हमारे बहादुर और नौजवान अर्धसैनिक जवानों पर पिछले हफ़्ते हुए दुखद आ!तंकी हम!ले ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है. हमें इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही तय करनी होगी. देश के जवानों की ह!त्या की ऐसी घटनाएं फिर से नहीं घटे इसके लिए हमें जवाबदेही तय करने की जरूरत है. ऐसा तब और भी जरूरी हो जाता है, जब जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने इस घटना में सीधे तौर पर ख़ुफिया एजेंसियों की चूक बताई थी. 2008 में मुंबई में हुए आ!तंकी हम!ले के बाद तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ा था.

मौजूदा सरकार हमारे जवानों के ताबूत के पीछे छिपकर अपना बचाव नहीं कर सकती है. पुलवामा में सुरक्षा की चूक का एक कारण मोदी सरकार में जम्मू कश्मीर की राजनीतिक विफलता है. राज्य और केंद्र दोनों जगहों पर एक तरह से मोदी सरकार का शासन है. जम्मू कश्मीर में स्थानीय आतं!कवादियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, आम नागरिकों की मौ!त का आंकड़ा भी बढ़ा है. इसके साथ-साथ हमारे जवानों की मौ!त के आंकड़े में भी वृद्धि हुई है. तुच्छ दर्जे की राजनीति के कारण मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर में मध्यस्थता करने वाले लोगों को कमजोर किया, जिसने आतं!कवाद को बढ़ावा दिया है. इस गड़बड़ी का जवाबदेह कौन होगा? भाजपा द्वारा राज्यों में नियुक्त राज्यपाल कश्मीरियों का बहिष्कार करने की बात करते हैं? क्या इससे कश्मीर के हालात सामान्य हो पाएंगे? इस घटना पर अपनी जवाबदेही तय करने और लोकतंत्र की बुनियादी ज़िम्मेदारियों पर विचार करने की बजाय मोदी सरकार विपक्ष के समर्थन का नाज़ायज लाभ उठा रही है.

विपक्ष के साथ का दुरुपयोग कर इस घटना के दोषियों को बचाना चाहती है. इस तरह अप्रत्ययक्ष और प्रत्यक्ष रूप से एक ऐसी परिस्थिति खड़ी हो गई है, जहां कश्मीर के निवासियों के ख़िलाफ़ हिं!सा को खुली छूट दे दी गई है. भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यह राजनीति शर्म!नाक, अलोकतांत्रिक और साफ़ शब्दों में कहें तो राष्ट्र वि!रोधी है.