नई दिल्ली : आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन ‘दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन’ (डीटीए) ने पहली बार दिल्ली यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद (ईसी) और विद्वत परिषद (एसी) के चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा है।
‘आप’ के राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता ने कहा कि आम आदमी पार्टी का संगठन ‘दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन’ दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यकारी परिषद और विद्वत परिषद का चुनाव मजबूती के साथ लड़ेगा।
केजरीवाल सरकार ने जिस तरह से सरकारी स्कूलों के अंदर उल्लेखनीय सुधार किया है, आम आदमी पार्टी उसी तरह से दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी गुणात्मक सुधार करना चाहती है। डीटीए के सचिव डॉ. मनोज कुमार सिंह ने कहा कि आम आदमी पार्टी उच्च शिक्षा में सकारात्मक हस्तक्षेप करना चाहती है और इसलिए यह चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
डीटीए की अध्यक्ष आशा रानी पहले ही ईसी का चुनाव जीत चुकी हैं। डीटीए के प्रभारी प्रो. हंसराज सुमन ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में ईसी और एसी का चुनाव जीतने के बाद हम सबसे पहले अपने एजेंडे को लागू कराने का पुरजोर प्रयास करेंगे।
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के विद्वत परिषद चुनाव के लिए डाॅ. सुनील कुमार और कार्यकारी परिषद के लिए नरेंद्र कुमार पांडे को प्रत्याशी बनाया है।
आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन ‘दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन’ (डीटीए) ने पहली बार दिल्ली यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद (ईसी) और विद्वत परिषद (एसी) के चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा है। इस संबंध में दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ने आज पार्टी मुख्यालय में एक महत्वपूर्ण प्रेस वार्ता कर अपने चुनावी एजेंडे को विस्तार से रखा।
ये भी पढ़ें : भारत-चीन सीमा विवाद पर बोला अमेरिका- अपने मित्रों के साथ खड़े रहेंगे
दिल्ली टीचर एसोसिएशन के सचिव डॉ. मनोज कुमार सिंह ने कहा कि आम आदमी पार्टी का शिक्षा को लेकर जो विजन है, उसकी शुरुआत हो गई है। सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और ‘आप’ के राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता ने उच्च शिक्षा के मुद्दे को संसद में भी उठाया है और विभिन्न मोर्चों पर भी लगातार उठाते रहे हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में विद्वत परिषद और कार्यकारी परिषद का चुनाव है। यह दोनों ही विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्था है, जो शिक्षा को लेकर लेकर भविष्य की योजनाएं और पाठ्यक्रम बनते हैं, जो भी विजन डॉक्यूमेंट होता है, उसको यहीं से अंतिम रूप दिया जाता है। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण चुनाव है।
आम आदमी पार्टी उच्च शिक्षा में सकारात्मक हस्तक्षेप करना चाहती है और इसलिए हम लोगों ने इस चुनाव को लड़ने का फैसला किया है। आम आदमी पार्टी संगठन डीटीए की अध्यक्ष आशा रानी पहले से ही कार्यकारी परिषद (ईसी) का चुनाव जीत चुकी हैं।
प्रोफेसर राजकुमार भी पिछली बार चुनाव लड़े थे और मात्र 5 मतों से हम लोग नहीं जीत पाए थे, लेकिन इस बार हमारी शुरुआत बहुत अच्छी है। दिल्ली विश्वविद्यालय में ईसी के 2 उम्मीदवार होते हैं और उसमें एक पद हमारे प्रत्याशी नरेंद्र पांडे चुनाव लड़ रहे हैं।
एसी में हमारे प्रत्याशी डाॅ. सुनील कुमार चुनाव लड़ रहे हैं। सुनील कुमार भगत सिंह कॉलेज सांध्य में कॉमर्स के प्रोफेसर हैं।
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद सुशील गुप्ता ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में ईसी और एसी का चुनाव होेने जा रहा है। आम आदमी पार्टी शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन इस चुनाव को जोर शोर से लड़ने की तैयारी में है।
हम भी चाहते हैं कि जिस तरह से दिल्ली स्कूली शिक्षा के अंदर हमने बेहतरीन सुधार किया है, जिस प्रकार हम विश्वविद्यालय स्तर पर अलग-अलग विश्वविद्यालय बना रहे हैं। उसी तरह दिल्ली यूनिवर्सिटी के अंदर भी गुणात्मक सुधार और तरीके से होना चाहिए।
विश्वविद्यालय के शिक्षकों एक बहुत बड़ी समस्या थी कि एडहाॅक टीचर की जगह दूसरे परमानेंट टीचर रखने की बात हमेशा करते रहे हैं। 5 दिसंबर 2019 को यूजीसी दिल्ली विश्वद्यिालय और एचआरडी मंत्रालय के बीच एक ट्राई पार्टी एग्रीमेंट हुआ था।
जिसके अंदर यह तय हुआ था कि जब तक सारे स्थाई शिक्षक नियुक्त नहीं होते हैं, किसी भी एडहाॅक टीचर को नहीं हटाया जाएगा। एडहाॅक टीचर को स्थाई करने को प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन दिल्ली विवि. अभी तक आज तक 2019 के उस सर्कुलर को मान्य नहीं कर रही है।
उन्होंने कहा कि मैंने इस संबंध में केंद्रीय शिक्षा मंत्री जी को भी पत्र लिखा था और उनसे बात करके ट्राई पार्टी एग्रीमेंट को अक्षरसः लागू करने की मांग की थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी के एडहाॅक शिक्षक को भयमुक्त करें, ताकि वही टीचर वहां पर स्थाई हो और जब तक सभी टीचर नियमित नहीं होते हैं, तब तक एक भी एडहाॅक टीचर नहीं रखा जाए।
यह भी उस एग्रीमेंट का एक पार्ट था। आज हम जो चुनाव लड़ रहे हैं, उसमें भी यह एक प्रमुख मुद्दा है। जब यूनिवर्सिटी के उच्च स्तरीय बाॅडी के अंदर आएंगे, तो हम उस बात को सुनिश्चित करेंगे और काउंसिल इस बात को पास करेगी, ताकि कोई ऐसा काम न हो।
यूनिवर्सिटी के कुलपति और वर्तमान बॉडी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है। उनकी कोशिश रहती है कि किसी तरह से एडहाॅक शिक्षक की जगह एनए टीचर हैं। हमारा हमेशा इसका कड़ा विरोध रहा है।
मीडिया को संबोधित करते हुए डीटीए के प्रभारी प्रोफेसर हंसराज सुमन कहा कि दिल्ली टीचर एसोसिएशन ने पहले ही कहा था कि इस बार दिल्ली विश्वविद्यालय में आम आदमी पार्टी के शिक्षक विंग का खाता खुलेगा और वह खाता दिल्ली विश्वविद्यालय में खुल चुका है।
आशा रानी महिला कोटे से निर्विरोध चुनाव जीत चुकी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में दो तरह की सर्वोच्च संस्था है, एक कार्यकारी परिषद, जिसे एग्जिक्युटिव काउंसिल (ईसी) और दूसरी विद्वत परिषद है, जिसे हम एकेडमिक काउंसिल (एसी) कहते हैं।
इन दोनों परिषदों में शैक्षिक मुद्दे उठाए जाते हैं, जो शैक्षिक मुद्दे होते हैं। वही एसी में पास किए जाते हैं। वहां 26 सदस्य होते हैं। इन 26 सदस्यों में से अभी 9 निर्वाचित हो चुके हैं और 17 का चुनाव 12 फरवरी को होना है।
ये भी पढ़ें : बजट के बाद महंगाई का झटका, कंपनियों ने बढ़ाए LPG सिलिंडर और पेट्रोल-डीजल के दाम
जिसमें 22 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, उनमें से एक उम्मीदवार डाॅ. सुनील कुमार आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हैं और ईसी के लिए के हमारे उम्मीदवार नरेंद्र कुमार पांडे हैं, जो राम लाल आनंद कॉलेज में वरिष्ठ प्रोफेसर हैं।
जो आज केंद्र की सत्ता में है, वह पिछले 5 साल से शिक्षकों के बीच जाकर एडहाॅक टीचर को यह कह रही है कि हम आपका समायोजन करेंगे, लेकिन वे यह नहीं बताते हैं कि समायोजन कैसे होगा? उन्होंने समायोजन की प्रक्रिया आज तक नहीं अपनाई है।
इस संबंध में हमने दिल्ली विश्वविद्यालय को एक सर्कुलर दिया है, उस सर्कुलर में हमने कहा है कि जो एडहाॅक लंबे समय से पढ़ा रहे हैं, उनका समायोजन किया जाए।
उन्होने कहा कि एग्जिक्युटिव काउंसिल में जब हमारा सदस्य पहुंचेगा, तो हमारी पहली प्राथमिकता एडहाॅक शिक्षकों के समायोजना और स्थाईकरण करने का होगा। हमारे एजेंडे में अन्य बिंदु भी शामिल किए गए हैं।
यह कितनी विडंबना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में 6 हजार से अधिक टीचर हैं उसमें 40 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं शिक्षिकाएं हैं, जो 30 से लेकर 50 साल की उम्र की हैं और ये 15 से 20 साल से पढ़ा रही हैं, लेकिन किसी भी महिला शिक्षक को आज तक मातृत्व अवकाश नहीं दिया गया है।
हमारे में एजेंडे में यह सबसे पहला बिंदु है कि समायोजन करने के साथ ही महिला टीचर को मातृत्व अवकाश दिया जाए। अभी तक एडहाॅक टीचर को किसी तरह की कैशलेस चिकित्सा सुविधा नहीं मिलती है।
जिस तरह से स्थाई टीचर को कैशलेस मेडिकल की सुविधा है, उसी तरह से एडहाॅक शिक्षकों को भी सुविधा दी जाए। हम चुनाव जीतते हैं, तो एडहाॅक टीचरों के बच्चों के लिए कोटा निर्धारित कर उन्हें एडमिशन दिलवाएंगे।
उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में लगभग 700 विकलांग टीचर हैं, उनके लिए 6 या 7 कॉलेज में ही स्पेशल टॉयलेट, रैंप और सीढ़ियां है। हम जीतने के बाद बाकी कॉलेजों में भी बनवाए का प्रयास करेंगे।
दिल्ली विश्वविद्यालय में 2007 में ओबीसी आरक्षण लागू हुआ था, लेकिन उसे 2010 में लागू किया गया और 2014 में कुछ पद भरने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन पदों को नहीं भरा है। हमारा प्रयास रहेगा कि हम इन पदों को भरेंगे।
केंद्र सरकार ने 2019 में 10 प्रतिशत आरक्षण ईडब्ल्यूएस के लिए दिया था, रोस्टर में बदलाव आने बाद भी अभी तक दिल्ली विश्वविद्यालय में केवल विभागों में ही ईडब्ल्यूएस पदों को दिया है। किसी भी कॉलेज में ईडब्ल्यूएस पदों को नहीं भरा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में परमानेंट नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की है, उसमें भी जिस शिक्षक ने 20, 25 या 30 साल पढ़ाया है, उसकी सर्विस 4 साल की गिनी जा रही है। जबकि इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में यह नियम था कि जितने साल उसने पढ़ाया है, परमानेंट नियुक्ति के दौरान उसकी पूरी सर्विस को गिना जाता था।
वह परमानेंट होने के कुछ महीने बाद ही एसोसिएट प्रोफेसर हो जाता था लेकिन केंद्र सरकार ने यूजीसी रेगुलेशन 2018 लाने के बाद एडहाॅक टीचर के साथ यह पहली बार मार पड़ी है कि अब अगर कोई शिक्षक 25 साल एसे पढ़ा रहा है, तो उसकी सर्विस 4 साल की गिनी जाएगा और वो कुछ समय बाद सहायक प्रोफेसर के पद से ही सेवानिवृत्त हो जाएगा।
जामिया में जिनकी 30 साल की सर्विस हो चुकी है या 55 साल की उम्र हो चुकी है, उनको सेवानिवृत्ति की ओर धकेला जा रहा है और अब दिल्ली विश्वविद्यालय में उसका दूसरा कदम आने वाला है।
हमने एजेंडे में रखा है कि अगर 30 की सर्विस या 50 से 55 की उम्र के व्यक्ति को सेवनिवृत्त करने का नियम आएगा, तो हम उसका पुरजोर विरोध करेंगे और उसको लागू नहीं होने देंगे। दिल्ली विश्वविद्यालय में पार्लियामेंट्री कमेटी ने एक काले कमेटी बनाई थी।
उस कमेटी में एससी, एसटी और ओबीसी को आरक्षण 1997 से देने के लिए कहा था, लेकिन दिल्ली विवि ने प्रो. काले कमिटी के सुझावों को आज तक स्वीकार नहीं किया है। काले कमेटी ने प्रोफेसर और प्रिंसिपल के पदों पर भी आरक्षण देने के लिए कहा था। दिल्ली टीचर एसोसिएशन ने इस संबंध में एक मांग पत्र भी दिया हुआ है।
दिल्ली विवि के दो दर्जन से अधिक काॅलेजों में प्रिंसिपल के पद खाली हैं और तीन दर्जन से लाइब्रेरियन के पद खाली हैं और छह दर्जन से अधिक फिजिकल एजुकेशन टीचर नहीं है। अगर हम चुनाव जीतते हैं, तो सबसे पहले हम अपने एजेंडे को लागू कराने का पुरजोर प्रयास करेंगे।