हिसाम सिद्दीकी
मोदी हुकूमत के नए शहरियत एक्ट के खिलाफ मुल्क के मुख्तलिफ हिस्सों में कई महीनों से चल रहे एहतेजाजी द्दरने और मजाहिरों ने 19 दिसम्बर को उस वक्त संगीन शक्ल अख्तियार कर ली जब पूरा देश सड़कों पर आ गया। इस दरम्यान दिल्ली का जामिया और अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी में 15 दिसम्बर को पुलिस की बरबरियत, फा’यरिंग और तोड़-फोड़ के कई वीडियो भी सामने आ चुके थे जिन्हें देखकर हिन्दू मुसलमानों खुसूसन सिखों में जबरदस्त नाराजगी फैल चुकी थी।
देश का हर तबका और हर मजहब के लोगों मे यह बात घर कर चुकी है कि शहरियत एक्ट और एनआरसी दोनों ही मुल्क के मफाद में नहीं हैं। लेकिन मरकजी सत्ता में बैठे वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह और उनके तमाम वजीर अपनी जिद पर अड़े हैं। 19 दिसम्बर को मुजाहिरों के दौरान मुल्क क्रे कई हिस्सों में तोड़-फोड़ आगजनी और हिं’सा के वाक्यात पेश आए।
लखनऊ में हिं’सा की इंतेहाई डरावनी शक्ल सेक्रेटेरिएट से चंद कदम के फासले पर परिवर्तन चौक पुराने लखनऊ के मदेहगंज, खदरा और ठाकुरगंज वगैरह में नजर आई। लेकिन नज्म व नस्क (कानून व्यवस्था) के सिलसिले में लम्बी-लम्बी डींगे हांकने वाले वजीर-ए-आला योगी आदित्यनाथ का मुबय्यना (कथित) रूतबा कहीं नजर नहीं आया। शायद इसलिए कि वह अपनी ही पार्टी के दो सौ से ज्यादा नाराज मेम्बरान असम्बली को ठीक करने में उलझे थे। दिल्ली का हाल और भी बुरा दिखा, हरियाणा से दिल्ली आने वाले तमाम रास्तों पर पुलिस की नाकाबंदी की वजह से ऐसा जाम लगा कि तकरीबन नौ घंटे तक लोग जाम में फंसे रहे। दो दर्जन से ज्यादा फ्लाइटें इस लिए परवाज नहीं कर पाई कि जाम की वजह से उन्हें उड़ाने वाले पायलेट और दीगर अमला जाम में फंसे होने की वजह से एयरपोर्ट नहीं पहुच सके।
देश ही नहीं, विदेशों से आने वाली खबरों से पता चला कि योरोपियन मुल्कों और अमरीका में भी (बाकी पेज दो पर) कई जगह नए शहरियत एक्ट और जामिया व अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी में हुई पुलिस की बरबरियत के खिलाफ द्दरने और मुजाहिरे हुए अमरीका की कई युनिवर्सिटियों में तलबा ने इकट्ठा होकर भारतीय संविद्दान (आईन) का प्रिएम्बिल बाआवाजे बुलंद पढा और यह हलफ उठाया कि भले ही वह अपने मुल्क से हजारों किलोमीटर के फासले पर मुकीम हैं लेकिन वह अपने मुल्क के संविद्दान पर कोई आंच नहीं आने देंगे।
उन्नीस दिसम्बर को वैसे तो भारत बंद का नारा लेफ्ट पार्टियों ने दिया था लेकिन उत्तर प्रदेश में बंद रखने का एलान समाजवादी पार्टी, कांग्रेेस और शिवपाल यादव की पार्टी समेत तकरीबन सभी पार्टियों ने किया था। इसीलिए बंद को ज्यादा कामयाबी मिली। दिल्ली के लाल किला मैदान में लोगों को इकटठा होकर मुजाहिरा करने की अपील कई पार्टियों ने मिलकर की थी पूरे शहर में दफा-144 नाफिज होने के बावजूद एक बडी भीड़ वहां पहुची और दिल्ली के बेश्तर (अद्दिकांश) बाजार बंद रहे। शहर के दो दर्जन से ज्यादा मेट्रो स्टेशन भी बंद करने पड़े।
वजीर-ए-आजम मोदी हो, अमित शाह हों या उनके वजीर कानून रविशंकर प्रसाद सभी ने द्दरना और मुजाहिरो का ठीकरा कांग्रेस पार्टी के सर फोडने की कोशिश की और कहा कि कांग्रेस ही पूरे देश में हंगामा करा रही है। झूटों और बेशर्मी के बादशाह बन चुके बीजेपी तर्जुमान संबित पात्रा ने बार-बार कहा कि कांग्रेस पार्टी ने 14 दिसम्बर को दिल्ली के रामलीला मैदान में जो देश बचाओ रैली की थी वह दरअस्ल राहुल गांद्दी को दोबारा लांच करने के लिए की गई थी। इसी मकसद से पूरे देश में हंगामे कराए जा रहे हैं। यह बयान देते वक्त संबित पात्रा भूल गए कि 14 दिसम्बर की कांग्रेस की ‘देश बचाओ’ रैली से तकरीबन एक हफ्ता पहले से ही पूरा असम जल रहा था। असम और बंगाल में बड़े पैमाने पर शहरियत एक्ट के खिलाफ मुजाहिरे हो रहे थे।
वजीर-ए-आजम मोदी के गुलाम बन चुके टीवी-18 के संघी एंकर अमीश देवगन ने अपने चौपाल प्रोग्राम में कांग्रेस के सीनियर लीडर गुलाम नबी आजाद से जब यह सवाल किया कि उनकी पार्टी देश भर में हंगामे करा रही है तो गुलाम नबी आजाद ने यह कहकर उस बेवकूफ एंकर का मुंह बंद कर दिया कि तुम्हारे मोदी तो देश को कांग्रेस मुक्त बनाने का दावा करते हैं। उनके जरिए देश को कांग्रेस मुक्त किए जाने के बावजूद अगर देश के हर तबके हर फिरके और तमाम जात के लोग मुल्क का संविद्दान बचाने के लिए सडकों पर आ गए तो यह तो कांग्रेस के लिए फख्र की बात है इसमे बुरा क्या है?
आजाद ने कहा कि मुल्क ही नहीं आक्सफोर्ड जैसी दुनिया के पचासों युनिवर्सिटियों के तलबा अमरीका और योरोपियन मुल्कों में रहने वाले तमाम हिन्दुस्तानी इस मामले पर सड़कों पर हैं। इसलिए मोदी और उनकी हिमायत में लगे पूरे मीडिया को खुद ही इस बात पर गौर करना चाहिए कि कांग्रेस कहां खडी है और यह सब कहां खडे हैं।
वजीर-ए-आजम मोदी और अमित शाह दोनों ही बार-बार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उनकी सरकार जो शहरियत एक्ट लाई है वह बहुत जरूरी है और संविद्दान के ऐन मुताबिक है। अगर ऐसा है और उनके पास आरएसएस जैसी बडी तंजीम है तो उन्होने आरएसएस और बीजेपी के लोगों को पूरे देश खुसूसन युनिवर्सिटियों में भेजकर इस एक्ट की अच्छाइयां बताने की जरूरत क्यों नहीं महसूस की। अगर यह एक्ट इतना ही अच्छा है तो देश पर इसे पुलिस और लाठी गोली के भरोसे नाफिज (लागू) करने की क्या जरूरत पड़ गई।
हालात यहां तक पहुच चुके हैं कि हिन्दू-मुस्लिम सिख-ईसाई, व्यापारी, वकील, डाक्टर, आईआईएम और आईआईटी के तलबा मुसन्निफीन (लेखक), कवि, शायर मतलब यह कि देश का हर तबका एक्ट के खिलाफ सडकों पर है इसके बावजूद मोदी और अमित शाह यही कह रहे हैं कि सिर्फ उन्हीं की बात सही है बाकी सब बेवकूफ हैं। देश इस तरह तो नहीं चला करते।
पार्लियामेंट में अक्सरियत के घमण्ड में चूर वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और उनके होम मिनिस्टर अमित शाह ने संविद्दान की द्दज्जियां उड़ाते हुए शहरियत तरमीमी बिल (नागरिकता संशोद्दन बिल) पास तो करा लिया लेकिन इसके पास होते ही पूरे मुल्क खुसूसन नौजवानों और यूनिवर्सिटियों के तलबा में तूफान खड़ा हो गया। मोदी की साढे पांच सालों की सरकार में ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक, चेन्नई से दिल्ली तक नार्थ-ईस्ट की सातों रियासतों और बंगाल से महाराष्ट्र तक की युनिवर्सिटियों के तलबा और दीगर नौजवानों में इतना गुस्सा भर गया कि पुलिस के जुल्म और लाठी-गोली की परवा किए बगैर लाखों नौजवान सड़कों पर आ गए।
दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया, अलीगढ में मुस्लिम युनिवर्सिटी, लखनऊ में दारूल उलूम नदवतुल उलेमा और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ में पुलिस ने जो नंगा नाच दिखाया उससे एक बार फिर साबित हो गया कि अगर सामने मुसलमान हो तो पुलिस के हाथों में कुछ ज्यादा ही ताकत आ जाती है और वह निहत्थों पर बहादुरी दिखाने के लिए बेताब हो जाती है। इशारों में मुसलमानों के खिलाफ एजेण्डा सेट करने के आदी वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने इस मामले में भी मुसलमानों का नाम लिए बगैर यह कह कर पुलिस का हौसला बढ़ाने का काम कर दिया कि ‘कपड़े देखकर ही पता चलता है दंगाई कौन हैं।’ वह यह भूल गए या देखा नहीं कि जामिया के तलबा पर हमला करने वाली दिल्ली पुलिस के दर्जनों जवानों ने यूनिफार्म के बजाए कमीज और जीन्स पहन रखी थी।
मोदी और अमित शाह के जरिए लाए गए शहरियत बिल ने एक और बड़ा काम यह कर दिया कि गुजिश्ता साढे पांच सालों में मुल्क में हिन्दू और मुसलमानों के दरम्यान नफरत की जो दीवार बड़ी मेहनत से फिरकापरस्त ताकतों ने खडी की थी वह एक ही झटके में टूटती दिखी। असम के चार-पांच शहरों में भी बिल के खिलाफ जबरदस्त हंगामे दिख चुके थे गुवाहाटी मे तो पुलिस फायरिंग में पांच नौजवानों की जानें जा चुकी थीं लेकिन जामिया मिल्लिया इस्लामिया युनिवर्सिटी के लड़के-लड़कियों पर पुलिस जुल्म देखकर जिस तरह बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी समेत देश की दर्जनों सेण्ट्रल व स्टेट युनिवर्सिटियों आईआईएम और आईआईटी के तलबा तक मैदान में आ गए।
शिवसेना चीफ और महाराष्ट्र के चीफ मिनिस्टर उद्धव ठाकरे ने जामिया पर पुलिस की बरबरियत को दूसरा जलियांवाला बाग करार दे दिया। इन कार्रवाइयों ने आरएसएस कुन्बे के जरिए साढे पांच सालों में खड़ी की गई नफरत की दीवार को अगर पूरी तरह गिराया नहीं तो बड़ी हद तक कमजोर जरूर कर दिया है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया युनिवर्सिटी और अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी के तलबा पर पुलिस की बरबरियत देख कर बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी और आईआईएम अहमदाबाद समेत देश के बड़ी तादाद में मुल्क की युनिवर्सिटियों आईआईटी और आईआईएम के तलबा (विद्यार्थियों) का सामने आना, उद्धव ठाकरे का यह कहना कि यह तो जलियांवाला बाग जैसा हमला जामिया पर हुआ जामिया के तलबा की हिफाजत और उनके साथ नाइंसाफी के खिलाफ लड़ने के लिए पंजाब से सिखों के जत्थे का आना यह सब देश की एकता के लिए अच्छा शगुन है। हम यकीन से कह सकते हैं कि अगर नरेन्द्र मोदी और उनके होम मिनिस्टर को यह अंदाजा होता कि उनके लाए हुए गैर संवैद्दानिक शहरियत बिल की वजह से देश के हिन्दुओं और मुसलमानों के दरम्यान पांच-साढे पांच सालों मे खडी की गई नफरत की दीवार ही कमजोर होकर गिरने की हालत में पहुंच जाएगी तो शायद वह यह बिल कभी न लाते।
इंतेहाई एडवांस मीडिया और कम्युनिकेशन के बेहतरीन जराए होने की वजह से जामिया और अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी में पुलिस ज्यादतियों की बातस्वीर और वीडियो समेत खबरें पूरी दुनिया में पहुंच गई तो देश भर की युनिवर्सिटियों के अलावा यूरोप और अमरीका तक की कई युनिवर्सिटीज के तलबा भी सामने आ गए और मोदी सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। जामिया के तलबा की मदद की गरज से पंजाब से आए सिखों के एक जत्थे ने कहा कि देश का मीडिया सच्ची खबरें नहीं दिखाता है पंजाब और नार्थ-ईस्ट की खबरों को तो पूरी तरह ब्लैक आउट किया गया है लेकिन हम यह बताना चाहते हैं कि पंजाब मोदी सरकार के इस काले कानून के खिलाफ किसी भी हद तक जाने को तैयार बैठा है। उन्होने कहा कि हम तो कश्मीर से दफा-370 हटाए जाने की वजह से पहले से ही मोदी सरकार के खिलाफ खड़े हैं।
शहरियत तरमीमी एक्ट को पूरा हिन्दुस्तान ही गलत नहीं मानता है दुनिया के कई मुल्क और यूनाइटेड नेशन्स तक ने इस एक्ट को गलत भेदभाव करने वाला और मुस्लिम अकलियत के मफाद के खिलाफ करार दिया है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी मे पुलिस ने जो कुछ किया उसके वीडियो पूरी दुनिया में घूम रहे हैं और दुनिया भर का मीडिया उन्हे दिखाता भी रहा। सवाल यह है कि जिस बिल और जिस एक्ट को पूरा मुल्क और दुनिया गलत करार दे रही है उस एक्ट पर वजीर-ए-आजम मोदी और होम मिनिस्टर अमित शाह की जिद है कि बिल्कुल ठीक है। सरकार इस मामले में एक इंच भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है। इसी के साथ अमित शाह यह भी कहते हैं कि उनकी सरकार में पूरे देश में एनआरसी जरूर नाफिज की जाएगी और घुसपैठियों को चुन-चुन कर मुल्क से बाहर निकालेगे। अगर यह बयान मुसलमानों के लिए द्दमकी नहीं तो और क्या है?
खुद अमित शाह शहरियत तरमीमी एक्ट मे कह चुके हैं कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आए हिन्दुओं, ईसाइयों, बौद्धों, सिखों और जैनियों को हम भारत की शहरियत (नागरिकता) देंगे बशर्ते कि वह इकत्तीस दिसम्बर 2014 से पहले भारत आए हों। जाहिर है कि एनआरसी लागू होने पर असम के उन्नीस लाख लोगों की तरह पूरे मुल्क के करोडों लोग एनआरसी लिस्ट से बाहर रह जाएगे उन्हें तो घुसपैठिए बताकर अमित शाह की जबान में चुन-चुन कर देश से बाहर निकाल दिया जाएगा लेकिन लिस्ट से बाहर रहने वाले हिन्दुओं को शहरियत दे दी जाएगी।
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी इस दौरान मुसलसल झारखण्ड असम्बली एलक्शन की मुहिम में मसरूफ रहे। चूंकि उन्हें झारखण्ड में बीजेपी हारती हुई दिख रही है इसलिए शहरियत बिल के खिलाफ हो रहे हांगामों और कांग्रेस की उन हंगामों की हिमायत पर मोदी ने जमकर हिन्दू मुस्लिम और पाकिस्तान का खेल खेला।
पहले दिन जामिया और अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी में हुए हंगामों पर उन्होने कह दिया कि कपडे देख कर ही बताया जा सकता है कि हिंसा कौन कर रहा है। मतलब जो लोग कुर्ता पाजामा पहने और टोपी लगाए भीड में दिख रहे हैं वही असल दंगाई हैं। इसके बाद मोदी ने अचानक पाकिस्तान का सहारा ले लिया और तकरीरें करने लगे कि कांग्रेस और उसके चेले चपेटों को वाजेह करना चाहिए कि क्या वह यह एलान करने के लिए तैयार है कि अगर वह सत्ता में आए तो पाकिस्तान के एक-एक शहरी को हिन्दुस्तान की शहरियत देंगे?
अव्वल तो कांग्र्रेस उसकी साथी सियासी पार्टियां और शहरियत तरमीमी एक्ट की मुखालिफत करने वाले किसी भी शख्स ने इस मामले में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया फिर मोदी पाकिस्तान-पाकिस्तान क्यों चीखने लगे दूसरे कांग्रेस ओर उसके चेले चपाटों जैसी सतही जुबान (भाषा) किसी भी तरह वजीर-ए-आजम की सतह की जुबान नहीं हो सकती।
अमित शाह की दिल्ली पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया और योगी की उत्तर प्रदेश पुलिस ने अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी, मऊ और लखनऊ के दारूल उलूम नदवातुल उलेमा में निहत्थे तलबा और तालिबात पर जिस अंदाज में बरबरियत दिखाई वह इंतेहाई काबिले मजम्मत (घोर निंदनीय) है। शायद तीनो ंजगहों पर पुलिस मुसलमानों को सबक सिखाना चाहती थी। जामिया में पुलिस क्यों घुसी इस सवाल पर डिप्टी पुलिस कमिशनर ने कहा कि जिस जिस जगह पर पथराव हो रहा था पुलिस उन्हीं जगहों पर गई। इस सवाल पर कि लाइब्र्रेरी तो बाउड्री से दूर है दूसरे लाइब्रेरी के अंदर पत्थर कहां से आ गए जो आप लोग वहां तक पहुच गए और अंदर आंसू गैस के गोले भी दाग दिए वह खामोश रहे।
पुलिस ने बार-बार सफाई दी कि पुलिस ने जामिया में एक भी गोली नहीं चलाई लेकिन जो वीडियो वायरल हो रहे हैं उनमे साफ दिखता है कि पुलिस वाले रायफल और रिवाल्वर हाथों में लिए हुए भीड़ को दौडा रहे हैं उनमें से कुछ फायरिंग भी करते दिखे जब उस फायरिंग पर सवाल हुआ तो फिर वही रटा रटाया जवाब कि कोई फायरिंग नहीं हुईं। सवाल यह कि आखिर इतना झूट क्यों अगर सैकडो वीडियो वायरल न होते तो दिल्ली पुलिस जामिया के इर्दगिर्द निकलने से भी इंकार कर देती। पुलिस ने सोलह दिसम्बर को साफ कहा कि हमने जिन लोगों को नामज द करते हुए मुकदमे दर्ज किए हैं उनमें जामिया मिल्लिया इस्लामिया युनिवर्सिटी का एक भी तालिब इल्म शामिल नहीं है। अगले दिन पता चला कि जामिया के चार तलबा को दंगाइयों की शक्ल में नामजद कि या गया है।