कभी ऐसा लगता है कि सचिन पायलट के दिनमान सही है तो एकाएक हालत ऐसा पलटा खाते है कि अभी दिनमान अभी उनके फेवर में नही है । सितारों की इस कत्थकबाजी की वजह से बड़े बड़े पंडितो और पत्रकारों की भविष्यवाणी भी फेल साबित हो चुके है । यहां तक कि राजस्थान के प्रभारी अजय माकन के बयान भी कसौटी पर खरे नही उतरे है ।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस आलाकमान को सचिन पायलट से इतनी नफरत क्यो है ? पिछले एक साल से वे लगातार राहुल, प्रियंका और सोनिया के यहां मत्था टेकते आ रहे है । लेकिन सुनना तो दूर रहा, इनमे से कोई मिलने तक को तैयार नही है । वैसे तो पायलट हर शनिवार को दिल्ली जाते है । परिवार से मिलने के साथ साथ उनका यह भी मकसद होता है कि उनकी इन तीनो में से किसी एक से मुलाकात हो जाए ताकि वे अपना और अपने समर्थकों का दुखड़ा सुना सके ।
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पिछले महीने भी वे इस उम्मीद में दिल्ली में डेरा डाले पड़े रहे ताकि प्रियंका से उनकी मुलाकात हो जाए । वे समर्थको को कह कर गए थे इस बार फैसला आर-पार का होगा । किश्तों में जिल्लत झेलने के बजाय वे दो टूक निर्णय करके ही लौटेंगे । लेकिन नतीजा शून्य रहा । लाख कोशिश के बाद भी सोनिया, राहुल और प्रियंका ने मिलना गंवारा नही किया । राहुल गांधी तो अब पायलट के नाम से बिदकने लगे है ।
उधर भाजपा से कांग्रेस में आए नवजोतसिंह सिद्धू ने यह साबित कर दिया कि माँ, बेटी और बेटा तीनो उनके इशारे पर कत्थक करने को विवश है । निर्णय वही हुआ, जो सिद्धू चाहते थे । पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के भारी विरोध के बाद भी सिद्धू को पंजाब कांग्रेस कमेटी की कमान सौंप दी । जबकि पंजाब समस्या हल के लिए गठित कमेटी के दो सदस्य सिद्धू को पंजाब कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाने के खिलाफ थे ।
एक तरफ सिद्धू को 10, जनपथ से लेकर राहुल और प्रियंका के घर न केवल आने-जाने की खुली छूट है तो पायलट की हालत हालत सिद्धू के मुकाबले बेहद दयनीय है । वे तीनों में से किसी के घर जाने की हैसियत नही रखते है । यहां तक कि अनेक बार फोन किये जाने के बावजूद कोई रेस्पॉन्स नही मिलना इस बात को जाहिर करता है कि दिल्ली दरबार में उनकी फिलहाल एंट्री बन्द हो चुकी है । कहते है कि जब दिनमान खराब हो तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को कुत्ता काट लेता है ।
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सचिन के दिनमान खराब होने की शुरुआत तो उसी दिन हो चुकी थी जिस रोज उन्होंने बगावत कर मानेसर जाने का निर्णय लिया । खुद को तो भाटा मारा, साथ मे 19 विधायकों का भी कैरियर खराब कर डाला । जिसने भी बगावत की सलाह दी, निश्चय ही पायलट का सबसे बड़ा दुश्मन रहा होगा । आज पायलट आए दिन दिल्ली की ठोकर खाने को विवश है । साथ में उनके समर्थक विधायक भी जनता को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहे । सभी से हर जगह एक ही सवाल पूछा जाता है कि शपथ कब ले रहे हो ? इस शपथ के चक्कर मे कइयों ने नए सूट और सिल्क वाले कुर्ते सिलवा रखे है ।
यदि अशोक गहलोत के अतीत पर नज़र डालें तो वे जल्दी पिघलने वाले नही है । अपने पूर्व के कार्यकाल में भी इन्होंने चुनाव से छह माह पहले राजनीतिक नियुक्तियां की थी । नियुक्तियों के तुरंत बाद आचार संहिता लग गई और नियुक्ति पाने वाले मजा लेने के बजाय गांवों की धूल फांकते रहे । ऐसे में फिलहाल नही लगता है कि वे सचिन से कोई सम्मानजनक समझौता करने के मूड में है ।
समझौता पहले भी हुआ था । उसका हश्र क्या हुआ, सब जानते है । गहलोत के समक्ष एक तरफ कुआं है तो दूसरी ओर खाई । उन्हें अपने समर्थक विधायकों के साथ साथ बसपा, निर्दलीय, हारे हुए कांग्रेसी नेताओं को समायोजित करना है । इन हालत में पायलट के लोगों को बहुत ज्यादा उम्मीद नही पालनी चाहिए । जैसे शादी के वक्त पुरानी साड़ी और कपड़े बांटने के काम आते है ऐसे ही पायलट समर्थकों को भी “टुकड़ा” डाल दिया जाएगा ।
मीडिया खबरों की माने तो गहलोत ने आजकल आलाकमान से भी दूरी बढ़ा ली है । प्रभारी अजय माकन को भी वे बिल्कुल अहमियत नही देते है । पायलट के सितारें तब ही बदल सकते है जब आलाकमान अपनी “अलकमानी” दिखाए । ढुल-मुल रवैये से कांग्रेस की इज्जत को बट्टा लग रहा है । वैसे यह राजनीति है । इसके बारे में कोई भविष्यवाणी करना बेमानी होगा । हो सकता है कि किसी दिन सचिन पायलट की किस्मत भी सिद्धू की तरह खुल सकती है ।