अगर सभी वर्ग, जाति और क्षेत्र को समुचित प्रतिनिधत्व नही मिला तो बगावत की लहर मंत्रिमण्डल विस्तार होने के साथ ही प्रारम्भ हो सकती है । इस संक्रमण की चपेट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अलावा खुद कांग्रेस आलाकमान भी शिकार हो सकता है ।
वैसे तो मंत्रिमण्डल विस्तार पिछले ढाई साल से टलता आ रहा है । विधायकों को उम्मीद है कि इस बार काणी ब्याह होकर ही रहेगा । बेचारी काणी बड़ी ही दुर्भाग्यशाली है । ऐन मौके पर कोई ना कोई कौतक हो ही जाता है । जब तक काणी को ब्याह सही सलामत निपट नही जाता, तब तक कोई मुगालता नही पालना चाहिए । मेव मरो तब जानियो जब चालिसवो होय । अर्थात जब तक चालीस दिन पूरे नही हो जाते, तब तक मेव को मरा नही मानना चाहिए ।
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मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की खबर दर्जनों बार छप चुकी है । प्रभारी अजय माकन भी अनेक बार घोषणा कर चुके है कि यह प्रक्रिया जल्द पूरी होने वाली है । हर बार उनकी घोषणा झूठी साबित हुई । जब जब माकन राजस्थान आए, उम्मीद बंधी कि इस दफा विधायको को तोहफा अवश्य मिलेगा । इसी तरह केसी वेणुगोपाल की पिछली जयपुर यात्रा के दौरान भी इसी तरह के कयास लगाए गए । अब फिर से चर्चा होने लगी कि मंत्रिमण्डल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों की प्रक्रिया शीघ्र प्रारम्भ होने वाली है ।
असली पेच यह फंसा हुआ है कि अधिकांश विधायक मंत्री बनने की आस लगाए बैठे है । उधर विधायको के अलावा कांग्रेस के पराजित तथा वरिष्ठ नेताओं की लंबी कतार लगी हुई है जो राजनीतिक नियुक्तियों के तलबगार है । बहुत सारी और महत्वपूर्ण नियुक्तियां सेवानिवृत अधिकारियों के जरिये पूरी की जा चुकी है । दूध से मलाई तो निकाल ली गई है । अब केवल सप्रेटा बचा है ।
राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर पूर्व डीजीपी भूपेंद्रसिंह यादव, सदस्य के रूप में जसवंत राठी, मंजू शर्मा, संगीता आर्य, कर्मचारी चयन आयोग में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी हरिप्रसाद शर्मा, सूचना आयोग में पूर्व आईएएस डीबी गुप्ता, नारायण बारेठ, श्वेता धनखड़, गंगानगर शुगर मिल में एलडी शर्मा, बाल संरक्षण आयोग में बेनीवाल, रीको में सीताराम अग्रवाल, प्रद्युम्नसिंह को वित्त आयोग मे नियुक्त किया जा चुका है । अब कुछ ही महत्वपूर्ण पद बचे है जिनको हथियाने के लिए आधे से ज्यादा जोधपुर के लोग इंतजार में बैठे है ।
मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमंडल में कुल 21 सदस्य है । अधिकतम 30 विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है । यानी 9 विधायकों के लिए मंत्रिमण्डल में जगह बची हुई है । जबकि प्रबल दावेदारों में हेमाराम चौधरी, विश्वेन्द्र सिंह, इन्द्रराज गुर्जर, मुरारीलाल मीणा, दीपेंद्र सिंह, हरीश मीणा, वेदप्रकाश सोलंकी, रमेश मीणा, महादेवसिंह खण्डेला, परसराम मोरदिया, राजकुमार शर्मा, राजेन्द्र पारीक, नरेंद्र बुडानिया, डॉ जितेंद्र सिंह, पंडित भंवरलाल शर्मा, शकुंतला रावत, बाबूलाल बैरवा, जौहरीलाल मीणा, बाबूलाल नागर, संयम लोढा, राजन्द्रे गुढा, दीपचंद खैरिया, बलजीत यादव, भरतसिंह, अमीन खान, रमिला खड़िया, रामकेश मीणा आदि शामिल है । ये ऐसे नाम है जिनकी अनदेखी करना गहलोत के लिए घातक साबित हो सकता है ।
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बसपा के एक विधायक से कल हुई एक अनौपचारिक बातचीत में स्पस्ट हुआ कि बसपा पासिंग मार्क 33 प्रतिशत के हिसाब से एक केबिनेट, एक राज्य मंत्री तथा एक विधायक के लिए आयोग के अध्यक्ष का पद मांग रही है । निर्दलीयों की भी मांग है कि उनके कोटे से न्यूनतम पांच विधायकों को मंत्री बनाया जाए । संयम लोढा, बाबूलाल नागर का नाम तय माना जा रहा है । इसके अलावा एक अन्य विधायक को मंत्री बनाया जा सकता है । सुरेश टांक का सूची में सबसे ऊपर नाम है ।
अगर बसपा के तीन और निर्दलीयों में से चार मंत्री बना लिए गए तो मंत्रिमंडल में केवल दो विधायको को जगह मिलेगी । नंगा क्या तो नहाए और क्यो निचोड़े ? सचिन पायलट उम्मीद लगाए बैठे है कि उनके समर्थित छह व्यक्तियों को मंत्रिमण्डल में जगह दी जाए । अगर सचिन की बात मान ली जाती है तो मंत्रिमण्डल में केवल तीन व्यक्तियों के लिए जगह बचती है । इस थ्री बीएचके में बीएसपी, निर्दलीय और कांग्रेसी विधायको को कैसे समायोजित किया जाएगा, इसका फार्मूला पायलट द्वारा नही सुझाया जा रहा है
पायलट केवल एक ही धुन बजा रहे है कि मेरे छह मंत्रियों को जगह दो । अगर ऐसा है तो गहलोत को चाहिए कि वे अपने समर्थक विधायकों को कमण्डल लेकर हरिद्वार भेज दे । कोई भी व्यक्ति राजनीति में प्याऊ पर पानी पिलाने के लिए नही आता है । हर विधायक को चाहिए मंत्री पद । खुद पायलट ने भी मुख्यमंत्री बनने के लिए कई दिन तक उधम मचाया था । बाद में वे फिर मुख्यमंत्री बनने के लिए रूठ कर मानेसर चले गए भाजपा के टुकड़े तोड़ने ।
अगर गहलोत ने सही संतुलन बनाया अथवा नही, बगावत होना स्वाभाविक है । जो लोग मंत्री बनने या निगम का अध्यक्ष नियुक्त होने के लिए खामोश बैठे है, जब इनका किसी सूची में नाम नही आएगा, तब यही “वफादार” बेवफाई पर उतरते हुए गहलोत के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाने लगेंगे ।
यह भी सब जानते है कि राजनीति में कोई किसी का सगा नही होता है । जो आज पायलट की जय जय कर रहे है । मंत्री बनते ही पायलट मुर्दाबाद और गहलोत जिंदाबाद के नारे लगाने लगेंगे । यह बात गहलोत भी बखूबी जानते है । वे इस बात से पूर्णतया वाकिफ है कि जब तक यही वजह है कि गहलोत पिछले काफी दिनों से मंत्रिमण्डल विस्तार को टालते आ रहे है । वे यह भी जानते है कि एक बार मंत्री बनाने और राजनीतिक नियुक्तियों का फ्लड गेट खुल गया तो स्थिति संभालना कठिन नही, नामुमकिन हो जाएगा ।
आलाकमान ने जो फार्मूला पंजाब में अपनाया, वह कतई व्यवहारिक नही थोपा हुआ निर्णय है । इस फार्मूले से कांग्रेस के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ता बुरी तरह जख्मी हुए है । फार्मूले ने जाहिर कर दिया है कि बगावत करने वाले पार्टी पर काबिज है । जबकि वर्षो से पार्टी के प्रति समर्पित लोग आज हासिये पर चले गए है । यह फैसला इसलिए भी व्यवहारिक नही है क्योंकि नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस में तनिक भी आस्था नही है । कुर्सी ही उनके लिए सबसे बड़ी आस्था है । अपने स्वार्थ के लिए जो व्यक्ति बीजेपी को अपनी माँ बताने वाला, समय आने पर कांग्रेस को भी लात मार सकता है । लिहाजा आलाकमान को एकतरफा फैसला नही लेते हुए ऐसा व्यवहारिक हल खोजना चाहिए जिसमें में बगावत की संभावना कम हो ।