पूर्वोत्तर के राज्यों में मतदान खत्म होने के साथ ही रसोई गैस के सिलेंडर के दामों में एकमुश्त पचास रुपए की बढ़ोतरी कर दी गई है। रसोई गैस के सिलेंडर के दाम पहले ही एक हजार के पार थे और इस बढ़ोतरी के बाद दिल्ली में इसकी कीमत अब 1,103 रुपए हो गई है।
वाणिज्यिक सिलेंडर के दाम में साढ़े तीन सौ रुपए की बढ़ोतरी हुई है। यानी अब उन्नीस किलोग्राम के वाणिज्यिक इस्तेमाल वाले गैस सिलेंडर के दाम 2, 119.5 रुपए तक पहुंच चुके हैं। जाहिर है, अलग-अलग राज्यों में वहां की कीमतों के अनुपात में बढ़ोतरी हुई है। होली से ऐन पहले हुई यह वृद्धि स्वाभाविक है कि लोगों को खलेगी।
महंगाई पहले ही आसमान छू रही है और पेट्रोल के दाम लोगों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। ऐसे में रसोई गैस की कीमतों में ताजा बढ़ोतरी खासतौर से चुभने वाली है, क्योंकि सरकार ज्यादातर गैर- उज्ज्वला उपयोगकर्ताओं को अब कोई सबसिडी नहीं देती है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त एलपीजी कनेक्शन पाने वाले 9.58 करोड़ गरीबों को प्रति सिलेंडर दो सौ रुपए सबसिडी मिलती है।
अब सबसिडी के बाद उन्हें भी एक सिलेंडर के लिए 903 रुपए चुकाने होंगे। साफ है कि गरीब और निम्न मध्यवर्गीय लोगों को इस कमरतोड़ महंगाई से फिलहाल निजात मिलती नहीं दिख रही। वहीं अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी खबर अच्छी नहीं है। महामारी की मार से उबर रही अर्थव्यवस्था को रूस- यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होने की वजह से झटके सहने पड़े हैं।
नतीजे में विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के कारण देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 2022-23 के वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में घट कर 4.4 फीसद पर आ गई है। जबकि 2021-22 की इसी तिमाही में अर्थव्यवस्था 11.2 फीसद की दर से बढ़ी थी। चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की वास्तविक वृद्धिदर सात फीसद रहने का अनुमान है जो पिछले वर्ष 9.1 फीसद थी। मान लिया जाए कि जीडीपी की वृद्धि दर को प्रभावित करने वाले कई थी।
मान लिया जाए कि जीडीपी की वृद्धि दर को प्रभावित करने वाले कई अंतरराष्ट्रीय कारक होते हैं और यह कभी तेज तो कभी सुस्त होती रहती है, लेकिन सरकार देश के वंचित तबकों के प्रति अपनी जवाबदेही और दायित्वों से पल्ला नहीं झाड़ सकती । महामारी के बाद महंगाई की मार झेल रहे सबसे निचली कतार में खड़े लोगों के लिए रसोई गैस के सिलेंडर जैसी बुनियादी चीज की बेलगाम कीमतें काफी परेशानी भरी साबित हो रही हैं।
सच यह है कि सबसिडी के बावजूद उज्जवला योजना तक के सिलेंडर के ऊंचे दाम इसके दायरे में आने वाले उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर हो रहे हैं। खुद सरकार संसद में बता चुकी है कि उज्ज्वला योजना के चार करोड़ तेरह लाख लाभार्थियों ने एक बार भी सिलेंडर नहीं भरवाया तो 7.67 करोड़ लाभार्थियों ने सिर्फ एक बार भरवाया। सरकार कह सकती है कि रसोई गैस के सिलेंडर के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैस की कीमतों से तय होती हैं।
यह कीमत डालर में होती है और डालर व रुपए की विनिमय दर के आधार पर तय होती है। यानी डालर के मुकाबले रुपया कमजोर हो तो दाम अपने आप बढ़ जाते हैं। लेकिन अगर हम बीते चौदह महीनों के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस दौरान रसोई गैस सिलेंडर की कीमतें आठ बार बढ़ी हैं और कुल बढ़ोतरी 256 रुपए की हुई है। इस बढ़ोतरी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों का हवाला देकर उचित नहीं ठहराया जा सकता। उचित यही होगा कि सरकार रसोई गैस जैसी सबसे बुनियादी चीजों के दाम काबू में रखे, ताकि यह लोगों की पहुंच में रहे।