देश की आर्थिक स्थितियों और असमानता पर एक बार फिर आकलन सामने आए हैं। अब उन्हें संबोधित किया जाना चाहिए। भारत के सकल घरेलू उत्पाद, यानी जीडीपी का आकार लगातार बढ़ता जा रहा है। हम 3.6 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुके हैं और सफर लगातार आगे बढ़ रहा है।
अच्छी और सुखद खबर है कि दिसंबर, 2022 में थोक महंगाई दर 4.95 फीसदी तक लुढक आई। बीते 22 माह के बाद महंगाई निम्नतम स्तर पर है। अलबत्ता मई, 2022 में हम यही दर 15.88 फीसदी तक देख चुके हैं। खुदरा महंगाई दर भी 5 फीसदी के करीब है, लेकिन इन दरों से आम आदमी को महंगाई से तुरंत राहत मिलेगी, इस निष्कर्ष पर पहुंचना गलत होगा ।
खुदरा कारोबारी, गली-मुहल्ले के दुकानदार और रेहड़ीवाले फिलहाल प्रचलित कीमतों पर ही दाल, चावल, आटा, सब्जी आदि बेच रहे हैं। उनकी अर्थव्यवस्था समान चलती है। फिर भी भारत में नियंत्रित मुद्रास्फीति कुछ सुकून और राहत देती है। पड़ोसी देश श्रीलंका में आज भी मुद्रास्फीति की दर 57.2 फीसदी और पाकिस्तान में करीब 25 फीसदी है। अमरीका, ब्रिटेन, यूरोप सरीखे विकसित देश भी इससे अछूते नहीं हैं।
इसी ख़बर के साथ-साथ ऑक्सफैम इंडिया की रपट ने कुछ खुलासे किए हैं। कुछ चिंताएं आरएसएस के सरकार्यवाह (महासचिव) दत्तात्रेय होसबले ने फिर दोहराई हैं। हमें लगता है कि अब समय आ गया है, जब इन आर्थिक मुद्दों और सरोकारों को संबोधित किया जाना चाहिए और अपेक्षित, अनिवार्य सुधार भी किए जाने चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी की सत्ता को करीब पौने 9 साल बीत चुके हैं। अब तो भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने 2024 का आम चुनाव जीतने की भी रणनीति तय कर ली है। अर्थव्यवस्था में कई प्रयोग किए जा चुके हैं। भारत आत्मनिर्भर होने की दिशा में बढ़ता जा रहा है। आज भारत स्वदेशी रेलगाड़ी ‘वंदे भारत’ का निर्माण और उत्पादन देश के भीतर ही कर रहा है। मोबाइल बनाने में हम दुनिया में दूसरे सबसे बड़े देश हैं। ऑटोमोबाइल्स में जापान के बाद भारत तीसरे स्थान पर है।
खाद्यान्न उत्पादन में हम प्रथम या द्वितीय देश हैं। भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी और व्यापक क्रय-शक्ति वाला देश है। हमारे आयात-निर्यात का संतुलन संवर रहा है। हमारे पास विदेशी मुद्रा का भंडार 550 अरब डॉलर से ज्यादा का है और सर्वाधिक विदेशी निवेश भारत में ही हुआ है।
इतिहास आर्थिक सुधारों के लिए पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को हमेशा याद रखेगा, क्योंकि उसी दौर के बाद हमारी अर्थव्यवस्था खुली है, लाइसेंस राज समाप्तप्राय- है, भूमंडलीकरण का दौर शुरू हो पाया है।
आज नतीजा सामने है कि भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था पर सक्रियता से सोच पा रहा है। और 2026 तक यह लक्ष्य भी हासिल हो जाना चाहिए, लेकिन आर्थिक विसंगतियां और असमानताएं आज भी भारत में हैं। मसलन- मात्र 1 फीसदी धन्नासेठों के पास देश की 40 फीसदी से अधिक संपदा और संसाधन हैं। देश की 50 फीसदी सबसे गरीब आबादी के पास मात्र 3 फीसदी संपत्ति है।
देश की करीब 72 फीसदी संपदा और संसाधन 10 शीर्षतम अमीरों के पास हैं। नए अरबपतियों की संख्या 2022 में 166 तक पहुंच चुकी है। सिर्फ 100 लोगों के पास 18 माह के राष्ट्रीय बजट के करीब, करीब 54. 12 लाख करोड़ रुपए, धन है, जबकि 25-26 करोड़ भारतीय आज भी गरीबी रेखा के तले जीने को अभिशप्त हैं। यह आर्थिक असमानता कब दूर होगी?