उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में हिस्सेदारी करने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) भी ताल ठोंक रही है. अच्छी बात है. उन्हें लड़ना चाहिए. पहले इस पार्टी के जन्म की कहानी को समझ लीजिए, फिर यह मालूम हो जाएगा कि इनकी राजनीति क्या है. दरअसल इस पार्टी का उदय अन्ना हजारे के दिल्ली में दिए गए धरने से हुआ है. इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता है.
अब यह देखना महत्वपूर्ण है कि अन्ना के आंदोलन के पीछे कौन सी ताकतें खड़ी थीं ? मीडिया ने भी तब इस आंदोलन को खूब उछाला था. धीरे-धीरे अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आप का उदय हुआ. मध्यम वर्ग के लोग इसकी रीढ़ हैं. सत्ता से निराश इस तबके के लोगों की मेहनत का ही परिणाम है कि दिल्ली विधानसभा के चुनाव में “आप” को अपार सफलता मिली. उनकी इस सफलता के पीछे भाजपा और कांग्रेस की राजनीति से लोगों का मोहभंग होना प्रमुख कारक है. इस सफलता के बाद अरविंद केजरीवाल ने धीरे-धीरे अपने गुरु अन्ना हजारे से दूरी बढ़ा ली.
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कोरोना की दूसरी लहर के बाद मध्यमवर्ग का एक बड़ा हिस्सा टूटकर गरीबी रेखा से नीचे चला गया है. किसी तरह अपनी बचीखुची सामाजिक प्रतिष्ठा को बचाने के लिए उछलकूद कर रहा है. लेकिन आर्थिक संकट गहराता जा रहा है. यह तबका किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है. वह एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां से आगे बढ़ना मुश्किल है. वह अपने को नियति के भरोसे छोड़ दिया है. और इसी वर्ग के लोग कभी आम आदमी की राजनीति में अपने सपने को साकार करने का सपना देखते थे.
अन्ना आंदोलन के दौरान प्रमुख भूमिका निभाने वाले उनके साथी प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, प्रोफेसर आनंद कुमार ने राजनीतिक मतभेद और अरविंद की कार्यप्रणाली से नाराज़ होकर उनसे दूरी बढ़ा ली और एक नई पार्टी “स्वराज पार्टी” का गठन किए. अस्तित्व में आने के कुछ साल के अंदर “आप” टूट गई. उनके अंतरविरोधों पर मैं विस्तार से नहीं लिखना चाहता हूं.
#लोकसभा_चुनाव2014
दिल्ली फतह के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल बनारस में नरेंद्र मोदी को टक्कर देने के लिए रण में कूद गए. उस चुनाव को मैंने नजदीक से देखा था. तब वामपंथी दलों ने भी उनका समर्थन किया था. वे मजबूती से लड़े और दूसरे स्थान पर रहे. चुनाव प्रचार के दौरान उन पर कई बार हमले हुए. उनकी सभाओं में हुड़दंगी उत्पात मचाते रहे. इसके बावजूद अरविंद चुनाव प्रचार में डटे रहे. मध्यम वर्ग के निराश नौजवान अरविंद की राजनीति में अपना भविष्य देख रहे थे. लेकिन अंतत: उनके सपने क्या साकार हुए. जनता का एक बड़ा तबका अरविंद के साथ जुड़ गया लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद अरविंद केजरीवाल कितनी बार अपने समर्थकों को एकजुट करने के लिए बनारस आए ? यहां यह कहावत चरितार्थ होती है कि मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं.
#सनसनी पैदा करने की राजनीति
सिर्फ सनसनी पैदा करने की राजनीति से मतदाताओं को आकर्षित नहीं किया जा सकता है. इस प्रकार की राजनीति की अब हवा निकल चुकी है. सनसनी पैदा करके सपने दिखाने की राजनीति में भाजपा के नेता उनसे बहुत आगे हैं. अन्य दलों के नेता भी समय-समय पर “सनसनी” पैदा करने की राजनीति ही फिलहाल कर रहे हैं. जनता का अब इससे मोहभंग हो गया है. कुछ दिनों से आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह यूपी में सक्रिय हैं और हाल ही में अयोध्या में भूमि घोटाले को पर्दाफाश करने के कारण राजनीतिक गलियारे में चर्चा में हैं. इससे पहले वे विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर का मुद्दा भी संसद में उठाए थे लेकिन उसका परिणाम क्या निकला ?
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यूपी का राजनीति में भाजपा को टक्कर देने के लिए सपा, कांग्रेस, बसपा के साथ ही “आप” के नेता भी अभी से हुंकार भर रहे हैं. वैसे मतदाता अभी खामोश हैं. गुजरात माॅडल का भाजपा का प्रयोग असफल हो गया है. आप के नेता दिल्ली माॅडल का सपना दिखा रहे हैं. जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब खुद ही अपने “यूपी माॅडल” की चर्चा कर रहे हैं. इस राजनीतिक कवायद के बीच जनता बेरोजगारी, महंगाई और मूल्यवृद्धि से त्रस्त है. उधर, किसान भी दिल्ली बाॅर्डर से ललकार रहे हैं. यूपी में चुनावी विसात की गोटियां बिछाई जा रही हैं. और नेता जनता का मन टटोलन में जुटे हैं.
उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी का कोई नेता किसी ख़ास इलाके को केंद्र में रखकर काम करने की जगह दिल्ली और लखनऊ में बैठे बड़े नेताओं की परिक्रमा करने में ही व्यस्त हैं. यहां कोई बड़ा आंदोलन किसी ने नहीं किया. वामपंथी दल कोशिश करते हैं लेकिन उनकी पकड़ कमजोर है. जिसके कारण वे कोई पहलकदमी नहीं कर पाते हैं. सबसे गंभीर सवाल तो यह है कि जनता का ही राजनीति से अब मोहभंग होने लगा है और इसके भविष्य में घातक परिणाम लोगों को भुगतना पड़ेगा. क्योंकि जो कुछ घटित हो रहा है, उसके पीछे राजनीति ही काम कर रही है. पेट्रोल-डीजल के मूल्य में हुई वृद्धि से उपभोक्ता त्रस्त हैं. इससे सभी चीजों का मूल्य बढ़ा है. वैसे चुनावी अखाड़े में ताल ठोंकने वाले सभी पहलवानों का यूपी के 2022 के रण में स्वागत है.
सुरेशप्रताप