जनता पार्टी के शासनकाल की बात है। सत्तारूढ़ लोग कांग्रेसियों से गिन-गिनकर इमरजेंसी के दौरान उन पर किए गए अत्याचारों का बदला लेने के लिए जुटे हुए थे। पंजाब में सरदार प्रकाश सिंह बादल की सरकार थी। पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह उसके निशाने पर थे।
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पंजाब सरकार ज्ञानी जैल सिंह के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज कर चुकी थी। ज्ञानी जी जान बचाने के लिए जगह-जगह छुप-छुपकर जीवन व्यतीत कर रहे थे। 1978 की बात है कि मेरी साउथ एवेन्यू में चाय की एक दुकान पर ज्ञानी जी से भेंट हुई। ज्ञानी जी मेरे पुराने जानकार थे। उन्होंने बातचीत के दौरान कहा कि इन दिनों वे बहुत परेशान हैं और गिरफ्तारी से बचने के लिए जगह-जगह मारे फिर रहे हैं।
बादल सरकार उन्हें किसी भी कीमत पर गिरफ्तार करके उन्हें प्रताड़ित करना चाहती है। उन दिनों बादल सरकार ने एक कांग्रेसी नेता ओंकार चन्द को विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार करके पटियाला स्थित माइ की सराय के टाॅर्चर चैम्बर में बुरी तरह से प्रताड़ित किया था। इसलिए ज्ञानी जी पुलिस द्वारा मारपीट किए जाने की सम्भावना से काफी घबराए हुए थे।
ज्ञानी जी ने मुझे बताया कि गत एक माह में अपने अज्ञात वास के चक्कर में एक दर्जन से अधिक बार अपने स्थान बदल चुके हैं और अब कोई मित्र उन्हें जगह देने के लिए तैयार नहीं हैं और अब वे सांसद के एक सर्वेंट क्वाॅटर में छुपकर रह रहे हैं।
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ज्ञानी जी की कहानी सुनकर वास्तव में दुःख हुआ और मैंने उन्हें सलाह दी कि वे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से भेंट क्यूं नहीं करते। ज्ञानी जी ने कहा कि प्रधानमंत्री मुझसे क्यूं मिलेंगे? मैंने उन्हें कहा कि मैं कुछ प्रयास करता हूं। उन दिनों मोरारजी देसाई के मीडिया सलाहकार मेरे पत्रकार मित्र भट्ट साहब हुआ करते थे। मैंने भट्ट साहब से अनुरोध किया कि वे किसी तरह से ज्ञानी जी की मुलाकात मोरारजी देसाई से करवा दें। दोनों के बीच मुलाकात हुई।
ज्ञानी जी के अनुसार मोरारजी देसाई ने उनकी सारी कहानी सुनी और तुरन्त पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल को टेलीफोन लगाकर निर्देश दिया कि ज्ञानी जी को किसी भी कीमत पर राजनीतिक द्वेष के कारण किसी भी झूठे मुकदमे में गिरफ्तार ना किया जाए। मोरारजी देसाई का यह निर्देश ज्ञानी जी के लिए ब्रह्मास्त्र सिद्ध हुआ और वे जेल जाने से बाल-बाल बच गए।