1958 की बात है मैंने जैसे ही हिन्दुस्थान समाचार के दफ्तर में कदम रखा अचानक एक पुलिस अधिकारी ने मुझे सूचना दी कि संचार मंत्री बाबू जगजीवन राम की कोठी के बाहर उनके बेटे और नवविवाहिता पुत्रवधू ने धरना दे दिया है। यह मेरे लिए एक महत्वपूर्ण समाचार था। इसलिए मैं तुरन्त हेस्टिंग रोड़ स्थित बाबूजी की कोठी की ओर रवाना हो गया।
यहां यह उल्लेख करना जरूरी है तब मुझे दिल्ली में पत्रकारिता जगत में आए हुए मात्र एक साल हुआ था। इसलिए मैं अपना रंग जमाने के लिए सदा एक्सक्लूसिव खबरों की जुगाड़ में रहता था।
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जब मैंने रास्ते में अपने कुछ सूत्रों से बातचीत की तो यह पता चला कि बाबूजी के इकलौते बेटे सुरेश राम ने एक पंजाबी महिला से बिना बाबूजी की मर्जी के विवाह रचा लिया है। इससे नाराज होकर बाबू जगजीवन राम ने अपने बेटे और उसकी नवविवाहिता पत्नी को घर से निकाल दिया है और इन दोनों ने बाबूजी के बंगले के बाहर सड़क पर धरना दे रखा है।
जब मैं मौके पर पहुंचा तो बाबूजी की पत्नी इंद्रानी देवी बेटे को समझाने-बुझाने का प्रयास कर रही थीं और बंगले के बाहर पुलिस का कड़ा पहरा था।
बाद में विभिन्न सूत्रों से जानकारी प्राप्त करने पर पता चला कि सुरेश ने जिस महिला से शादी की है वह पंजाबी है और इस्टर्न कोर्ट में टेलीफोन आॅपरेटर के रूप में कार्यरत है। बाबू जगजीवन राम द्वारा इस विवाह के विरोध के कारणों की चर्चा राजनीतिक गलियारों में गर्म थी। बाबूजी के समर्थकों का कहना था कि इस पंजाबी महिला ने अपनी उम्र से 18 वर्ष छोटे सुरेश को अपने जाल में फंसा लिया है। इसलिए बाबूजी इसका विरोध कर रहे हैं। जबकि अन्य लोगों का कथन था कि जिस महिला से सुरेश ने शादी की है उससे बाबू जगजीवन राम के नजदीकी संबंध थे। इसलिए बाबूजी को यह विवाह पसंद नहीं आया।
मेरे लिए यह धमाकेदार खबर थी इसलिए मैं तुरन्त अपने दफ्तर में पहुंच गया। जैसे मैं खबर की काॅपी लिख रहा था कि हिन्दुस्थान समाचार के तत्कालीन महाप्रबंधक बालेश्वर अग्रवाल मेरी सीट पर आए और उन्होंने मुझसे पूछा ‘तुम कहां गए थे?’। जब मैंने उन्हें सारी रामकहानी सुनाई तो उन्होंने मुझे निर्देश दिया कि यह समाचार हिन्दुस्थान समाचार से प्रसारित नहीं होगा। यह मेरे लिए करारा झटका था और मैं बालेश्वर जी से उलझ पड़ा। मगर वो टस से मस नहीं हुए। पत्रकार के रूप में यह मेरा पहला अनुभव था कि कोई खबर रोकी भी जा सकती है।
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सुरेश का यह धरना एक सप्ताह तक जारी रहा। बाद में पिता-पुत्र में सुलह हो गई और बाबूजी ने इस नवदम्पत्ति के लिए डिफेंस काॅलोनी में एक बंगले की व्यवस्था कर दी। इस विवाह के फलस्वरूप सुरेश के घर एक पुत्री पैदा हुई। जिसे मेधावी कीर्ति का नाम दिया गया। जनता पार्टी के शासनकाल में वह हरियाणा सरकार में मंत्री भी थी। एक धुमरकेतु के रूप में वह राजनीतिक क्षितिज पर अचानक प्रकट हुई और फिर लुप्त हो गई। सुरेश और इस पंजाबी महिला की ज्यादा देर तक निभ न सकी और दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए। यह पंजाबी महिला आज भी डिफेंस काॅलोनी के इसी बंगले में रह रही है।
जनता पार्टी के शासनकाल में सुरेश के मेरठ की एक जाट लड़की से भी आंतरिक संबंध बनें। इन दोनों के फोटो उन दिनों काफी देर तक दिल्ली की राजनीति के गलियारों में चर्चित रहे।