इस देश में पहले ऐतिहासिक तारीखों पर जश्न मनाया जाता था। आजकल उन तारीखों में देश का शीर्ष नेतृत्व विलाप और कालिख पोतने से नहीं चूकता। 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस की वर्षगांठ के समय पंडित नेहरू और उनकी नीतियों के बारे में इसी तरह का झूठ बोला गया। आइए सच्चाई जानते हैं।
नेहरु जी कोई काम छुपकर नहीं कह रहे थे डंके की चोट पर कर रहे थे और लाल किले से ऐलान कर रहे थे। 15 अगस्त 1954 को लाल किले से पंडित नेहरू ने कहा : हिंदुस्तान के ये टुकड़े छोटे हैं, चंद गांव के बराबर हैं, लेकिन शरीर के हिस्से में छोटी सी दुखती चीज भी तकलीफ देती है, तो वह मसला बहुत दिन पहले हल हो जाना चाहिए था। लेकिन हमने शांति से उस पर अमल किया। उसकी कोशिश की कि हम मिलकर उसे तय करें। एक जगह मुझे ऐसा लगा है कि फैसला जल्दी हो जाएगा पर दूसरी तरफ और दिक्कतें पेश होती हैं। खैर, जैसा कि आप जानते हैं यह मसले यकीनन हल होंगे।
इसी भाषण में नेहरू ने आगे कहा: वह एक पुरानी निशानी हो गई है एक पुराने फोड़े की निशानी हो गई है यानी की एक मुल्क का दूसरे मुल्क पर हुकूमत करना और गोवा हिंदुस्तान में ऐसी सबसे पुरानी निशानी है।.. अगर पुराने जमाने के दिमाग उनके हैं तो यकीनन वे पुरानी ठोकरें खाकर फिर गिरेंगे, कलाबाजियां खाएंगे।
1955 में लाल किले से पंडित नेहरू ने कहा: आज हम आजादी की आठवीं वर्षगांठ मना रहे हैं और दुनिया देखे कि हमने इन 8 वर्षों में कितने सब्र से काम लिया किस कदर रोकथाम की क्योंकि हम चाहते थे और हम चाहते हैं कि यह गोवा का सवाल सब्र और बाअमन तरीके से हल हो। जो लोग वहां जा रहे हैं, मुबारक हो उनको वहां जाना, लेकिन वे यह याद रखें कि यदि वे अपने को सत्याग्रही कहते हैं तो सत्याग्रह के उसूल सिद्धांत और रास्ते भी याद रखें। सत्याग्रह के पीछे फौज नहीं चलती और ना फौजों की पुकार होती है। खुद उस मसले का दूसरे तरीके से सामना करते हैं।
यह तो हुआ, लेकिन एक और सवाल है। हमने देखा कि पिछले सालों में कई बार यह सत्याग्रही जो वहां गए थे, उन पर गोली चली और उनमें से कुछ नौजवान मरे। लेकिन एक उसूल हमें सामने रखना है और दुनिया के सामने रखना है कि किसी मुल्क के निहत्थे लोगों पर, जिनके हाथ में कोई हथियार नहीं है, उनके ऊपर गोली चलाना कहां तक मुनासिब है? दुनिया के इंटरनेशनल कानून में या किसी भी शराफत के कानून में यह कहां लिखा है कि जो लोग निहत्थे हैं, जिनके पास हथियार नहीं हैं, जो लोग हमला नहीं कर रहे हैं, उनके ऊपर गोली चलाई जाए। यह गलत बात है। मैं बहुत अदब से कहना चाहता हूं कि दुनिया को समझना चाहिए और पुर्तगाली हुकूमत को समझना चाहिए कि उन्हें शराफत के खिलाफ ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।
15 अगस्त 1960 को पंडित नेहरू ने लाल किले से कहा: एक कसर रह गई हमारे इस सिलसिले में, हिंदुस्तान की आजादी में एक कमी रह गई है और लोग शायद समझते हों कि हमें वह याद नहीं रहती, लेकिन वह हमेशा याद रहती है और वह कमी पूरी होगी। वह कमी है हिंदुस्तान का छोटा सा हिस्सा जिसका नाम गोवा है। याद रखिए और दूनियां इसको याद रखे कि वह हर वक्त हमारे दिमाग में है और हमारे दिल में है और यह महज हमारी हिम्मत है कि हमने हाथ उठाना रोका है। यह हमारी कमजोरी नहीं है यह हमारी शान और हिम्मत है। क्योंकि हम अपने उसूलों पर चिपके हैं कि हम फौज के जरिए इस बात को हल नहीं करेंगे। लेकिन यकीनन यह हिंदुस्तान की याद में रहेगा और यह सवाल हल होगा। मैं चाहता हूं कि दुनिया इसको याद कर ले और जो मुल्क गोवा को दबाए है, वह भी इसको समझने और याद कर ले और किसी धोखे में न पड़े।
भारत की आजादी के 14 वर्ष बाद तक शांति और बातचीत से गोवा को भारत में मिलाने के प्रयास जब सफल नहीं हुए तो अंततः पंडित नेहरू ने सेना की शक्ति से गोवा का भारत में विलय कराया। वे यह काम पहले दिन भी कर सकते थे। लेकिन तब भारत अंतरराष्ट्रीय पटल पर शांति की महाशक्ति के तौर पर उभर नहीं पाता। हमें धीरज और कायरता में फर्क करने का विवेक बनाए रखना चाहिए।
जिन्हें अब भी समझ में ना आए वे चीन से जाकर पूछें कि आखिर उसने हांगकांग को इंग्लैंड से वापस लेने के लिए 100 साल तक इंतजार क्यों किया। जबकि चीन तो इतनी बड़ी आर्थिक और सैन्य महाशक्ति बन चुका था।