अलविदा डॉ ज़ीशान। इंसानियत की रक्षा के लिए आपका यह बलिदान अमरोहा याद रखेगा। आख़िरी साँस तक आप कोरोना के मरीज़ों का इलाज करते रहे। अमरोहा के डॉ ज़ीशान उस वक्त इस ख़तरे से खेल रहे थे जब लंदन से दूर उनके राज्य के अख़बार और भारत का मीडिया कोरोना को जिहाद बता रहा था।
मुसलमानों से जोड़ रहा था। मुसलमानों के प्रति नफ़रत की जड़ें गहरी कर रहा था। अफ़सोस है। काश मेरी अपील लोगों ने मान ली होती।
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ऐसे अख़बारों को ख़रीदना बंद कर देते और चैनलों को सब्स्क्राइब करने में दो रुपया भी खर्च न करते और न ही यू ट्यूब पर इन्हें देखते। लेकिन लोगों ने मेरी बात नहीं मानी। मान लेते तो ज़हर देखने के बाद लिंक फार्वर्ड का नशा जो छूट जाता।
ब्रिटेन में कोरोना से लड़ते हुए शहीद होने वाले पहले चार डॉक्टर मुसलमान थे। वे मुसलमानों का इलाज नहीं कर रहे थे। आई टी सेल के चक्कर में समाज ने जो नुक़सान किया है उसकी भरपाई कभी नहीं होगी।
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इंसानियत में यक़ीन रखने वाले लोग डॉ ज़ीशान की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। वैसे अब यह जानकारी मिल रही है कि डॉ ज़ीशान पाकिस्तान के थे। अमरोहा से पाकिस्तान गए और वहाँ से ब्रिटेन की नागरिकता ले ली।
(ये लेख वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की फेसबुक वॉल से लिया गया है)