नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कानून व्यवस्था बेहतर है की दावे कर रही है लेकिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट का कुछ और ही कहना है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी अभी भी दलितों और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले में आगे है। पिछले तीन सालों में दलितों और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के 43 फीसदी मामले मामले यूपी में रजिस्टर्ड किए गए हैं, जिनमें मॉब लिंचिंग के मामले भी सामने हैं।
अभी हाल ही में सोनभद्र में जमीन विवाद को लेकर दो पक्षों में खूनी संघर्ष हो गया। दोनों पक्षों की ओर से चली ताबड़तोड़ फायरिंग में करीब 9 लोगों की मारे जाने की खबर है। जबकि इस हमले में 20 लोग घायल है। मृतकों में 4 महिलाएं और 5 पुरुष शामिल हैं। यह घटना घोरावल के मूर्तियां ग्राम पंचायत की है।
सोनभद्र जनपद में सामूहिक हत्याकांड का बवाल अभी थमा भी नहीं कि संभल में बेखौफ बदमाशों ने एक बड़ी वारदात को अंजाम दे डाला। वहां कैदियों को ले जा रही पुलिस टीम पर बदमाशों ने हमला बोल दिया। पूरा इलाका गोलियों की आवाज़ से दहल गया। इस दौरान गोलीबारी के बीच हमलावर 3 कैदियों को छुड़ाकर ले गए। इस हमले में 2 पुलिसकर्मी शहीद हो गए।
साल 2016 से साल 2019 (15 जून तक) के बीच एनएचआरसी ने 2,008 मामले दर्ज किए जिनमें अल्पसंख्यकों/ दलितों का उत्पीड़न किया गया। इनमें से 869 मामले अकेले उत्तर प्रदेश में सामने आए हैं। हालांकि, ऐसे मामलों में सबसे अधिक केस यूपी में सामने आए हैं, फिर भी अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामलों में तुलनात्मक रूप से कमी आई है। साल 2016-17 से 2018-19 ऐसे मामलों में 54 फीसदी (42 से घटकर 19) कमी आई है। राजस्थान में 131 केस, हरियाणा में 106 केस, बिहार में 97 केस, मध्य प्रदेश और गुजरात में 88-88 केस, दिल्ली में 76 और उत्तराखंड में 58 केस दर्ज हैं।
वहीं, दलितों के उत्पीड़न की बात करें तो, साल 2016-2017 से 2018-19 के बीच इनमें 41 फीसदी (221 से बढ़कर 311) इजाफा हुआ है। ये जानकारी संसद में 16 जुलाई को गृह मंत्रालय द्वारा लिखित में दी गई है। तमिलनाडु के आईयूएमएल सांसद के. नवसकानी के सवालों के जवाब में ये जानकारी दी गई। उन्होंने सरकार से दलितों और अल्पसंख्यकों पर उत्पीड़न के पिछले तीन साल के मामलों की जानकारी मांगी थी। इसमें मॉब लिंचिंग के मामले भी शामिल हैं।