ADVERTISEMENT
नई दिल्ली : मोदी सरकार ने देशी विदेशी कारपोरेट घरानों के हितों में लम्बे संघर्षो से हासिल 29 लेबर कानूनों को खत्म कर चार लेबर कोड बनाने का काम किया है। जिन कानूनों को खत्म किया है उनमें से कई बाबा साहब अम्बेडकर ने मजदूरों के हितों में बनाए थे।
इन लेबर कोडो के बनने से हमारे मजदूरों की जिदंगी में क्या होंगे बदलाव आइए देखे-
- अपने खून से अपने झाण्ड़े को लाल करके हासिल काम के घंटे 8 को खत्म कर सरकार ने 12 कर दिए है। कई कामों जैसे अनवरत चलने वाले कामों में तो 12 घंटे से भी ज्यादा काम लिया जा सकता है। इससे 33 प्रतिशत मजदूरों की छटंनी तय होगी।
- ये भी पढ़ें : क्या पत्रकार ही पत्रकार के दुश्मन बन गए?
- लेबर कोड में फिक्स टर्म इम्पलाइमेंट लाया गया है मतलब अब कुछ समय के लिए मालिक आपको रखेंगे और जब चाहे बिना छंटनी लाभ दिए काम से निकाल देगे।
- 50 से कम मजदूर रखने वाले ठेकेदार को अब लेबर आफिस में पंजीकरण कराने से छूट दे दी गई यानि उसे लेबर कानूनों को लागू करने से पूरी मुक्ति मिल गई।
- 50 से कम मजदूर वाले उद्योग बिना एक माह का नोटिस पे दिए आपकों काम से निकाल बाहर करेंगे।
- 300 से कम मजदूरों वाली कम्पनी को छटंनी करने से पहले सरकार की अनुमति नहीं लेनी होगी।
- घरों में काम करने वाले मजदूर औद्योगिक विवद में दावा नहीं कर सकेंगे उन्हें इससे बाहर कर दिया।
- ग्रेच्युूटी जरूर एक साल में देने की बात है लेकिन अब कोई ठेकेदार आपको एक साल से ज्यादा काम पर नहीं रखेगा। जैसे अनपरा में होता है ठेकेदार बदलते है मजदूरों नहीं और पूरी जिदंगी काम करने के बाद भी ग्रेच्युटी नहीं मिलती है।
- लेबर कोड में ठेकेदार को भी मालिक बनाया गया है परिणामस्वरूप आपकी जीवन, सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा से मुख्य मालिक को बरी कर दिया गया है।
- इंटरनेट पर काम करने वाले गिग व प्लेटफार्म मजदूरों को कोई सुविधा नहीं दी गई है। इसी प्रकार आंगनबाड़ी, आशा, मिड डे मील रसोईया, पंचायत मित्र, शिक्षा मित्र जैसे स्कीम वर्कर्स को मजदूर नहीं माना उन्हें न्यूनतम मजदूरी से भी बाहर कर दिया।
- ये भी पढ़ें : लेख : आपदा, विपदा, विभाजन, अवसरों से गुज़रते हुए मुन्जाल परिवार ने बनाई हीरो साइकिल : रवीश कुमार
- वेतन की परिभाषा से बोनस हटा दिया गया है यानी अब बोनस न देने पर आप मुकदमा भी नहीं कर पायेंगे और कम्पनी के लाभ के लिए बैलेंस शीट देखने का अधिकार छीन लिया है।
- ठेका मजदूरों के परमानेंट होने की जो थोड़ी बहुत सम्भावना पुराने कानून में थी उसे भी खत्म कर दिया गया है।
- ट्रेड यूनियन के गठन को बेहद कठिन बना दिया है। श्रमिकों की मदद करने वाले वकील या सामाजिक कार्यकर्ता अब टेªड यूनियनों के सदस्य नहीं रहेंगे।
- हड़ताल करना असम्भव कर दिया अब हड़ताल करने के लिए दो माह पूर्व नोटिस देनी होगी। यहीं नहीं हड़ताल के लिए कहना या अपील करना गुनाह हो गया। इस पर जेल और जुर्माना दोनों होगा।
- लाकडाउन से बर्बादी की हालत में पहुच गए प्रवासी मजदूरों पर गहरा हमला किया गया है। अब 180 दिन काम करने पर ही उन्हें मालिक द्वारा आने जाने का किराया मिलेगा।