रामनवमी बीत गई, ईद भी बीत गई, लेकिन देश में हिंदू-मुसलमान के बीच दूरियां बढ़ाने की कोशिशें बंद नहीं हुईं, बल्कि उन्हें और बढ़ाया जा रहा है। अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि अगले विधानसभा चुनावों तक इसे तूल दिया जाएगा। फिर इसका असर तौला जाएगा और उस मुताबिक 2024 के चुनाव तक इन कोशिशों को जारी रखा जाएगा या स्थगित किया जाएगा। महाराष्ट्र में शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाकर राज ठाकरे कोई ख़ास कमाल नहीं दिखा पाए, तो अब उन्होंने हनुमान चालीसा को अपनी संकीर्ण राजनीति का जरिया बना लिया है। जिस हनुमान चालीसा को पढ़ने से सारे डर दूर होने की बात कही जाती रही है, उसी को अब दूसरों को डराने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
राज ठाकरे ने मस्जिदों से लाउडस्पीकर से अजान किए जाने पर हनुमान चालीसा बजाए जाने की चेतावनी दी है। उन्होंने लाउडस्पीकर के ख़िलाफ़ अपने आंदोलन के बारे में कहा कि यह सामाजिक विषय है ना कि धार्मिक विषय और सभी मंदिरों-मस्जिदों में अवैध रूप से लगे लाउडस्पीकर हटा दिए जाने चाहिए। लेकिन दूसरी ओर उन्होंने बाल ठाकरे की एक पुरानी वीडियो क्लिप दिखाई, जिसमें बाल ठाकरे मस्जिदों में लाउडस्पीकर और खुले में नमाज़ के बारे में कह रहे हैं। इस वीडियो क्लिप और अज़ान के बदले हनुमान चालीसा से जाहिर हो जाता है कि उनके मकसद में समाजसेवा का प्रतिशत कितना है और धार्मिक कट्टरता का कितना। महाराष्ट्र में इस संकीर्ण मानसिकता की राजनीति से राज ठाकरे अपने जनाधार को कितना बढ़ा पाते हैं, या शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार के विरोध में अपना पलड़ा कितना मजबूत कर पाते हैं, यह चुनावों में पता चल ही जाएगा। इधर राजस्थान में भी कांग्रेस की स्थिर सरकार के लिए चुनौतियां पेश की जा रही हैं।
दुर्गापूजा के बाद, ईद के मौके पर भी राजस्थान में सांप्रदायिक हिंसा सुलगी। जोधपुर में एक चौराहे पर धार्मिक झंडे लगाने पर शुरु हुआ विवाद देखते-देखते बड़े झगड़े में तब्दील हो गया। कई इलाकों में तोड़-फोड़ की गई, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। घटना के चश्मदीदों का कहना है कि उत्पात करने वाले योजना बनाकर आए थे। उपद्रवियों ने लोगों को डराने के लिए तलवारें लहराईं, तेजाब की बोतलें फोड़ी गई, कई जगह महिलाओं से छेड़खानी हुई, मासूम बच्चों को डराया गया। हिंसा रोकने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा और भीड़ तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस छोड़नी पड़ी। हालात पर काबू पा लिया गया है और कई लोगों पर कानूनी कार्रवाई की जा रही है, लेकिन इससे समाज में नफरत और संदेह की जो गांठ पड़ गई है, वो आसानी से अब नहीं खुलेगी। जोधपुर मामले की चर्चा संयुक्त राष्ट्रसंघ में भी हुई है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुरेस के एक प्रवक्ता ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि विभिन्न समुदाय के लोग साथ मिलकर काम करेंगे और भारत सरकार तथा सुरक्षाबल यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी अपने त्यौहार आदि शांतिपूर्वक मना सकें।
यह कितनी शर्मिदगी की बात है कि भारत के इन ख़राब हालात पर वैश्विक स्तर पर चर्चा हो रही है। जबकि दुनिया के नक्शे पर भारत की ख़ास पहचान इस वजह से भी थी कि यहां सभी धर्मों के लोग सदियों से मिल-जुलकर रहते आए हैं। अब इसी पहचान को विकृत कर देश का नाम ख़राब किया जा रहा है। जोधपुर मामले में हालात संभाल लिए गए हैं, लेकिन यह गौरतलब है कि एक महीने के भीतर देश के अलग-अलग हिस्सों में किस तरह माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई है। पिछले दिनों अयोध्या में भी ऐसी ही हिंसा भड़काने की कोशिश हुई थी, जिसमें पुलिस की मुस्तैदी से बात संभल गई और ये खुलासा भी हो गया कि साजिशकर्ता दक्षिपंथी संगठनों से जुड़े थे।
अयोध्या में जिस तरह की साजिश रची गई, उस कुटिल मानसिकता का ज़िक्र भीष्म साहनी अपने उपन्यास तमस में कर चुके हैं। इससे पता चलता है कि देश में धर्म के नाम पर लकीरें खींचने की कोशिश आज की बात नहीं है, एक अरसे से ऐसा हो रहा है। फ़र्क इतना ही है कि पहले नफ़रत फैलाने के औजार और मंच अलग थे, अब सोशल मीडिया उस्तरे की तरह हाथ लग चुका है। एक फ़र्क ये भी है कि पहले सत्ता में बैठे लोग इस तरह खुलकर धर्मांध लोगों की सरपरस्ती नहीं करते थे। अब धर्मांधता की फफूंद को सत्ता की राजनीति की सड़ी-गली सोच पर पनपने के पर्याप्त अवसर दिए जाते हैं।
अब सत्ता संपन्न लोग खुलकर हिंदू राष्ट्र बनाने की वकालत करने लगे हैं। वे इतिहास की गलतबयानी करते हैं और जनता को यह बतलाते हैं कि इस्लाम के कारण हिंदुत्व खतरे में है। इस बारे में प्रेमचंद ने 1931 के अपने लेख हिंदू-मुस्लिम एकता में लिखा है कि यह बिलकुल ग़लत है कि इस्लाम तलवार के बल से फैला। तलवार के बल से कोई धर्म नहीं फैलता, और कुछ दिनों के लिए फैल भी जाए, तो चिरजीवी नहीं हो सकता। भारत में इस्लाम के फैलने का कारण, ऊंची जाति वाले हिंदुओं का नीची जातियों पर अत्याचार था। तर्कों पर चलने वालों को प्रेमचंद की बात समझ में आएगी। मगर जिन्हें धर्म के जरिए सत्ता हासिल करने की सनक हो, उनके लिए न तर्क मायने रखते हैं, न धर्म।