हमारे जीवन में कई ऐसे अवसर होते है, जब हम गले मिलते है. गले मिलने के उद्देश्य और भाव समय, स्थिति और परिस्थिति के हिसाब से बदलते रहते है।
हमारी खुशी,प्रेम और दुख दर्द होने पर आमतौर से हम गले लगकर ही उन्हें बांटते हैं ।आज राजनैतिक क्षेत्र में एक ऐसा ही मंज़र सामने आया जब नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य को बधाई देने पहुंची उनकी प्रिय नेत्री पूर्व मंत्री इमरती देवी । तब मंत्री जी इतने भावुक हो गए कि उन्होंने इमरती देवी को भींचकर गले लगा लिया। जिसके फोटो सोशल मीडिया पर चुटकियां लेते हुए धूम मचाए हुए हैं।
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यहां सवाल मर्यादा का नहीं है क्योंकि यह मामला भाजपा से जुड़ा है। महाराज की गरिमा का भी नहीं क्योंकि अब महाराज आसमान से ज़मी पर उतार दिए गए हैं वे सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। राजमाता के आदर्श पर चलने वाले पोते। हकीकत इस चित्र की मुझे जो समझ आती है वह मुझे खुशी में ग़मगुसारने की ज़्यादा लगती है ।ये सच है कि इमरती का कद हमेशा सिंधिया की नज़र में ऊंचा रहा है। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिराई थी. उस समय उनके समर्थक मंत्रियों में इमरती देवी का नाम ही प्रमुख था। जब सिंधिया ने राजनीति की शुरुआत की उसी समय इमरती देवी भी जिला पंचायत सदस्य चुनी गई थी। कांग्रेस नेता मोहन सिंह राठौर के जरिए सिंधिया और इमरती देवी की मुलाकात हुई । इसके बाद वो सिंधिया की समर्थक बन गईं. कांग्रेस सरकार गिराने के बाद उपचुनाव में इमरती देवी को हार का सामना करना पड़ा था यह उनकी पहली हार थी जिसे जिताने सिंधिया ने कई दौरे किए लेकिन भाजपा के ही एक कद्दावर नेता की बदौलत वे हार गईं । इसके पहले इमरती कहती रही
थी कि वे हारें या जीतें मंत्री तो वह रहेंगी ही । लेकिन शिवराज सरकार ने उनका मान नहीं रखा ।
अब जब सिंधिया केंद्र सरकार में केबीनेट मंत्री बने हैं तो इमरती का खुश होना स्वाभाविक है क्योंकि सिंधिया के प्रभाव से उन्हें कुछ ना कुछ हासिल होने की उम्मीद तो बनती ही है । इसलिए वे ख़ुशी के साथ अपने ग़मुसारने आंसू बहा देती हैं जो स्वाभाविक है। सिंधिया भी इमरती के अवदान के प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने कमलनाथ सरकार में महिला बाल विकास मंत्री रहते हुए सिंधिया का साथ निभाने पद को ठोकर मारी ।आज वे विधायक भी नहीं है। आदिवासी समाज से आने वाली इस दमदार नेत्री के कई किस्से मशहूर है जिसमें बच्चों को मध्यान्ह भोजन में अंडे देने की बात पर वे अडिग रहीं वहां उन्होंने विरोध सहा।जब शिवराज सरकार में मंत्री के नाते फिर आवाज़ उठाई विरोध सहा पर पीछे नहीं हटी और।वे अंडे जैसे पौष्टिक आहार को बच्चों को देना जरूरी समझती थीं। इमरती देवी ने साहस और गर्व के साथ एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में कहा कि आज जो फोटो इस सेमिनार के पार्श्व में बैनर पर छपे हैं कभी वे खुद भी इसी श्रेणी में थी, उनके पास न पढ़ने की सुविधाएं थी, न खाने पीने और पहनने की लेकिन आज वह यहां मंत्री बनकर खड़ी है। मंत्री के रूप में उन्होंने साफ कहा कि हमारा विभाग आज भी अमीरी- गरीबी में विभाजन की रेखा को मजबूत करता है।
कमलनाथ ने जब उन्हें आईटम कहा तो उन्होंने कमलनाथ को भी लुच्चा लफंगा कह दिया था।इमरती को आइटम कहें जाने पर सिंधिया ने मौनव्रत रखकर इमरती का साथ दिया था।जो इमरती शायद ही कभी भूल पाएं।इसी तरह पंद्रह अगस्त को इमरती जब कमलनाथ का भाषण नहीं पढ़ पाईं तो कलेक्टर को पढ़ने आदेशित कर दिया।यह समाचार ख़ूब सुर्खियों में रहा । लेकिन जिस दबंगई से पढ़ने से इंकार और आदेश जारी किया वह उनकी सहज सरल प्रवृत्ति को भी रेखांकित करता है। साधारण परिवार से आई असाधारण महिला को सिंधिया का जिस तरह सहारा मिला वह ही इस बहती अश्रुधार से नि:सृत हुआ ।जिसकी परिणति अंततः गले मिलने में दिखाई देती है।
वस्तुत:दो नेताओं के गले मिलने पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वजहें और कुछ भी हो सकती हैं लेकिन यह तो स्वाभाविक क्रिया है जिसके आवेग को रोका नहीं जा सकता फिर चाहे वह मंत्री का दफ्तर हो या सार्वजनिक स्थल।