भारतीय इतिहास के कई पृष्ठ ऐसे हैं जोकि अंधकार में छुपे हुए हैं। दक्षिणी एशिया में सबसे प्राचीन दरगाह पंजाब के पटियाला जिला समाना नगर में है। यह दरगाह 1200 वर्ष पुरानी है और इसमें पैगम्बर ए इस्लाम के दामाद हजरत अली के पड़पोते हजरत इमाम मेहसदी अली दफन है। जोकि शियाओं के 8वें इमाम मूसा रजा के पुत्र बताए जाते हैं।
मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार जब सुन्नी खलीफा पैगम्बर ए इस्लाम के वंशजों का नामोंनिशान मिटाने पर तुले हुए थे और उन्होंने हजरत अली के 7 इमामों के खून से अपने हाथ रंग लिए तो 8वें इमाम ने अपने पुत्र की जान बचाने के लिए उसे अपनी पत्नी सहित भारत भिजवा दिया था।
समाना नगर में हजरत अली का यही वंशज पंजपीर पांच पीरों की दरगाह में दफन है। इस दरगाह की वर्तमान इमारत का निर्माण अकबर महान के शासनकाल में किया गया था। शियाओं के इतिहास की पुस्तक तहरीक ए अहमदी में भी इस बात का उल्लेख है कि इमाम का यह वंशज पंजाब में कहीं दफन है। शियाओं के इस इतिहास के लेखक नवाब अहमद शेख हसन साहब हैं।
देश के विभाजन तक शिया मुसलमान इस दरगाह की जियारत करने के लिए आया करते थे। पाकिस्तान के निर्माण के बाद समाना के सभी मुसलमानवासी पाकिस्तान चले गए और इस दरगाह की हालत दिन-प्रतिदिन खस्ता होती गई। इस मजार पर अरबी भाषा में जो शिलालेख लिखा हुआ है उसके अनुसार यह मजार इमाम मासिद अली पुत्र हजरत अली मूसा रजा का है।
लखनऊ के विख्यात् शिया विद्वान के अनुसार अरब और इराक के बाहर सिर्फ भारत ही एकमात्र जगह है जहां हजरत अली का कोई वंशज दफन है। इस मजार में 4 अन्य कब्रें हैं जिसमें एक कब्र उनकी माता की भी बताई जाती है। यह दरगाह निश्चितरूप से भारत की सबसे प्राचीन दरगाह है।
कहा जाता है कि जब यह इमाम अपनी जान बचाकर इराक से भारत पहुंचे थे तो उन्हें शाही वंश के ब्राह्मण राजा अजय पाल ने अपने साम्राज्य में रहने की जगह प्रदान की थी और उन्हें पूर्ण सुरक्षा एवं एक जागीर भी दी थी। 20 साल पहले पाकिस्तान की उच्चतम् न्यायालय के एक न्यायाधीश साबिर रिज़वी इस मजार की जियारत के लिए पहुंचे थे। तब देश की मुस्लिम जनता को इस मजार के अस्तित्व का पता चला। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह समाना को धार्मिक तीर्थ घोषित कर चुके हैं।
सभार: Manmohan Sharma जी