हिसाम सिद्दीकी
उत्तर प्रदेश में उन्नीस (19) दिसम्बर से शुरू हुआ शहरियत एक्ट मुखालिफ आंदोलन अब तकरीबन पूरी तरह ठंडा पड़ चुका है लेकिन इस दरम्यान जो हकीकत सामने आई है वह यह है कि वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ ने पहले ही दिन इंत’काम (बदला) लेने का जो एलान इंतेहाई गुस्से में किया था उस बयान की वजह से उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदेश के मुसलमानों को सरकार का दुश्मन समझ लिया और बीस से ज्यादा मुस्लिम नौजवानों को दं’गाई करार देकर क’त्ल कर दिया।
म’रने वाले तमाम लोगों को पेट और उससे ऊपरी हिस्से में ही गो’लियां मा’री गई जबकि पुलिस जवाबित (नियमावली) और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने ही कह रखा है कि अगर दं’गे फ’साद के दौरान फा’यरिंग करनी पडे तो पुलिस भीड़ में शामिल लोगों को पैरों पर या कमर से नीचे ही गो’ली मारे’गी।
उत्तर प्रदेश में उन्नीस से तेइस दिसम्बर तक किसी भी शहर में न तो कोई फिर’कावाराना (हिन्दू-मुस्लिम) फ’साद हुआ और न ऐसी कोई हिं’सा जिसकी वजह से दो दर्जन लोगों को मौ’त के घाट उतार दिया जाता। वजीर-ए-आला के आर्डर पर अब प्रदेश के तकरीबन तमाम शहरों में हुई हिं’सा मे जो तो’ड़-फो’ड़ और आ’गजनी हुई उससे हुए नुक्सान की भरपाई कराने की जिम्मेदारी भी मुसलमानों पर ही डाली जा रही है।
जबकि शहरियत एक्ट के खिलाफ मुजाहिरे (प्रदर्शन) करने वालों में हिन्दू मुसलमान सभी शामिल थे बल्कि हिन्दुओं की तादाद मुसलमानों से कई गुना ज्यादा थी। योगी पुलिस ने जो फा’यरिंग की उनकी रायफलों से निकलने वाली गोलियां भी इतना जरूर जानती थीं कि उन्हें किन लोगों की जा’ने लेनी हैं। इसीलिए म’रने वालों में हिन्दू शामिल नहीं हैं। लखनऊ, कानपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर और फिरोजाबाद समेत तकरीबन तमाम शहरों के वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं।
हर शहर में पुलिस वालों को गाड़ियां तो’डते, घरों के दरवाजे तोड़ते, घरों में घुस कर ख्वातीन और मासूम बच्चों के साथ बदसुलूकी करते देखा जा सकता है। साफ सबूत होने के बावजूद बर’बरियत करने वाले पुलिस वालों के खिलाफ योगी सरकार ने खबर लिखे जाने तक कोई कार्रवाई नहीं की थी। जो तो’ड़-फो’ड़ पुलिस वालों ने की उसको भी मुसलमानों के सर मढ दिया गया है।
बिजनौर के नहटौर में अनस और सुलेमान को क’त्ल करने वाले थाने के इंचार्ज समेत छः पुलिस वालों के खिलाफ कत्ल का मुकदमा दायर किया जा चुका है। योगी आदित्यनाथ को खुश करने के लिए जिन पुलिस अफसरान ने अपने-अपने जिलों में मुसलमानों पर जु’ल्म ढाए हैं बेगु’नाहों को बिला वजह क’त्ल किया है आने वाले दिनों में एक-एक को जेल जाना पडे़गा उनके खिलाफ तमाम सुबूत वकीलों की एक टीम इकट्ठा कर रही है।
सभी को अदालत में खींचा जाएगा और अदालत में देश का कानून चलेगा वहां योगी आदित्यनाथ न तो उन्हेंं बचाने आएंगे न बचा पाएंगे। आदित्यनाथ, योगी भी हैं अम्न और त्याग की अलामत ‘भगवा’ रंग के कपड़े पहनते हैं लेकिन वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी के ‘सबका साथ सबका विश्वास’ नारे के मुताबिक प्रदेश के अवाम के साथ इंसाफ नहीं कर रहे हैं।
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खुद योगी आदित्यनाथ को दं’गों के दौरान बेगु’नाहां को फं’साए जाने का जाती तजुर्बा है। 2007 मेें गोरखपुर में हिन्दू युवा वाहिनी के लीडर की हैसियत से दिए गए उनके भड़काऊ बयान की वजह से दं’गा हो गया था। पुलिस ने उन्हें गिर’फ्तार करके जेल भेजा था जमानत पर आने के बाद उन्होने लोक सभा में रोते हुए कहा था कि पुलिस ने उन्हें गलत फ’साया और गिरफ्तार करके जेल में डाला, उन्होने इ’ल्जाम लगाया था कि उत्तर प्रदेश सरकार उनका कत्ल कराना चाहती है।
जब वह वजीर-ए-आला बने तो अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे खुद ही वापस ले लिए। अगर उस वक्त बे’गुनाह थे और प्रदेश पुलिस ने उन्हें जबरदस्ती फंसाया था तो उन्हें अब भी यह तस्लीम करना चाहिए कि प्रदेश पुलिस बड़े पैमाने पर बेगुनाह मुसलमानों को भी जबरदस्ती फंसा रही है और अगर आज वह पुलिस को गलत नहीं मानने के लिए तैयार नहीं है तो उन्हें यह भी तस्लीम करना चाहिए कि गोरखपुर के 2007 के दं’गों में वह गु’नाहगार थे। उन्हें अगर अपनी बेगु’नाही पर इतना ही यकीन था तो मुकदमे वापस क्यों लिए अदालत में जाते और कानून का सामना करके पुलिस के इल्जामात को गलत साबित करके अदालत से बरी होकर निकलते। उन्होंने अपने मामले में पुलिस को गलत बताकर मुकदमा वापस तो ले लिया और आज जब मसला मुसलमानों का आया तो वह पुलिस को पूरी तरह ईमानदार करार देकर मुसलमानों के खिलाफ ही कार्रवाई करा रहे हैं। यह उनका दोहरा मेयार नहीं तो और क्या है?
लखनऊ, मुजफ्फरनगर, रामपुर, बुलंदशहर, कानपुर और फिरोजाबाद समेत जितने भी जिलों में योगी सरकार ने तो’ड़-फो’ड़ के दौरान हुए नुक्सान की भरपाई की जो कार्रवाई शुरू कर दी है उसमें कोई ठोस सबूत सरकार के पास अभी तक नहीं है। जबकि पुलिस की बर’बरियत और तो’ड़-फो’ड़ के वीडियो हर तरफ वायरल हो रहे हैं। उन वीडियोज को देख कर एक भी पुलिस वाले के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है। क्योंकि सरकार तो मुसलमानों को अपना दुश्मन तस्लीम कर चुकी है इसीलिए तो पुलिस के जरिए किए गए नु’क्सान की भरपाई भी आम मुसलमानों के सर मढ दी गई।
बिजनौर के पुलिस कप्तान संजीव त्यागी ने जिस तरह एक आडियो वायरल करके पुलिस को मुसलमानों के खिलाफ उकसाया व भड़’काया मेरठ शहर पुलिस कप्तान अखिलेश नारायण सिंह ने जिस तरह लिसाडी गेट की गली के मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाने का हुक्म दिया उनके बयानात सुनकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस किस जेहनी कैफियत (मानसिक स्थिति) से मुसलमानों के साथ इस पूरे मामले में पेश आई है और अब भी आ रही है।
शायद मातहत पुलिस वालों की उतनी गलती भी नहीं है क्योकि वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह गुस्से में इंतकाम (बदला) लेने की बात कही फिर डीजी पुलिस ओपी सिंह ने जिस अंदाज में पुलिस को अपने आका योगी के हुक्म बजा लाने की सख्त हिदायत दी, उसमें यही होना था जो हो रहा है।
उत्तर प्रदेश के डीजी पुलिस ओ पी सिंह पहले ही दिन यानी 19 दिसम्बर से 23 दिसम्बर तक यही कहते रहे कि पुलिस ने प्रदेश भर में एक भी गो’ली नहीं चलाई है हालांकि उस वक्त तक बिजनौर, कानपुर और फिरोजाबाद जैसे शहरों के पुलिस कप्तान यह तस्लीम कर चुके थे कि उनके शहरों में पुलिस ने फा’यरिंग की है तो डीजीपी ओ पी सिंह क्या झूट बोल रहे थे?
और अगर झूट बोल रहे थे तो इसके पीछे उनकी मंशा क्या थी और अगर उन्हें यह पता ही नहीं चला कि उनकी मातहत पुलिस ने कई जिलों में फा’यरिंग की है तो वह डीजी पुलिस के ओहदे के लायक ही नहीं हैं। जिस डीजी को यही न पता चल सके कि उसके प्रदेश में पुलिस ने कहीं फा’यरिंग की या नहीं की तो उसे इस ओहदे पर कैसे रखा जा सकता है।
मतलब साफ है कि डीजी पुलिस प्रदेश भर में हो रहे मुसलमानों पर पुलिस जु’ल्म को छुपाने और देश को गुमराह करने की कोशिश कर रहे थे। क्योंकि बीस से ज्यादा जो मुसलमान गो’ली से मा’रे गए हैं उनमें तकरीबन सभी को पुलिस की गो’ली लगी है। अदालतों में पुलिस को इसका पूरा हिसाब देना पडे़गा।
उत्तर प्रदेश में शहरियत एक्ट के खिलाफ मैदान में उतरने वालों में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, डाक्टर, वकील, काश्तकार यहां तक कि सरकारी मुलाजमीन तक शामिल थे। लेकिन कार्रवाई सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ हुई और हो रही है। लखनऊ में जरूर एसआर दारापुरी, दीपक कबीर और राबिन वर्मा जैसे कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया वह भी ऐसे हिन्दू हैं जो खुद को हिन्दू मुसलमान मानने और मजहब के दायरे में बंधे रहने के बजाए सिर्फ इंसान समझते हैं और इंसानियत व कौमी एकता के लिए ही काम करते हैं। इनपर भी इंतेहाई सं’गीन द’फाएं लगाई गई हैं जिसकी बुनियाद सिर्फ और सिर्फ पुलिस की बर’बरियत और बेई’मानी है।
प्रदेश में कितनी गिर’फ्तारियां हुई इसपर कोई वाजेह (स्पष्ट) बयान पुलिस या सरकार की तरफ से नहीं आया है। लेकिन जिलों से जिस तरह की खबरें मिल रही हैं उससे ऐसा पता लगता है कि प्रदेश में पन्द्रह हजार से ज्यादा गिरफ्ता’रियां की गई हैं। इन गि’रफ्तारियों में ज्यादा तादाद नाबालिग बच्चों की है, पुलिस ने उनकी उम्र का लिहाज किए बगैर ही उन्हें जेल भेज दिया।
अलग-अलग जिलों से मिलने वाली खबरों के मुताबिक पुलिस के हत्थे जो भी बच्चा चढा खासकर मदरसे का बच्चा चढा उसके साथ कोई रियायत नहीं की गई क्योंकि पुलिस की नजर में मदरसों के बच्चों को अगर बचपन में ही पुलिस जुल्म का एहसास हो जाए तो वह ताउम्र खौफजदा रहेगें।
उत्तर प्रदेश में मुजाहिरा करने वालों के खिलाफ जो भी हुआ उसका सीधा मतलब यह है कि प्रदेश पुलिस ऐसे किसी शख्स को छोड़ने वाली नहीं है जो सरकार के किसी फैसले या गैर संवैधानिक कार्रवाई पर सवाल उठाने की हिम्मत करे। लखनऊ के सीनियर वकील मोहम्मद शोएब, सीनियर जर्नलिस्ट्स अलीमुल्लाह खान, रिटायर्ड आईजी एस आर दारापुंरी, राबिन वर्मा और दीपक कबीर इसकी जीती जागती मिसाल हैं।
यह लोग कहीं मजाहिरा करने या तो’ड़-फो’ड़ करने नहीं गए थे बल्कि इन लोगों ने अपने मोबाइल फोन के जरिए आम लोगां से शहरियत एक्ट के खिलाफ 19 दिसम्बर को होने वाले पुरअम्न मुजाहिरे में शामिल होने की अपील की थी। वह अपील भी योगी सरकार की नजर में देशद्रोह हो गई। मोहम्मद शोएब एडवोकेट को तो 18 दिसम्बर से ही पुलिस ने नजर बंद कर रखा था। उनके घर पर पुलिस का सख्त पहरा था जो बीस दिसम्बर तक जारी रहा। इन तीन दिनों में उनकी और उनके घर वालों की हालत जेल में बंद कैदियों जैसी रही 20 दिसम्बर को पुलिस वाले इनके घर से जाने लगे तो उन्हें भी अपने साथ ले गए और उनपर मुकदमा कायम करके उन्हें जेल भेज दिया गया।
योगी सरकार और डीजी पुलिस को अब अदालत में यह भी जवाब देना पडेगा कि जो शख्स तीन दिनों तक पुलिस हिरासत में था हिरासत के दौरान उसने दं’गा भडकाने का काम कैसे कर दिया। इस मामले में सबसे ज्यादा हैरत तो अदालतों के रवैए पर है क्योंकि निचली अदालतों से हाई कोर्ट तक किसी ने भी एक सीनियर वकील के साथ हुई इतनी बडी बेइज्जती का कोई नोटिस नहीं लिया।
रिपोर्ट: जीशान अहमद खान
(ये लेखक के अपने विचार हैं)