे सभी गंभीरता लेकर बड़ी कार्यवाही की तरफ बढ़ेंगे। अफ़सोस सभी नेताओं और मंत्रियों का दौरा सिर्फ फोटो खींचाने तक ही रहा क्योंकि उनके मरने के बाद भी उन्हें सम्मान से नहीं रखा गया। सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेज़ी वायरल हो रहा था जिसमे पूरा देश देखा कि किस प्रकार तमाम नेताओं और मंत्रियों के दौरे के बाद एक छोटे ट्रक में दर्जनों लाशों को एक-दूसरे के ऊपर फेंका जा रहा था।
इससे पहले भी कई बड़ी रेलवे घटनाएं हुई, जिसके बाद 2 बार रेलवे मंत्रियों ने अपना पद छोड़ दिया था या छोड़ने की पेशकश की थी। पंडित नेहरु सरकार के दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। ठीक इसी तरह अटल बिहारी की सरकार में नीतीश कुमार ने रेल दुर्घटना के बाद पद छोड़ दिया था। इसी तरह अब अश्विणी वैष्णव का इस्तीफा मांगा जा रहा है, जिस पर उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं है। हालांकि, उन्हें इस पूरे घटना का असर कितना हुआ ये आगे आने वाले दिनों में रेलवे के क्षेत्र में कार्यों से अंदाजा हो जाएगा
केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने फरवरी माह में एक ट्रेन में ड्राइवर के साथ बैठकर दावा किया था कि तमाम ट्रेनों में सुरक्षा कवच लगाया जा रहा है जो ट्रेनों के आमने-सामने आ जाने के वक्त दोनों में आटोमेटिक ब्रेक लगा कर रोक देगा। इस सुरक्षा कवच का खूब ढिंढोरा पीटा गया था और बार-बार कहा गया था कि जो सत्तर साल में नहीं हुआ वह मोदी सरकार ने कर दिखाया। मीडिया में खूब चलाया गया कि किस प्रकार सरकार रेलवे सुरक्षा को लेकर संवेदनशील है। इस घटना के बाद ज़ब सुरक्षा कवच पर सवाल खड़े होने लगे तो रेलवे ने हाथ खडे कर दिए और कहा कि अभी इन लाइनों पर सुरक्षा कवच का उपयोग नहीं किया गया।
राष्ट्रीय जनता दल ने भी केंद्र सरकार को घेरते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘कवच’ में भी कांड हो गया? मोदी सरकार के लिए बस ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ ट्रेनों में ही इंसान चलते हैं। अगर रेल मंत्री में कुछ नैतिकता और आत्मग्लानि हो तो इतने परिवारों के बर्बाद होने पर तुरंत इस्तीफा दें।
इस सरकार में आये दिन सौ किलोमीटर से ज्यादा की रफ्तार से चलने वाली वंदे भारत ट्रेनों को पीएम नरेन्द्र मोदी हरी झण्डी दिखाकर रवाना करते दिखते रहते है लेकिन तेज रफ्तार ट्रेनों के लिए रेलवे पटरियों की मजबूती और नए पटरियों को बिछाने की ज़रूरत है, जिसका पैमाने पर प्रबंध नहीं की जा रही है। नए पटरियों को बिछाए बिना तेज रफ्तार से चलने वाली ट्रेनों को आए दिन हरी झंडी दिखाने का मतलब खतरे का सौदा करना है। जहाँ एक तरफ नए पटरियों की जरूरत है तो दूसरी तरफ रेलवे में रिक्त पदों को भरने की आवश्यकता है। सरकार इन पर भर्तियां भी नहीं कर रही है, इससे यह साफ पता चलता है कि भारतीय रेल में सफर पूरी तरह भगवान भरोसे हो गया है।
रेलवे के आंकड़ो के अनुसार, पिछले 5 सालों में 586 रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। भारत में 2014-15 में 131 रेल हादसे हुए और इसमें 168 लोग मारे गए। वर्ष 2013-14 में 117 ट्रेन हादसे हुए और इसमें 103 लोग मारे गए थे। वर्ष 2014-2015 में 60 फ़ीसदी रेल दुर्घटना ट्रेनों के पटरी से उतरने के कारण हुई।
सीएजी की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि भारतीय रेलवे को हर साल 4,500 किलोमीटर रेल लाइन बदलना है। लेकिन, वित्तीय बाधाओं के चलते पिछले 6 साल में रेल लाइन नहीं बदले गये। बता दें कि देश में करीब 1.15 लाख किलोमीटर का लंबा रेल नेटवर्क है। इनमें से हर साल 4,500 किमी ट्रैक को बदलना है लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा है। रिपोर्ट में एक व्हाइट पेपर का जिक्र किया गया है, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2016-17 में स्टैंडिंग कमेटी ने जो सिफारिशें कीं थीं, उस पर भी अमल नहीं हो रहा है। वर्ष 2018-19 में रेलवे ने रेल ट्रैक बदलने के लिए 9,607.65 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, जो वर्ष 2019-20 में घटकर 7,417 करोड़ रुपये रह गया। इतना ही नहीं, यह भी कहा गया है कि वर्ष 2017-18 और वर्ष 2018-19 में सप्लाई की समस्या की वजह से कुछ रेलवे डिवीजनों में कम्प्लीट ट्रैक रिन्यूअल का भी काम पूरा नहीं हो पाया। रिपोर्ट के अंत में कहा गया है कि सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्टैंडिंग कमेटी ने जो सिफारिशें कीं थीं, उसे रेलवे ने पूरा नहीं किया।
घटना के बाद आए मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इलेक्ट्रानिक सिग्नल सिस्टम भी नाकाम साबित हुआ। कोरोमण्डल एक्सप्रेस शाम 6:30 बालासोर पहुची थी, 6:55 पर बहानगा स्टेशन के पास सिग्नल फेल होने से ट्रेन मेन लाइन के बजाए लूप लाइन पर चली गई और इसके दस-बारह डिब्बे डिरेल होकर डाउन लाइन पर गिर गए। सामने से डाउन लाइन पर बेंगलुरू-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस आ रही थी जो कोरोमण्डल एक्सप्रेस से भिड़ गई, हादसे में कोरोमण्डल एक्सप्रेस के तीन-चार डिब्बे चपेट में आ गए। पन्द्रह मिनट बाद उसी ट्रैक पर एक मालगाड़ी गुजर रही थी जो इन दोनों ट्रेनों से टकराई।
एक अख़बार में छपी खबर के मुताबिक आटोमेटिक कहे जाने वाले रेलवे के इंटरलाकिंग सिग्नल सिस्टम में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आ रही है। रेलवे के इंटीग्रेटेड कोचिंग मैनेजमेंट सिस्टम पर सिग्नल फेल होने के जो आंकड़े हैं, वह इंटरलाकिंग में लगे उपकरणों की गुणवत्ता की पोल खोल रहे हैं।
रेल मंत्रालय के आंकड़े बता रहे कि बीते साल भर में 51 हजार 238 बार सिग्नल फेल हुए हैं। अकेले अप्रैल माह में ही देश के सभी 17 जोन के रेलखंडों पर 4,506 सिग्नल फेल होने की घटनाएं सामने आई हैं। नए बने डेडीकेटेड फ्रेट कारिडोर पर जहां अप्रैल माह में 374 सिग्नल फेल हुए, वहीं लखनऊ, मुरादाबाद, दिल्ली, अंबाला और फिरोजपुर रेल मंडल वाले उत्तर रेलवे में सबसे अधिक 1.127 सिग्नल फेल हुए हैं। रेल मंत्रालय की अप्रैल माह की रिपोर्ट में पांच जोन को रेड जोन में रखा गया है।
सवाल यह है कि पन्द्रह-बीस मिनट के अंदर में तीनों ट्रेनें एक दूसरे से टकराई तो नजदीक के स्टेशनों पर तैनात रेलवे कर्मचारियों ने गाड़ियों को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की। कोरोमण्डल एक्सप्रेस के डिब्बे डिरेल हो गए यह खबर आगे के स्टेशनों को पहुंची होगी क्योकि गाड़ी वहां से पास नहीं हुई थी। सबसे बड़ी गलती यह है कि पन्द्रह मिनट बाद गुजरने वाली मालगाड़ी को भी नहीं रोका गया। रेलवे का सिस्टम यह है कि जब कोई ट्रेन एक स्टेशन से गुजरती है तो उस स्टेशन पर तैनात स्टाफ अगले स्टेशन को तुरंत सन्देश देता है कि फलां ट्रेन हमारे स्टेशन से गुजर चुकी है। कोरोमण्डल एक्सप्रेस और बंगलौर हावड़ा एक्सप्रेस दोनों अगर अगले स्टेशनों पर नहीं पहुंची थी तो स्टेशन मास्टरों को इसकी चिंता होनी चाहिए थी और पन्द्रह मिनट बाद गुजरने वाली मालगाड़ी को रोका जाना चाहिए था। ऐसा क्यों नहीं हुआ?