नई दिल्ली: नफ़रती एजेंडा चलाने के लिए कुख्यात सुदर्शन टीवी को देश की सबसे बड़ी अदालत से ज़ोरदार झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने सुदर्शन टीवी के एक कार्यक्रम को मुस्लिम विरोधी बताते हुए उसपर रोक लगा दी है।
SC ने सुदर्शन टीवी को आज और कल ‘बिंदास बोल’ कार्यक्रम प्रसारित नहीं करने का निर्देश दिया है। इस मामले में अब 17 सितंबर को सुनवाई होगी।
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कार्यक्रम के प्रोमो में ही चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाण ने दावा किया था कि मुसलमान एक साज़िश के तहत नौकरशाही में घुस रहे हैं, जिसका पर्दाफाश उनका चैनल करेगा।
सुदर्शन के इसी कार्यक्रम के खिलाफ़ जामिया के छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है। जिसपर मंगलवार को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस इंदू मल्होत्रा और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच ने सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा, ”कार्यक्रम में कई तथ्यात्मक गलतियां हैं। UPSC में मुसलमानों की आयु सीमा 35 रखने का, परीक्षा के ज़्यादा मौके का गलत दावा किया गया। हमें लगता है कि कार्यक्रम के ज़रिए मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है।”
कोर्ट ने कहा कि पहली नज़र में देखने लगता है कि चैनल का कार्यक्रम ‘UPSC जिहाद’ ज़हरीला और समाज मे बंटवारा करने वाला है। कोर्ट ने कहा कि मीडिया की स्वतंत्रता के नाम पर किसी समुदाय को कलंकित नहीं किया जा सकता। इसपर लगाम के लिए कुछ नियम बनाए जाने की ज़रूरत है।
कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं का दौर शुरु हो गया है। कई पत्रकारों ने फैसले पर खुशी ज़ाहिर करते हुए चैनल और सरकार पर हमला बोला है।
पत्रकार विनोद कापड़ी ने ट्वीट कर लिखा, “सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि टीवी चैनल को मुसलमानों के खिलाफ एजेंडा चलाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। याद रहे अभी कुछ दिन पहले मोदी सरकार ने इस ज़हरीले आदमी को टीवी पर ये शो करने की अनुमति दी थी। SC का ये फ़ैसला नफरती एंकर के अलावा पूरी मोदी सरकार पर तमाचा है”।
पत्रकार नरेंद्र नाथ मिश्रा ने लिखा, “सुदर्शन टीवी का यह कार्यक्रम नफरत की अति थी। सह सीधे तौर लाइसेंसी घृणा फैलाने का एक तरीका था। कायदे से सरकार को ही जिसे रोक देना था उसे सुप्रीम कोर्ट को रोकना पड़ा। खैर,एक सही फैसला”।
वहीं पत्रकार उमाशंकर सिंह ने चैनल को टुच्चा बताते हुए कहा, “पत्रकारिता के नाम पर चल रहे टुच्चेपन की वजह से कोर्ट को अपना समय, उर्जा सब कुछ खर्च करना पड़ रहा है”।
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बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने 11 सितंबर को कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। जामिया के छात्रों ने केंद्र सरकार द्वारा कार्यक्रम को मंजूरी दिए जाने के फैसले को हाईकार्ट में चुनौती दी थी।