हिंदू धर्म के साहित्य की छपाई और वितरण के लिए प्रसिद्ध ‘गीता प्रेस’ को वर्ष 2021 का ‘गांधी शांति पुरस्कार’ देने की घोषणा पर विवाद छिड़ गया है। कांग्रेस का कहना है कि यह सावरकर और गोडसे को सम्मानित करने जैसा है।
पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने इस संबंध में फैसला लिया। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की ओर से इसका ऐलान किया गया। संस्था की ओर से साफ किया गया है कि उनकी ओर से गांधी शांति पुरस्कार को स्वीकार किया जाएगा। हालांकि, संस्था ने इसके साथ मिलने वाली धनराशि को लेने से इनकार कर दिया है।
गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित संस्था या व्यक्ति को एक करोड़ की राशि भी दी जाती है। गीता प्रेस अपनी परंपरा के मुताबिक, किसी भी सम्मान को स्वीकार नहीं करता है। हालांकि, बोर्ड मीटिंग में तय हुआ है कि परंपरा को तोड़ते हुए पुरस्कार स्वीकार किया जाएगा, लेकिन इसके साथ मिलने वाली धनराशि नहीं ली जाएगी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सरकार के फैसले का विरोध किया है। साथ ही उन्होंने कहा, शताब्दी वर्ष मना रही गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार 2021 देने का फैसला किया गया है। उन्होंने कहा कि अक्षय मुकुल की 2015 में लिखी गई एक बहुत अच्छी जीवनी है, जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी के साथ बनते बिगड़ते रिश्तों की बात कही है। रमेश ने लिखा, यह वाकई उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।
दरअसल, गांधी शांति पुरस्कार महात्मा गांधी द्वारा स्थापित आदर्शों को श्रद्धांजलि के रूप में 1995 में भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वार्षिक पुरस्कार है। संस्कृति मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने सर्वसम्मति से गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार के रूप में चुनने का फैसला किया।