देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू चीन के साथ मैत्री की मृगमरीचिका में बुरी तरह से फंसे हुए थे। जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो चीन ने भारत को आंखें दिखानी शुरू कर दी और उसका रूख दिन-प्रतिदिन आक्रामक होता गया। वर्ष 1959 के बाद ही चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के कारण भारत के अनेक क्षेत्रों पर अपनी दावेदारी शुरू कर दी थी। पंडित नेहरू ने शायद कृष्णा मेनन के प्रभाव के कारण चीन के खिलाफ कोई सख्त नीति नहीं अपनायी।
1960 के दशक में चीन की ओर से भारतीय क्षेत्रों पर अतिक्रमण की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही थी। चीन के इस रूख के कारण संसद एवं देश की जनता में पंडित नेहरू की चीन के प्रति तुष्टीकरण नीति के कारण भारी आक्रोश था।
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1961 में जब चीन ने आक्साईचीन और लद्दाख के अनेक क्षेत्रों पर अतिक्रमण करने के लिए अपने सैनिक भेजने शुरू किए तो इसके खिलाफ आक्रोश भड़क उठा। संसद में इस मामले पर गरमा-गरम चर्चा हो रही थी और नेहरू सरकार को सांसद अपना निशाना बना रहे थे।
आलोचना से भौखलाकर प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गुस्से में कहा ‘अरे! यह क्या बेहूदगी है? लद्दाख और आक्साईचीन में तो घास तक पैदा नहीं होती फिर आप इस क्षेत्र को लेकर इतना हंगामा क्यों कर रहे हैं?’ पंडित नेहरू का यह कथन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व रक्षामंत्री महावीर त्यागी को बर्दाश्त नहीं हुआ।
वह अपनी सीट से खड़े हो गए और कहा ‘आप बात की गम्भीरता को नहीं समझते हैं। यदि कोई क्षेत्र बंजर भी है तो वो हमारी मातृभूमि का अंग है। उसे किसी अन्य देश को सौंपने की हिम्मत कौन कर सकता है? मेरा सिर बिल्कुल गंजा है तो मैं क्या इसे काटकर दोस्ती के खातिर किसी को सौंप दूं? आप बात क्या कर रहे हैं?’
पंडित नेहरू अपनी ही पार्टी के एक वरिष्ठ नेता की आलोचना से बुरी तरह बौखला गए। उनका चेहरा लाल हो गया और वो भिन-भिनाते हुए सदन से उठकर बाहर चले गए। (हम लोग प्रेस-गैलरी में बैठे हुए इस नोंक-झोंक का आनन्द ले रहे थे।)
वह नेहरू युग था। किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह नेहरू के खिलाफ चूं भी कर सके। मगर महावीर त्यागी को नेहरू की मित्रता की बजाय देशहित अधिक प्रिय था।
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आज की पीढ़ी में से कितने लोग महावीर त्यागी के बारे में जानते हैं? इस स्वतंत्रता सेनानी का जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिला में हुआ था। सेना में वो अधिकारी थे और जलियांवाला बाग गोलीकांड के विरोध में उन्होंने खुलेआम बगावत कर दी थी। उनका कोर्टमार्शल हुआ और उन्हें सेना से निकाल दिया गया। इसके बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए।
आजादी के बाद वह उत्तराखंड के देहरादून क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित होते रहे। 1952 से 1957 तक वह केन्द्रीय रक्षामंत्री थे। जब तिब्बत को चीन के हवाले करने का फैसला पंडित नेहरू ने किया तो त्यागी ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। 1980 में उनका निधन हो गया।
साभार : Manmohan Sharma जी, वरिष्ठ राष्ट्रीय पत्रकार