नई दिल्ली: 2 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा सेवानिवृत्त हो रहे है और तीन अक्टूबर को रंजन गोगोई मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ग्रहण करेंगे,दीपक मिश्रा के रिटायरमेंट को देखते हुए सोशल मीडिया पर तरह तरह की क्रिया प्रतिक्रियाएं हो रही है और लिखा जा रहा है कि आख़िर जाते जाते दीपक मिश्रा अयोध्या पर फैसला क्यो सुना रहे हैं,
आपको बता दे चार जजो ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कोर्ट में राजनीति के दखल होने की बात कही थी जिससे आज लोग अयोध्या पर तुरन्त फैसले को जजो की बातसही थी कहा जा रहा है

सुप्रीम कोर्ट ने “मस्जिद इस्लाम् का हिस्सा है या नही”के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने दिए 1994 के फैसले पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से मना कर दिया है. राम मंदिर भूमि के दौरान यह मामला उठा था वहीं अय़ोध्या के राम मंदिर के मामले पर 29 अक्टूबर से सुनवाई शुरु होगी.कि वहां मंदिर बने या मस्जिद.
चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ ने 2:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि दीवानी वाद का फैसला सबूतों के आधार पर होना चाहिए और पहले आये फैसले की यहां कोई प्रासंगिकता नहीं है.
प्रधान न्यायाधीश मिश्रा और अपनी ओर से फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा कि उसे देखना होगा कि साल 1994 में पांच सदस्यीय पीठ ने किसी संदर्भ में फैसला दिया था. उन्होंने कहा कि मौजूदा मामले में साल 1994 का फैसला प्रासंगिक नहीं है, क्योंकि उक्त निर्णय भूमि अधिग्रहण के संबंध में सुनाया गया था.

हालांकि न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर अपने फैसले में पीठ के अन्य दो सदस्यों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका कहना है कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है, इस विषय पर फैसला धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, उसपर गहन विचार की जरूरत है. न्यायमूर्ति नजीर ने मुसलमानों के दाऊदी बोहरा समुदाय में बच्चियों के खतने पर न्यायालय के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मौजूदा मामले की सुनवाई बड़ी पीठ द्वारा की जानी चाहिए.
दो अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं दीपक मिश्रा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भूमि विवाद पर दीवानी वाद की सुनवाई नये सिरे से गठित तीन सदस्यीय पीठ 29 अक्टूबर को करेगी क्योंकि वर्तमान खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश मिश्रा दो अक्टूबर को सेवा निवृत्त हो रहे हैं.

वर्तमान में यह मुद्दा उस वक्त उठा जब प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ अयोध्या मामले में 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने राम जन्म्भूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर अपने फैसले में जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया था. अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए.
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