अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पारित हुए इस्लामोफोबिया बिल के तहत, इस्लामोफोबिया की निगरानी और मुकाबला करने के लिए एक विशेष दूत की नियुक्ति की जाएगी। इसके साथ ही दुनियाभर के देशों में इस्लामोफोबिया की वजह से मुस्लिमों के खिलाफ होने वाले मामलों को विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में पेश किया जाएगा। डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद इल्हान उमर द्वारा लिखे गए इस्लामोफोबिया बिल के अनुसार, ऐसे मामलों पर नजर बनाए रखने के लिए विशेष दूत नियुक्त करने से अमेरिका के नीति निर्माताओं को मुस्लिम विरोधी कट्टरता की वैश्विक समस्या को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
इस विशेष दूत की नियुक्ति का अधिकार स्टेट सेकेट्री के पास होगा। यह विशेष दूत दुनियाभर के देशों की गैर-सरकारी संस्थाओं के जरिये वहां होने वाले मुस्लिम विरोधी मामलों की जानकारी एकत्र करेगा। इस्लामोफोबिया की वजह से होने वाली इन घटनाओं को प्रकृति और उसकी सीमा के बारे में विस्तृत रिपोर्ट देगा।
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विशेष दूत का काम होगा कि वह अमेरिका सहित दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय खिलाफ हुई हर हिंसा, शोषण के साथ उनके स्कूलों, मस्जिदों और कब्रिस्तानों समेत अन्य संस्थानों के साथ हुई किसी भी घटना की रिपोर्ट बनाएगा। राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा के मामलों की जानकारी निकालने व सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया में मुस्लिमों के प्रति हिंसा के कृत्यों और घृणा को बढ़ावा देने या सही ठहराने के प्रयास करने के बारे में भी रिपोर्ट देगा। मुस्लिम समुदाय के खिलाफ इस तरह के प्रोपेगेंडा को खत्म करने के लिए देशों की सरकार ने किस तरह से जवाब दिया? मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को बचाने के लिए सरकारों ने कौन से कानून बनाए और लागू किए? मुस्लिम विरोधी चीजों को खत्म करने के लिए सरकारों ने क्या किया? इसके जैसी तमाम जानकारियां इस्लामोफोबिया बिल के जरिये अमेरिका के सदन की वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में शामिल की जाएंगी। हालांकि, रिपब्लिकन पार्टी ने इस्लामोफोबिया बिल को जल्दबाजी में लाया गया और पक्षपातपूर्ण बताया है।
भारत पर क्या होगा इस्लामोफोबिया बिल का असर?
इल्हान उमर द्वारा लाए गए इस इस्लामोफोबिया बिल में मुस्लिमों के खिलाफ तथाकथित अत्याचारों के लिए भारत को भी चीन और म्यांमार की श्रेणी में रखने का प्रावधान था। जिस पर भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से जवाब दिया गया था कि ‘भारत लंबे समय से अपनी धर्मनिरपेक्ष साख, सहिष्णुता और समावेशिता को बरकरार रखते हुए सबसे बड़े लोकतंत्र और बहुलवादी समाज के तौर पर अपने दर्जे को लेकर गौरवान्वित महसूस करता है। भारत के संविधान में देश के अल्पसंख्यक समुदायों समेत उसके सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं। भारत का संविधान सभी की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है और लोकतांत्रिक सुशासन और कानून व्यवस्था, मौलिक अधिकारों को बढ़ावा देती है और उनकी रक्षा करती हैं।
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हालांकि, इस प्रावधान को हटा दिया गया है। लेकिन इस्लामोफोबिया बिल पारित होने के बाद अब भारत में होने वाली एक छोटी सी भी घटना को अमेरिका की वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में दर्ज कराया जाएगा। जिस पर राजनीतिक हितों के लिए भविष्य में हो-हल्ला मचाए जाने की भरपूर संभावना है।