जर्मन राजदूत वाल्टर जे. लिंडनर हरफनमौला शख्सियत हैं। फोटोग्राफर हैं, म्यूजिशियन हैं। गिटार, बांसुरी और प्यानो बजाते हैं। इनका अपना रिकार्डिंग स्टूडियो भी है। प्यानो पर राग हंस ध्वनि तानपुरे के साथ बजाकर चकित करते हैं। जब पैसे की ज़रूरत थी, जर्मनी में टैक्सी और ट्रक ड्राइवर का काम भी किया।
हालात बदले, फ़िर बने करियर डिप्लोमेट। दिल्ली के लुटियन में उनकी लाल रंग की एंबेसडर सबसे अलग-थलग दिखती है, उस कार का नाम है ‘बेबी एंबी’। 10 जनवरी 2022 को राजदूत महोदय दिल्ली के किसी व्यस्त बाज़ार में बूंदा-बांदी के बीच विश्व हिंदी दिवस पर बधाई दे रहे थे। डॉयच में नहीं, हिंदी बोलकर। उन्हें कुछ सोच-समझकर भारत का राजदूत बनाया गया है।
यह समझना तब थोड़ा साफ हो रहा था, जब वाल्टर जे. लिंडनर ने दिल्ली के सिरी फोर्ट इलाक़े में गोलगप्पे चाट-टिक्की का स्वाद लेकर अपने ट्विटर पर दुकानदार की तस्वीरें डालीं, और बताया कि यह समस्त चाट की नानी है, जिसके निर्माता बृजेश और महेश बरेली से आये हैं, और तीन पुश्तों से यहां स्ट्रीट फूड बेच रहे हैं। सोचिये, एक राजदूत को यूपी वाले की ज़रूरत क्यों पड़ी, इसे संयोग कहें या सोद्देश्य? इस सवाल को यहीं छोड़े जाते हैं।
जर्मन राजदूत वाल्टर जे. लिंडनर को बनारस के घाट अच्छे लगते हैं। अक्टूबर 2021 में वो गंगा में नौकायन का आनंद उठा रहे थे, दशहरा उत्सव का दीदार कर रहे थे। सुबह-ए-बनारस की तस्वीरें भी साझा की थीं। बाहर से आपको लगेगा, एक जर्मन राजदूत भारत की सांस्कृतिक धरोहर और वहां के आम जन-जीवन को कितना पसंद कर रहा है।
मगर, इसका एक दूसरा पक्ष यह है कि चुनाव से कुछ महीने पहले उस ज़मीन का पता भी करना था, जो उत्तरप्रदेश की राजनीति का एपीसेंटर है, और देश के प्रधानमंत्री का चुनाव क्षेत्र है।
मार्च 2013 को जर्मनी से आये एक मैसेज को मैं कभी भूलता नहीं। यूरोप की एक प्रसिद्ध मैगज़ीन को तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी का इंटरव्यू चाहिए था, जिसके लिए मुझे कोऑर्डिनेट करना था। विषय था, ‘भारत के भावी प्रधानमंत्री मोदी।’ प्रस्ताव बनाकर गांधीनगर, मोदी जी का पीआर देख रहे सज्जन को मैंने भेजा।
फोन पर हामी भी हो गई, मगर उसके अगले हफ्ते सीएम कार्यालय से संदेश आया कि मोदी जी इसके लिए फिलहाल तैयार नहीं हैं। ख़ैर, जो मौजूं बाद में महीनों मेरे लिये सोचने और जिज्ञासा का सबब बना रहा, वो ये कि जर्मन मीडिया को इसकी सूंघ कैसे लगी?
जर्मन खुफिया को दोहा में तालिबान से बातचीत की फर्स्ट हैंड इंफार्मेशन थी। इराक़ युद्ध के समय भी यही हमने देखा। सच बताएं, तो इनके सूचनातंत्र को मुझे कई बार सलाम करना पड़ा है।
जर्मनी, भारत में निवेश करने वाला सातवां बड़ा देश है। ऑव्ज़वेट्री ऑफ इकोनॉमिक कांप्लेक्सिटी (ओईसी) के डाटा बताते हैं कि जुलाई 2020 से जुलाई 2021 तक भारत ने जर्मनी को 944 मिलियन यूरो का निर्यात, और इसी अवधि में जर्मनी से 955 मिलियन यूरो का आयात किया था। यानी, साल भर पहले भारत-जर्मन उभयपक्षीय व्यापार 18 अरब 99 करोड़ यूरो का था। फूल कर कुप्पा मत होइये, हम चीन के मुक़ाबले कहीं नहीं ठहरते।
चीन-जर्मनी का उभयपक्षीय व्यापार 213.2 अरब यूरो का है। उसकी वजह चीन की राजनीतिक स्थिरता और उत्पादन भी है। चुनावों में राजदूत इसी का आकलन करते हैं। सच यह है कि दूतावासों में तैनात मिल्ट्री अताशी, उनका खुफिया नेटवर्क इन्हीं विषयों के गिर्द सूचनाएं एकत्रित करता है।
राजदूतों की यूपी में रुचि केवल निवेश की वजह से नहीं है, उसका सबसे बड़ा कारण 2024 में दिल्ली की सत्ता है। भारत के पांच राज्यों में होने वाले आभासी चुनाव प्रचार पर यूरोपीय संघ की भी नज़र है। 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ के राजदूत, यहां हुए डिज़िटल प्रचार के श्वेत और स्याह पक्ष की रिपोर्ट अपने-अपने विदेश मंत्रालयों को भेजेंगे। उसकी एक और वजह 2024 में यूरोपीय संघ के देशों में होने वाला संसदीय चुनाव है, साथ में कई सारे यूरोपीय मुल्कों में स्थानीय चुनाव भी है, जिसके प्रचार में डिजिटल संसाधनों का सहारा लिया जाना है।
सीएम योगी पर दूतावासों की नज़र 2017 से ही शुरू हो जाती है। 16 मई 2017 को इज़राइली राजदूत दानियल कारमेन सबसे पहले मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से लखनऊ में मिले थे। इस मुलाक़ात में जल प्रबंधन, कृषि के क्षेत्र में सहयोग के लिए बात हुई थी। जनवरी 2018 में इज़राइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बिन्जामिन नेतन्याहू आगरा आये थे, योगी ने इज़राइली निवेश का आग्रह किया। बताया कि पानी संकट से जूझते बुंदेलखंड में इज़राइली परियोजनाओं को लाया जा सकता है।
25 जुलाई 2019 को इज़राइल के दूसरे राजदूत रोन मलका योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में मिले और सहयोग के आयाम को और विस्तार देने का संकल्प किया गया. कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, मार्केटिंग, पेय जल, सिंचाई और डिफेन्स में सहयोग को आगे बढ़ाने पर बात हुई. योगी आदित्यनाथ चाहते थे कि इज़राइल बुंदेलखंड पर केंद्रित करे.
अमेरिका, मिडिल इस्ट, रूस या यूरोपीय देशों के राजदूतों की अभिरुचि आप मणिपुर, गोवा, पंजाब या उत्तराखंड में उतनी नहीं देखेंगे। कश्मीर में उनकी दिलचस्पी की वजह भू-सामरिक स्थिति है. दूसरा, भारत सरकार ने स्वयं उनकी कूटनीतिक यात्राएं करा-कराकर कश्मीर में जिज्ञासा जगा दी। मगर, बात उत्तरप्रदेश की हो रही है। अगस्त 2020 में यूरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक (ईआईबी) ने कानपुर मेट्रो के वास्ते 65 अरब यूरो निवेश कर बता दिया था कि उसकी प्राथमिकता कहां है।
इससे पहले भोपाल, पुणे, बंगलुरू और लखनऊ मेट्रो के वास्ते ‘ईआईबी’ पैसे दे चुका है। लखनऊ में 2020 में डिफेंस एक्सपो का आयोजन किया गया था। इसके प्रकारांतर इंटरनेशनल एयरो-शो का आयोजन 3 से 5 फरवरी 2021 को बंगलुरू में होता है, और वहां यह निर्णय होता है कि यूपी में 20 हज़ार करोड़ का डिफेंस कॉरीडोर बनायेंगे। क्या हैं, इसके सियासी मायने?
दिल्ली, बंगलुरू, अहमदाबाद और लखनऊ में डिफेंस सेक्टर के वास्ते निवेश करने वाले दिग्गज, संबंधित देशों के राजदूतों द्वारा प्रदत सूचनाओं के बिना आगे बढ़ें, असंभव सी बात है। इज़राइल, दक्षिण कोरिया, रूस, जापान, फ्रांस, जर्मनी के राजदूतों को बता दिया गया था कि डिफेंस कॉरीडोर अलीगढ़, आगरा, झांसी, कानपुर, लखनऊ और चित्रकूट में बनाएंगे। इस वास्ते पांच हज़ार हेक्टेयर ज़मीनें ‘लैंड बैंक’ के द्वारा उपलब्ध कराई जाएंगी।
यूपी की पब्लिक को सूचित किया गया कि इससे दो लाख 50 हज़ार नौकरियों का सृजन होगा। सच यह है कि ये जो कुछ बनना है, वह 2027 से पहले साकार नहीं हो पायेगा, सपने आप दिखाते रहिए। राजदूत इसी का अवलोकन तो करेंगे कि सपने दिखाने वाली सरकार को पब्लिक का कितना सपोर्ट है?
यह ध्यान में रखना चाहिए कि रूस को अपने आइने में उतारने का प्रयास मुख्यमंत्री योगी लगातार करते रहे हैं। 12-13 अगस्त 2019 को इंडिया-रशिया कोऑपरेशन की वार्षिक बैठक में योगी आदित्यनाथ ब्लादीवोस्तोक इसी वास्ते गये थे। वो चाहते थे कि उत्तर प्रदेश में रूस न सिर्फ डिफेंस कारिडोर में बल्कि कृषि, सौर ऊर्जा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के क्षेत्र में बड़ा निवेश करे।
उस समय रूस ने भारत में 50 अरब डॉलर के निवेश का लक्ष्य रखा था, उसे हासिल करने के वास्ते यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और असम इन पांच बीजेपी शासित राज्यों के नेताओं को रूस ले जाया गया। ज़ाहिर है, ऐसी बिज़नेस बैठकों के निर्धारण में दूतावासों की बड़ी भूमिका होती है।
उन दिनों केंद्र सरकार की यूपी पर नज़रें इनायत कुछ अधिक थी। योगी आदित्यनाथ के साथ रूसी निवेशकों ने छह अलग-अलग बैठकें की थीं। इसके सवा दो साल बाद, दिसंबर 2021 में अमेठी ज़िले में एके 47 राइफल के ज्वाइंट प्रोडक्शन के वास्ते 5100 करोड़ रुपये के निवेश पर प्रतिरक्षामंत्री राजनाथ सिंह और उनके रूसी समकक्ष सर्गे शोइगु ने हस्ताक्षर किये थे। इस डील के पीछे उत्तर प्रदेश का चुनाव भी लक्ष्य रहा है, इससे बीजेपी के रणनीतिकार भी इंकार नहीं करते।
आप 2019 से 2021 के कालखंड को ध्यान से देखें, तो लगेगा कि दूतावासों की दिलचस्पी गुजरात के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में अत्यधिक बढ़ गई थी। राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के एक रणनीतिकार थे जेम्स कारविल। 77 साल के हैं, जार्जिया में रहते हैं। प्रसिद्ध ऑथर रहे हैं, और अत्यंत हाज़िर जवाब। वो एक जुमला किसी टीवी डिबेट में उछाल गये- ‘इट्स द इकोनॉमी स्टूपिड !’ यह जुमला विश्वव्यापी हो गया।
जब भी टीवी या सेमिनार की बहस में कोई ज़्यादा राष्ट्रवादी विचार बघारता, उसे जेम्स कारविल के जुमले को याद दिला दिया जाता। सच यह है कि उत्तर प्रदेश के संदर्भ में यही एंगल काम कर रहा था। दूतावासों का अपना बिजनेस इंटररेस्ट रहा है, और घरेलू राजनीति को पैसे के साथ-साथ वोट बैंक सुनिश्चित करना था। जनवरी 2018 में इज़राइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बिन्जामिन नेतन्याहू आगरा आये थे, योगी ने इज़राइली निवेश का आग्रह किया। बताया कि पानी संकट से जूझते बुंदेलखंड में इज़राइली परियोजनाओं को लाया जा सकता है।
25 नवंबर 2020 को फ्रांस के राजदूत इमानुअल लेनाएन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ में मिले। दोनों के ट्वीट पर ग़ौर फरमाइये। राजदूत इमानुअल लेनाएन का ट्वीट था, ‘ उत्तर प्रदेश में सस्टेनेबल सिटीज, एयरोस्पेस, डिफेंस इंडस्ट्री को विकसित करने की जो संभावनाएं जाग्रत हो रही हैं, फ्रांस उसमें सहयोग को अत्यंत उत्सुक है।’
इसके सुर में सुर मिलाते मुख्यमंत्री जी का ट्वीट आता है, ‘फ्रांस और भारत के बीच प्रगाढ़ होते संबंधों के हवाले से हमारे बीच काफी लाभदायक बातचीत हुई। उत्तर प्रदेश में जो सामर्थ्य है, उन परिस्थितियों की दिशा में हम अग्रसर होना चाहते हैं।’
फ्रेंच राजदूत इमानुअल लेनाएन ने एक बार फिर ट्वीट किया, ‘ एक्सीलेंट मीटिंग विद योगी आदित्यनाथ। वेरी इंप्रेस्ड बाई यूपी डायनमिज़म।’ जवाब में योगी आदित्यनाथ की ओर से ट्वीट आता है, ‘ फ्रांस के राजदूत इमानुअल लेनाएन से शानदार भेंट हुई।’ उन दिनों एमेटी स्कूल ने ‘अलायंस फ्रांकाइस द लखनऊ’ का आयोजन किया था, वहां राजदूत ने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के लिए प्रशंसा के पहाड़ खड़े कर दिये थे।
उस अवसर पर फ्रांस ने शिक्षा के क्षेत्र में यूपी से सहकार का संकल्प किया। उत्तर प्रदेश से अधिक से अधिक छात्र फ्रांस के शिक्षण संस्थानों में जाएं, इसकी भी योजना बनी। स्थितियां कैसे नाटकीय रूप से बदलती हैं, वह कूटनीतिक गलियारों में देखी जा सकती है। दो-तीन वर्षों से जो राजदूत फूल बरसा रहे थे, अब खामोशी से चुनाव पर नज़र रख रहे हैं !