आगा खुर्शीद खान
हिन्दू वोट बैंक और दलितों व पिछड़े समुदायों को काफी हद तक अपने पक्ष में कर लेने के बाद बीजेपी आत्मसंतुष्ट होती जा रही थी। परन्तु उसने महसूस किया यदि लम्बे समय तक सत्ता में बने रहना है तो मुस्लिम वोटों के बिना उपेक्षा नहीं की जा सकती। इस लिए बीजेपी ने ‘पसमंदा’ मुसलमानों को अपना लक्ष्य बनाया है, जो भारत में सकल मुस्लिम जनसँख्या की लगभग 80% है। ‘पसमंदा’ मुसलमानों को अपने पक्ष में लाने के प्रयास बीजेपी ने प्रारम्भ कर दिया है। उत्तर प्रदेश और बिहार में ‘पसमंदा’ मुसलमानों का विशाल अधिवेशन किया जा चूका है। सभी राज्यों में इस प्रकार का प्लान है, जिस से प.बंगाल भी अछूता नहीं है। तेलंगाना के चुनावों में ‘पसमंदा’ मुसलमान बीजेपी के टारगेट रहेंगे।
भारतीय जनता पार्टी की पूरी राजनीति हिंदुत्व के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है, अक्सर भारतीय जनता पार्टी के छोटे नेता चुनावी मंचों से मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे शब्दों का उपयोग कर हिंदू वोटर्स को एकजुट करने की बात करते हैं।
जातिगत आधार पर मुस्लिम समाज में कोई विभाजन नहीं होता है, परंतु कम से कम भारत में यह सच नहीं है। मुसलमानों में भी ‘उच्च-वर्गीय’ और ‘निम्न-वर्गीय’ प्रथा तो कहीं ना कहीं नज़र आ ही जाता है। भारत में मुसलमानों में जातिगत और सामाजिक आधार पर मुख्यत तीन वर्ग होते हैं — प्रथम अशरफ जो उच्च वर्ग कहलाते हैं, द्वितीय अजलाफ और तृतीय अरजल है। अज़लाफ़ और अरजाल मुसलमानों में दलित और बैकवर्ड माने जाते हैं। वे आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक हर तरह से पिछड़े और दबे हुए होते हैं। इन दोनों वर्गों को हो ‘पसमंदा’ कहा जाता है। ‘पसमंदा’ एक फ़ारसी शब्द है, जिसका अर्थ है पीछे छूटे हुए से है। अशरफ में पठान, सैयद, शेख जैसे लोग आते हैं।
भाजपा के नेता कहते आए है कि पिछड़े मुसलमानों का हक़ शेख़, सैयद, पठान जैसे बड़ी जातियों में आने वाले पसमांदा समाज का हक मारते आए हैं लेकिन अब वह हमारे साथ आए हैं, हम उनके उत्थान के लिए काम कर रहे हैं और मोदी सरकार की ओर से चलाई जा रहीं कल्याणकारी नीतियों का लाभ इस वर्ग को काफ़ी मिल रहा है। पसमांदा समाज के लिए काम करने वाले कई लोग इस बात से इनकार करते हैं, इस पूरे मामले को मुसलमानों के बीच फूट डालने वाली एक बड़ी साज़िश के तौर पर देखते हैं।
प्रधानमंत्री के पसमांदा मुस्लिमों को लेकर दिए गए एक बयान पर जनता दल यूनाइटेड के राज्यसभा सांसद और पसमांदा मुस्लिम महाज़ के नेता अली अनवर अंसारी कहते है कि “बिलकीस बानो पसमांदा समाज से ही संबंध रखती हैं, उनके बलात्कारियों और परिवार की हत्या करने वालों को बीजेपी ने टिकट देकर जिताया, मोदी चाहते हैं पसमांदा मसले का इस्तेमाल कर मुसलमानों को अगड़ों-पिछड़ों में बांटकर राजनीतिक लाभ लिया जाए।”
मंचों से तो प्रधानमंत्री मोदी से लेकर बाकी भाजपा के कई मंत्री पसमांदा मुसलमानों के हक़ के लिए बड़ी बड़ी बातें करते हुए दिखाई देते हैं परन्तु धरातल पर भाजपा ने किसी मुस्लिम को अब तक ना टिकट दिया है ना राज्य सभा भेजा है बल्कि इस साल उच्च शिक्षा में अल्पसंख्यक छात्रों को मिलने वाली मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप को भी बंद कर दिया, इसके अलावा बजट 2023 में अल्पसंख्यकों के फ़ंड में 38% की कटौती की है। इसके अलावा तमाम अल्पसंख्यकों की शिक्षा पढ़ाई के लिए चलने वाली कई योजना सरकार पहले ही बंद कर चुकी है। उर्दू टीचर भर्ती और मदरसों के अध्यापकों का वेतन भी रुका हुई है।
8 फ़रवरी को कांग्रेस से राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने सदन में कहा कि ये सबका साथ, सबके विकास का दावा कर रहे हैं,सबका साथ-सबके विकास के नारे लगा रहे है तो पर्टिकुलर एक कम्यूनिटी जिसको सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशों में ये साबित किया गया है कि वो दलितों से भी बद्तर स्थित में है उसकी आर्थिक समाजिक स्थित ऐसी है,अगर उसके उत्थान के लिए कोई बिल बात कर रहा है तो फिर उसके विरोध में यें है क्यों?
दरअसल ये वहीं मानसिकता है जो लगातार काम कर रही है जिसके तहत अमृतकाल काल में भी जो बजट पेश किया जाता है, उसमें अल्पसंख्यकों के बजट से 38% की कटोती की जाती है। और फिर कहा जाता है सबका साथ सबका विकास। आगे भाजपा के सबके साथ सबके विकास के दावे पर हमला करते हुए इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा भाजपा कोई टिकट किसी मुसलमान को नही देती 3 जो नाम के लोग थे मुख़्तार अब्बास नकवी, एम ज़ी अकबर साहब , सैय्यद ज़फ़र इस्लाम उनको भी किनारे लगा दिया गया है। ये कोन सा सबका साथ सबका विकास है ये नारा खोकला है।
पसमांदा मुस्लिम पर बोलते हुए हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवेसी ने सदन में कहा था, कि पसमांदा मुसलमान से आपको मोहब्बत है तो 1950 का प्रेसिडेंशियल ऑर्डर तरमीम करिये, दलित मुस्लिम का स्टेटस पसमांदा को दिजीए आप नहीं देना चाहते,क्या मज़हबी आज़ादी का हक़ उनको हासिल नहीं है।
मुस्लिम समाज में सबसे निचले तबके के माने जाने वाले दलित मुस्लिमों के अधिकारों पर हमेशा से चर्चा रही है इस समाज को हिन्दू या सिख दलितों के तरह संविधान में आरक्षण का प्रावधान नहीं है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 में शेड्यूल कास्ट को मिलने वाले आरक्षण में मुसलमान और ईसाई समुदाय को बाहर रखा गया है।
पहले कालेलकर कमीशन और फिर सच्चर आयोग की रिपोर्ट ने मुसलमानों की शैक्षिक, आर्थिक स्थिति को दलितों से निचला पाया था लेकिन इसके बावजूद भी अति पिछड़े मुसलमानों को अलग से आरक्षण का कोटा देने पर व्यापक स्तर पर कोई काम नहीं हुआ है क्योंकि 50 फ़ीसदी से ज्यादा आरक्षण देने की लिमिट पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक हटा दी है। ऐसे में मुसलमानों के आरक्षण और दलित मुस्लिमों के शेड्यूल कास्ट में शामिल होने पर एक बार फिर से विचार चल रहा है ।
भाजपा ने शुरू से मुसलमानों में एक ख़ास समुदाय को अपनी तरफ़ लाने की कोशिश की है, पहले शिया समुदाय और सूफ़ी खानकाहों को साथ लेकर चलने की कोशिश होती रही है इसमें भाजपा काफ़ी हद तक कामयाब भी हुई है। अगर हम शिया बहुल इलाक़ों में भाजपा के प्रदर्शन पर नज़र डालें तो अटल बिहारी वाजपेयी के समय से ही लखनऊ की सभी सीटों का शिया वोट भाजपा को मिलता आया है।
वहीं गुजरात के बोहरा समाज के वोट पर नज़र डालें तो 2002 के दंगों के बाद भी ये समाज भाजपा का समर्थक रहा है। इन समुदायों का वोट फीसदी में काफ़ी कम है इसलिए बीजेपी पसमांदा की तरफ़ अपना रुख़ किया है। देश में मौजूद अधिकतर सेक्युलर पार्टी हिंदुओं को जाती के नाम पर बाँट कर अपनी ओर खींचतीं आई है उसी रूप को भाजपा मुसलमानों के लिए अपना रहीं है।